राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन की जिला प्रबंधक का कुर्सी प्रेम

आजीविका मिशन जबलपुर की पूर्व जिला प्रबंधक को न जाने जबलपुर से ऐसा क्या मुनाफा मिल रहा था कि वह शासन के आदेश के बाद भी ट्रांसफर लेने को ही राज़ी नहीं है। 

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Neel Tiwari
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Shweta Mahato
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मध्य प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन की जबलपुर जिला प्रबंधक श्वेता महतो का बालाघाट ट्रांसफर होने के बाद भी उनका जबलपुर से मोह समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा। अपने ट्रांसफर को रुकवाने श्वेता महतो हाई कोर्ट तक पहुंच गई पर वहां भी उनको राहत नहीं मिली। जबलपुर में जिला प्रबंधक के पद पर 6 वर्षों तक पदस्थ रही श्वेता महतो का बालाघाट तबादला किया गया था। इस आदेश के खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में एक रिट अपील दायर की थी। जिसकी एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की  युगलपीठ में सुनवाई हुई।

ट्रांसफर के खिलाफ लगाई याचिका

राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन में जबलपुर में जिला प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर लंबे समय तक आसीन रही श्वेता महतो को 15 मार्च 2024 को बालाघाट ट्रांसफर किया गया था। इस आदेश के खिलाफ श्वेता महतो ने हाई कोर्ट में एक रिट अपील दायर की थी। इस रिट याचिका पर सोमवार 22 जुलाई को एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ में सुनवाई हुई। पूर्व जिला प्रबंधक की ओर से अधिवक्ता ने यह तथ्य रखे की श्वेता महतो संविदा यानी कांट्रैक्ट एम्पलाई हैं और उनका ट्रांसफर अन्य जगह कर उनके जूनियर को जिला प्रबंधक का पदभार दिया गया जो नियम विरुद्ध है। इसके साथ ही अधिवक्ता ने यह भी तथ्य रखा की 2023 के सर्कुलर के अनुसार संविदा कर्मचारियों को हर वर्ष कॉन्ट्रैक्ट करना आवश्यक नहीं होता है।

मध्य प्रदेश में संविदा की नौकरी मिलने वाले भी हैं भाग्यशाली

युगल पीठ के द्वारा याचिकाकर्ता के सभी तथ्यों को खारिज करते हुए कोर्ट ने यह कहा की याचिकाकर्ता ट्रांसफर से मना नहीं कर सकती। जिस जगह पर पोस्ट रिक्त है वहां का कार्य प्रभावित होता है और इस तरह से ट्रांसफर के लिए बिना किसी कारण के इनकार नहीं किया जा सकता। जस्टिस संजीव सचदेवा ने टिप्पणी करते हुए यह कहा कि यदि शासन उनके ट्रांसफर न लेने की मांग को ठुकराते हुए उनका कॉन्ट्रैक्ट ही कैंसिल कर दे और वह निलंबित हो जाएं तो याचिकाकर्ता क्या करेंगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि शासकीय नौकरी मिलना ही बहुत मुश्किल होता है,वहीं मध्य प्रदेश में संविदा नियुक्ति मिलना भी भाग्य की बात मानी जाती है तो ऐसे में यदि इस तरह के अधिकारी या कर्मचारी ट्रांसफर न लेने पर अड़ जाएं तो यह जॉब उन्हें दी जाए जो वहां जाकर काम करने के इच्छुक हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता शादीशुदा नहीं है और पति की अन्यत्र जॉब या बच्चों की पढ़ाई भी यहां पर कारण नहीं है। अगर याचिकाकर्ता कुछ दिनों की मोहलत चाहती हैं तो उन्हें यह दिया जा सकता है। पर ट्रांसफर से स्थगन नहीं मिल सकता। इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत से समय मांगा और अपने पक्षकार से जानकारी लेकर अदालत को यह जानकारी देंगे कि उन्हें कितने समय की मोहलत चाहिए। मामले की अगली सुनवाई 24 जुलाई को होगी।

निचली अदालत से भी हो चुकी है अपील खारिज

अपने स्थानांतरण के आदेश के विरोध में श्वेता महतो ने पहले निचली अदालत की भी शरण दी थी। पर कोर्ट ने यह आदेश दिया था कि 10 दिनों के भीतर वह अपना अभिमत स्पष्ट करें। लेकिन इसके बाद श्वेता ने हाईकोर्ट में रिट अपील दायर कर दी। विभाग के गलियारों में यह भी चर्चा है कि श्वेता को भोपाल में बैठे किसी अधिकारी का वरद हस्त प्राप्त है तभी तो उनकी जगह पर जबलपुर में जिस अधिकारी को पदस्थापना मिली है उन्होंने अपना पद ग्रहण कर लिया है। पर बालाघाट में श्वेता महतो का पद अब तक रिक्त है उसके बाद भी बालाघाट कलेक्टर या किसी विभागीय उच्च अधिकारी के द्वारा कार्यवाही ना करना भी चर्चा का विषय बना हुआ है।

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