उज्जैन सिंहस्थ : अबकी बार क्षिप्रा के जल से ही होगा महाकुंभ में स्नान, सरकार ने बनाई इतने करोड़ की योजना

उज्जैन में वर्ष 2028 में होने वाले सिंहस्थ महाकुंभ में पवित्र स्नान नर्मदा नदी से लाए गए जल में नहीं, बल्कि क्षिप्रा के जल में ही होगा। इसके लिए मप्र सरकार ने 667 करोड़ लागत वाली एक योजना बनाई है।

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Pratibha ranaa
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Shipra River
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BHOPAL. 2028 में उज्जैन में होने वाले सिंहस्थ से पहले मोहन सरकार शिप्रा नदी ( Shipra River ) को निर्मल बनाएगी। उज्जैन में 2028 में होने वाले सिंहस्थ महाकुंभ में पवित्र स्नान क्षिप्रा के जल में ही होगा। इसके लिए मप्र सरकार ने 667 करोड़ लागत वाली एक योजना तैयार की है। इस योजना के तहत बारिश में बेकार बह जाने वाले क्षिप्रा के जल को उज्जैन से 25 किमी दूर सेवरखेड़ी स्थित तालाब में स्टोर किया जाएगा। इसके बाद स्टोर किए गए इस जल को पाइपलाइन के जरिए उज्जैन के त्रिवेणी घाट के पास क्षिप्रा में छोड़ा जाएगा। 

2028 के महाकुंभ में इतने लोग क्षिप्रा में लगाएंगे डुबकी 

माना जा रहा है कि सिंहस्थ महाकुंभ-2028 में देश-विदेश से करीब 16 करोड़ लोग क्षिप्रा में डुबकी लगाएंगे। सिंहस्थ में आने वाले श्रद्धालु ओंकारेश्वर, महेश्वर भी जाएंगे। वहीं इंदौर में शिप्रा नदी में नालों का गंदा पानी रोकने के लिए नौ स्टाप डैम भी बनाए जाएंगे। जहां-जहां संत रहते हैं उन घाटों का विस्तार प्राथमिकता से किया जाएगा। सिंहस्थ की योजना बनाने में साधु-संतों का परामर्श भी लिया जाएगा। ( Simhastha Kumbh Mela 2028 ) 

क्षिप्रा जल में होगा स्नान, 667 करोड़ का प्लान तैयार

सिलारखेड़ी तालाब में मानसून में 55 एमसीएम पानी लिफ्ट करके स्टोर किया जाएगा। इसे भरने में करीब 45 दिन लगेंगे। तालाब की क्षमता भी बढ़ाई जाएगी। इस पर सालभर में 6 मेगावाट बिजली लगेगी। मानसून बाद 4.5 महीने तक 5 क्यूमेक्स (1000 ली/सेकंड) पानी क्षिप्रा में त्रिवेणी घाट के पास पाइपलाइन से छोड़ेंगे।

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महाकुंभ: हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक समागम

महाकुंभ, जिसे कुंभ मेला भी कहा जाता है, हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है। यह चार पवित्र स्थानों पर हर 12 साल में आयोजित किया जाता है।

महाकुंभ चार पवित्र स्थानों पर लगता है

  • प्रयागराज (इलाहाबाद): यह सबसे पवित्र स्थान माना जाता है, जहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियां मिलती हैं।
  • हरिद्वार: यह गंगा नदी के तट पर स्थित है और हिमालय की तलहटी में बसा है।
  • उज्जैन: यह क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है और भगवान शिव का एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है।
  • नासिक: यह गोदावरी नदी के तट पर स्थित है और त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का घर है।

यह चारों स्थान हर 12 साल में एक बार कुंभ मेले का आयोजन करते हैं।

प्रयागराज और हरिद्वार में कुंभ मेला हर छह साल में अर्ध कुंभ के रूप में भी आयोजित होता है।
अगला महाकुंभ 2025 में प्रयागराज में लगेगा। प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन 2025 में 13 जनवरी से होगा।

कुंभ मेले का महत्व:

  • हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक समागम: यह दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है, जिसमें लाखों लोग पवित्र नदियों में स्नान करने और अपने पापों को धोने के लिए इकट्ठा होते हैं।
  • आध्यात्मिक शुद्धि का अवसर: माना जाता है कि कुंभ मेले के दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने से आध्यात्मिक शुद्धि प्राप्त होती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
  • सांस्कृतिक विविधता का प्रदर्शन: कुंभ मेला विभिन्न संस्कृतियों, परंपराओं और विचारों का एक संगम है।
  • सामाजिक सेवा का अवसर: कई धार्मिक संगठन और स्वयंसेवी समूह कुंभ मेले के दौरान भोजन, आश्रय और चिकित्सा सेवा प्रदान करते हैं।
  • पापों का नाश: यह भी माना जाता है कि कुंभ मेले के दौरान किए गए स्नान से पाप धुल जाते हैं।
  • ग्रहों की स्थिति का प्रभाव: महाकुंभ ग्रहों की स्थिति के आधार पर आयोजित किया जाता है, और प्रत्येक ग्रह का एक विशिष्ट महत्व होता है।
  • धार्मिक अनुष्ठान: कुंभ मेले के दौरान कई धार्मिक अनुष्ठान और समारोह आयोजित किए जाते हैं।
  • सांस्कृतिक विविधता: यह विभिन्न संस्कृतियों, परंपराओं और विचारों का एक संगम है।
  • सामाजिक सेवा: कई धार्मिक संगठन और स्वयंसेवी समूह कुंभ मेले के दौरान भोजन, आश्रय और चिकित्सा सेवा देते हैं।

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