सुनो भई साधो... आखिर क्यों सिर्फ घोटाले बेच रहे हैं अखबार?
लेखक पत्रकारिता की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं कि अब अखबारों में असल खबरें नहीं हैं। घोटाले की खबरें हर जगह हैं, लेकिन असल खबरें जैसे बिना घोटाले के काम करने वाली चीजें दिखानी चाहिए। पत्रकारिता की बुनियादी समझ और मेहनत की कमी है।
सुनो भाई साधो, मैं सोच रहा हूं, अखबार मंगवाना बंद कर दूं। फालतू का खर्चा है। खबर रहती ही नहीं। अखबार वालों में न्यूज़ सेंस नहीं बचा। आज का अखबार उठाया तो हैड लाइन थी- मेडिकल घोटाला। अब तुम ही सोचो, साधो यह कोई खबर है? घोटाला नहीं होगा तो क्या हवन होगा।
पत्रकारों में पत्रकारिता की बेसिक नॉलेज तक नहीं बची। साधो, तुम्हें तो मालूम है, पत्रकारिता की क्लास जिस पाठ से शुरू होती है, वह यह है- "कुत्ता आदमी को काटे तो यह खबर नहीं है,आदमी कुत्ते को काटे तो वह खबर है।"
यह बेसिक रूल है और इसी पर पूरी पत्रकारिता टिकी है पर इसी का पालन नहीं हो रहा है। तभी तो अखबार बोरिंग हो गये। अखबार पढ़कर नींद आ जाती है। दोबारा सो जाते हैं, लोग।
घोटाला न्यूज नहीं है, घोटाला तो नेचर है...
साधो, इन्हें कौन समझाये। अरे भाई, कहीं घोटाला न हो तो वह खबर है। घोटाला न्यूज नहीं है, घोटाला तो नेचर है। घोटाला हुआ- यह लिखकर तुमने कौन सी तोप चला दी। ये तो पूरी दुनिया को मालूम है कि हुआ है। और तुम जितना छाप रहे हो उससे ज्यादा हुआ है।
अखबार से ज्यादा तो हमारी कालोनी का चौकीदार जानता है। इतना बड़ा बांध बन गया और लोगों ने सिर्फ खाना खाया, पैसा किसी ने नहीं खाया- ब्रेकिंग न्यूज़ यह है। अस्पताल से कोई बिना लुटे पिटे आ गया। कपड़े नहीं उतरे और बच्चे का एडमिशन हो गया। सरकारी दफ्तर से कोई हंसता हुआ लौटा, बिना पैसा खाये पचास वर्ष से जिंदा- ऐसी खबरें खोजो। तब तो पत्रकारिता है।
पर इसमें मेहनत लगती है। मेहनत कौन करे? बस, आजूबाजू से कोई घोटाला उठाया और छाप दिया। घोटाला ढूंढने कहीं दूर थोड़े ही जाना है। घोटाले तो बिखरे पड़े हैं। आंखें बंद करके कंकर फेंकोगे तो किसी घोटाले पर ही गिरेगा।
लोग घोटाला नहीं करेंगे तो और क्या करेंगे? करने को और क्या है? माला जपेंगे क्या? सबके पेट हैं। और पेट बढ़ रहे हैं। पुल क्या जाने के लिए बनता है?पुल खाने के लिए बनता है। जाने के काम भी आ जाता है, वह दीगर बात है। कोई पुल केवल जाने के लिए बन जाये तो वह खबर है। ऐसे पुल तलाशो, भाई।