INDORE. मप्र में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण लागू करने को लेकर मंगलवार 12 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में 25 मिनट तक सुनवाई हुई। इस दौरान इस केस को लेकर हो रही लापरवाही पर सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश सरकार की कलई खोलकर रख दी। कई ऐसी टिप्पणी राज्य सरकार की कार्यशैली पर की गई जो तीखी थी।
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि इसमें कोई अंतरिम राहत नहीं पूरा फैसला होगा और इसे सितंबर माह में लगातार सुनेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने इसमें 23 सितंबर से सुनवाई की बात कही, वहीं कुछ अधिवक्ताओं ने इसे 24 सितंबर से सुनवाई पर रखने की मांग रखी।
सुप्रीम कोर्ट की अहम बातें...
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सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अंतरिम राहत देने से इंकार कर दिया, इसका वजह थी कि बेंच ने कहा कि 6 साल से यह केस चल रहा है 2019 से, यह काफी लंबा समय होता है।
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अभी तक राज्य सरकार सोई हुई थी आप सोए हुए थे। पूरी जिम्मेदारी आपके कंधों पर है
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यह समस्या आपके (राज्य सरकार) द्वारा पैदा की गई है। सरकार ने सारी याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर कर दी। फिर किसी को सुनवाई के लिए भी अपाइंट नहीं किया।
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अंतरिम भर्ती पर सुप्रीम कोर्ट संवेदनशील, सरकार का बेतुका जवाब
सुप्रीम कोर्ट से मप्र शासन की ओर से बार-बार मांग की गई कि हमे भी पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ की तरह अंतरिम राहत मिल जाए ताकि हम 27 फीसदी के आधार पर होल्ड 13 फीसदी पदों पर भर्ती कर दें। जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इतना समय हो गया फिर भी अंतरिम राहत मांग रहे हैं, यदि हमने फैसला विरूद्ध में दिया तो क्या करोगे।
इस पर मप्र शासन की ओर से जवाब दिया गया कि हम उनसे अंडरटेकिंग लेंगे और अंतिम फैसले के अधीन ही नियुक्ति की शर्त रहेगी, फैसला खिलाफ आया तो उन सभी को बाहर कर देंगे। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताई और कहा कि इससे लोगों की जिंदगी जुड़ी हुई है। ऐसे केजुअल नहीं ले सकते हैं।
सालिसिटर जनरल आखिरी में आए
वहीं इस मामले में अहम सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता अंतिम मिनट में पहुंचे, उन्होंने फिर वहीं छ्तीसगढ़ की तरह अंतरिम राहत की बात कही, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस पर चर्चा हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने तो साल 2022 को आदेश किया था, तब सुप्रीम कोर्ट ने और अन्य अधिवक्ताओं ने कहा कि केस 2019 से अटका हुआ है।
24 सितंबर को होगी सुनवाई
जस्टिस पी.एस.नरसिम्हा एवं जस्टिस ए.एस.चंदूरकार की खंड पीठ मे इस पर सुनवाई हुई। इसके बाद सभी मामलों को फाइनल सुनावई के लिए 24 सितंबर को सूचीबद्द किया और साथ ही कहा कि लगातार इसे सुनेंगे। साथ ही उन्होंने इससे संबंधित सभी ट्रासंफर याचिकाएं, एसएलपी, रिट पिटीशन सभी को बुला लिया है। ओबीसी वर्ग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ.अभिषेक मनु सिंघवी,अनूप जार्ज चौधरी,रामेश्वर सिंह ठाकुर सहित वरुण ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह ने पक्ष रखा !
