New Delhi. जाने माने शायर मिर्जा गालिब ( Mirza Ghalib ) का एक शेर है कि ‘है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूं, वर्ना क्या बात कर नहीं आती।’ देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस ( Congress ) के लिए यह शेर आजकल मुफीद है। पार्टी के नेता अपने ही दल के ‘हालात’ पर कुछ बोलना चाहते हैं, लेकिन ‘असहज नेतृत्व’ ( Highcommand ) के सामने चुप रहते हैं। नतीजा, पार्टी छोड़ दूसरे दलों में जा रहे हैं, ताकि ‘जुबान पर लगे ताले’ के कुछ पेंच तो खुल जाएं। ताजा मसला सुरेश पचौरी ( Suresh Pachouri ) का है। पार्टी के इस कद्दावर नेता ने बीजेपी में जाकर यह बता दिया है कि कांग्रेस में बहुत कुछ ठीक नहीं चल रहा है। इस नेता की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब प्रधानमंत्री राजीव गांधी ( Rajiv Gandhi ) ने अयोध्या ( Ayodhya ) स्थित राममंदिर (Rammandir) का ताला खोलने का आदेश जारी किया था, तब पचौरी उनके साथ थे। रुतबा यह था कि वह उन गिने-चुने नेताओं में शामिल रहे, जो सीधे 10 जनपथ (कांग्रेस नेता सोनिया गांधी का निवास) में बे-तकल्लुफ प्रवेश कर जाते थे।
सुरेश पचौरी का कांग्रेस में कैरियर
‘रोम जल रहा है और नीरो बांसुरी बजा रहा है।’
देश की राजनीति में कांग्रेस के लिए घबराने वाली खबर यह है कि उसके जमीनी व नामी नेता धीरे-धीरे पार्टी को राम-राम कर रहे हैं। इसके बावजूद कांग्रेस नेतृत्व इस पर अभी भी गंभीरता नहीं दिखा रहा है। विरोधी दल के नेता कह रहे हैं कि ‘रोम जल रहा है और नीरो बांसुरी बजा रहा है।’ कांग्रेस आलाकमान और उससे जुड़े सोशल मीडिया के परजीवी नेता बस एक ही आरोप जड़ देते हैं कि इस ‘दिल-बदल’ में बीजेपी का षडयंत्र शामिल है। फिलहाल हम इस मसले को आगे नहीं ले जा रहे हैं क्योंकि यह तो ‘हरि अनंत-हरि कथा अनंता’ वाली बात हो जाएगी। हम बस यह बताना चाहते हैं कि कांग्रेस कि इस दमदार नेता का कद क्या था और ऐसे क्या कारण थे कि जिस पार्टी से वह युवा जीवन से जुड़े हुए थे, उससे उन्होंने जीवन की सांध्यबेला में किनारा कर लिया?
राजीव गांधी ने उनको परखा और परवान चढ़ाया
सुरेश पचौरी की कांग्रेस पार्टी में इतनी पैठ थी कि वह चार बार राज्यसभा के सदस्य रहे। उन्होंने कांग्रेस सरकार में रक्षा मंत्रालय व अन्य विभाग संभाले। वह वर्ष 1972 से पार्टी से जुड़े थे, जब उनके तन-मन में जोश भरा हुआ था। मध्यप्रदेश से शुरू हुआ उनका राजनीतिक जीवन लुटियंस की दिल्ली में आकर खूब परवान चढ़ा। पार्टी नेता व पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें परखा और उनके पंखों को ‘पर’ लग गए। सूत्र बताते हैं कि जब शाहबानो प्रकरण में कांग्रेस की किरकिरी हो रही थी, उससे पार पाने के लिए साल 1986 में राजीव गांधी ने जब अयोध्या स्थित राममंदिर का ताला खोलने के आदेश जारी किए थे, तब पचौरी उनके साथ थे। माना जा रहा है कि इस मसले पर उन्होंने भी अपनी सलाह दी थी।
10 जनपथ तक सीधी थी पहुंच
सुरेश पचौरी को गांधी परिवार के बेहद करीबी माना जाता है। राजनैतिक गलियारों में अब भी यह सुना जाता है कि सुरेश पचौरी, अहमद पटेल, जनार्दन पुजारी जैसे नेता ही बिना किसी ‘भव-बाधा’ के 10 जनपथ में प्रवेश कर जाते थे। हाईकमान से वह सीधे मिल सकते थे। गांधी परिवार की नजदीकी के कारण ही वह चार बार राज्यसभा के सदस्य रहे। असल में उनका एक अलग कलेवर और तेवर था, जिसे गांधी परिवार पसंद करता था। लेकिन बताते हैं कि पार्टी नेता राहुल गांधी व मध्यप्रदेश के पार्टी के धाकड़ नेताओं से उनके सहज संबंध नहीं थे। राहुल गांधी के आदेश पर ही उन्हें एक बार राज्य में विधानसभा का चुनाव लड़ना पड़ा, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा। फिलहाल कांग्रेस नेतृत्व के मौजूदा व्यवहार ने उन्हें मौन बना दिया था, लेकिन जब मुखर हुए तो उन्होंने पार्टी को सांसत में डाल दिया।