27 फीसदी ओबीसी आरक्षण मामला | Hearing on 27% OBC reservation | 13 फीसदी होल्ड रिजल्ट
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27 फीसदी OBC आरक्षण केस में सुप्रीम कोर्ट की तीखी बातें- राज्य सरकार सोई है, समस्या उन्हीं ने पैदा की
12 अगस्त को मध्यप्रदेश में 27% ओबीसी आरक्षण मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की लापरवाही को लेकर तीखी टिप्पणी की। कोर्ट ने अंतरिम राहत देने से इंकार किया और कहा कि यह समस्या राज्य सरकार ने उत्पन्न की है। कोर्ट ने सितंबर में सुनवाई की बात कही।
Photograph: (thesootr)
INDORE. मप्र में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण लागू करने को लेकर मंगलवार 12 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में 25 मिनट तक सुनवाई हुई। इस दौरान इस केस को लेकर हो रही लापरवाही पर सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश सरकार की कलई खोलकर रख दी। कई ऐसी टिप्पणी राज्य सरकार की कार्यशैली पर की गई जो तीखी थी।
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि इसमें कोई अंतरिम राहत नहीं पूरा फैसला होगा और इसे सितंबर माह में लगातार सुनेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने इसमें 23 सितंबर से सुनवाई की बात कही, वहीं कुछ अधिवक्ताओं ने इसे 24 सितंबर से सुनवाई पर रखने की मांग रखी।
सुप्रीम कोर्ट की अहम बातें...
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अंतरिम राहत देने से इंकार कर दिया, इसका वजह थी कि बेंच ने कहा कि 6 साल से यह केस चल रहा है 2019 से, यह काफी लंबा समय होता है।
अभी तक राज्य सरकार सोई हुई थी आप सोए हुए थे। पूरी जिम्मेदारी आपके कंधों पर है
यह समस्या आपके (राज्य सरकार) द्वारा पैदा की गई है। सरकार ने सारी याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर कर दी। फिर किसी को सुनवाई के लिए भी अपाइंट नहीं किया।
अंतरिम भर्ती पर सुप्रीम कोर्ट संवेदनशील, सरकार का बेतुका जवाब
सुप्रीम कोर्ट से मप्र शासन की ओर से बार-बार मांग की गई कि हमे भी पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ की तरह अंतरिम राहत मिल जाए ताकि हम 27 फीसदी के आधार पर होल्ड 13 फीसदी पदों पर भर्ती कर दें। जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इतना समय हो गया फिर भी अंतरिम राहत मांग रहे हैं, यदि हमने फैसला विरूद्ध में दिया तो क्या करोगे।
इस पर मप्र शासन की ओर से जवाब दिया गया कि हम उनसे अंडरटेकिंग लेंगे और अंतिम फैसले के अधीन ही नियुक्ति की शर्त रहेगी, फैसला खिलाफ आया तो उन सभी को बाहर कर देंगे। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताई और कहा कि इससे लोगों की जिंदगी जुड़ी हुई है। ऐसे केजुअल नहीं ले सकते हैं।
सालिसिटर जनरल आखिरी में आए
वहीं इस मामले में अहम सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता अंतिम मिनट में पहुंचे, उन्होंने फिर वहीं छ्तीसगढ़ की तरह अंतरिम राहत की बात कही, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस पर चर्चा हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने तो साल 2022 को आदेश किया था, तब सुप्रीम कोर्ट ने और अन्य अधिवक्ताओं ने कहा कि केस 2019 से अटका हुआ है।
24 सितंबर को होगी सुनवाई
जस्टिस पी.एस.नरसिम्हा एवं जस्टिस ए.एस.चंदूरकार की खंड पीठ मे इस पर सुनवाई हुई। इसके बाद सभी मामलों को फाइनल सुनावई के लिए 24 सितंबर को सूचीबद्द किया और साथ ही कहा कि लगातार इसे सुनेंगे। साथ ही उन्होंने इससे संबंधित सभी ट्रासंफर याचिकाएं, एसएलपी, रिट पिटीशन सभी को बुला लिया है। ओबीसी वर्ग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ.अभिषेक मनु सिंघवी,अनूप जार्ज चौधरी,रामेश्वर सिंह ठाकुर सहित वरुण ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह ने पक्ष रखा !
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