एक 95 वर्षीय बुजुर्ग की जमीन हड़पने के मामले में जबलपुर के अधारताल तहसीलदार हरि सिंह धुर्वे (Tehsildar Hari Singh Dhurve ) द्वारा दायर की गई जमानत याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। तहसीलदार की गिरफ्तारी के बाद पूरे प्रदेश मे तहसीलदारों, नायब तहसीलदारों और राजस्व कर्मियों ने मध्य प्रदेश राजस्व अधिकारी (क.प्रशा. सेवा) संघ के बैनर तले कलम बंद हड़ताल कर दी थी। हड़ताल समाप्त करते हुए संगठन के द्वारा एक पत्र भी जारी किया गया था। इस पत्र में यह आश्वासन दिया गया था कि सरकार आरोपी तहसीलदार की जमानत का विरोध नहीं करेगी, लेकिन सरकार इस भ्रष्टाचारी तहसीलदार के समर्थन में खड़ी हुई नजर नहीं आई। क्योंकि हाईकोर्ट में जमानत याचिका का पुरजोर विरोध किया गया।
विजयनगर थाने में दर्ज
अधारताल तहसील अंतर्गत एक 95 वर्षीय बुजुर्ग की जमीन फर्जी वसीयतनामा के आधार पर तहसीलदार हरि सिंह धुर्वे के आदेश अनुसार नामान्तरित की गई थी। इस मामले में जांच में सामने आया था कि आरोपी तहसीलदार ने पटवारी और कंप्यूटर ऑपरेटर सहित अन्य के साथ मिलकर फर्जी तरीके से इस जमीन को हस्तांतरित किया था। जांच के बाद इस मामले में जबलपुर के विजयनगर थाने में एफआईआर दर्ज की थी और आरोपी तहसीलदार को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था।
जांच में सामने आया था फर्जीवाड़ा
तहसीलदार हरि सिंह धुर्वे के सामने एक म्यूटेशन (नामांतरण) का आवेदन प्रस्तुत किया गया था। इस आवेदन के आधार पर उन्होंने दिनांक 8 अगस्त 2023 को आदेश पारित किया था, जिसमें शिवचरण पांडे नामक व्यक्ति ने आपत्ति जताते हुए अपील दायर की थी। यह आपत्ति एमपी भू-राजस्व संहिता की धारा 44 के तहत की गई थी। इसके बाद, अनुविभागीय अधिकारी (एसडीओ) अधारताल ने जांच कर यह पाया कि म्यूटेशन प्रक्रिया में गड़बड़ी हुई है। एसडीओ ने इस आदेश को रद्द करते हुए शिवचरण पांडे के पक्ष में नामांतरण का निर्देश दिया और कलेक्टर को उचित कार्रवाई का प्रस्ताव भेजा। कोर्ट में इस मामले की सुनवाई में यह सामने आया कि तहसीलदार ने एक ऐसे आवेदन पर कार्यवाही की थी जिसमें आवेदक का नाम या दिनांक तक नहीं लिखी हुई थी।
अधिवक्ता ने यह रखा पक्ष
तहसीलदार हरि सिंह धुर्वे के वकील ने अदालत में यह तर्क दिया कि उन्होंने अर्ध न्यायिक शक्तियों का उपयोग करते हुए यह आदेश पारित किया था, जो पूरी तरह से विधि सम्मत था। वकील ने "न्यायाधीश संरक्षण अधिनियम" का हवाला देते हुए कहा कि तहसीलदार का कार्यक्षेत्र न्यायिक प्रकृति का था और इसलिए उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जानी चाहिए। वकील ने इसी प्रकार के अन्य मामलों में उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसलों का हवाला देते हुए अपनी दलील को मजबूती प्रदान की।
सरकार की ओर से अभियोजन पक्ष ने की गंभीर आपत्ति
अभियोजन पक्ष के वकील ने इस याचिका का विरोध करते हुए कहा कि तहसीलदार ने म्यूटेशन प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताएं की थीं। उन्होंने आरोप लगाया कि आदेश ऐसे व्यक्ति के खिलाफ एकतरफा पारित किया गया था जिसकी उम्र लगभग 95 वर्ष थी। इस तरह तहसीलदार ने अपने साथियों के साथ मिलकर एक व्यक्ति की करोड़ों रुपए की जमीन हड़प ली है और अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया है।यह भी तर्क दिया गया कि तहसीलदार ने बिना वैध दस्तावेजों और उचित प्रक्रिया का पालन किए हुए म्यूटेशन आदेश जारी किया था। इसके साथ ही आरोपी की अधिवक्ता के द्वारा अदालत में जिन फैसलों का जिक्र किया गया था उन पर भी शासकीय अधिवक्ता ने यह तथ्य रखे कि उन मामलों में इस तरह से नियमों को ताप पर रखकर फर्जीवाड़ा नहीं किया गया था । इसलिए आरोपी को जमानत का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए।
हाईकोर्ट ने जमानत याचिका खारिज की
इस जमानत याचिका की सुनवाई जबलपुर हाईकोर्ट में जस्टिस मनिंदर एस भट्टी की कोर्ट में हुई । हाईकोर्ट ने केस डायरी और संबंधित दस्तावेजों का गहन अध्ययन किया। अदालत ने पाया कि म्यूटेशन के लिए प्रस्तुत किए गए आवेदन में जरूरी जानकारी जैसे आवेदक का नाम और तारीख तक नहीं लिखी गई थी। फिर भी तहसीलदार ने इसे स्वीकार करते हुए आदेश पारित कर दिया। म.प्र. भू-राजस्व संहिता की धारा 110(3) के तहत, तहसीलदार को सभी पक्षकारों को सुनवाई का मौका देना होता है, जिसका पालन नहीं किया गया था। हाईकोर्ट ने यह भी देखा कि हरि सिंह धुर्वे ने निर्धारित प्रारूप का भी उल्लंघन किया है, और ऐसे आवेदन पर आदेश पारित किया जो वैध रूप में प्रस्तुत ही नहीं हुआ था। हाई कोर्ट ने यह पाया कि तहसीलदार की भूमिका की गहराई से जांच की जानी चाहिए और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी आवश्यक है। इसके साथ ही तहसीलदार की जमानत याचिका को खारिज को कर दिया गया।
हरि सिंह धुर्वे के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है तेज
हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद अधारताल तहसीलदार हरि सिंह धुर्वे के खिलाफ कार्रवाई तेज हो सकती है। जानकारी के अनुसार तहसीलदार और पटवारी की जोड़ी नाम मिलकर जो अन्य करनामे किये है वह भी जल्द उजागर हो सकते हैं। क्योंकि हाई कोर्ट के फैसले के बाद अब तहसीलदार को जज प्रोटेक्शन एक्ट का फायदा मिलता हुआ नजर नहीं आ रहा । यह फैसला स्पष्ट करता है कि म्यूटेशन और अन्य राजस्व संबंधी मामलों में कानून के सभी प्रावधानों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए अन्यथा मलाईदार पदों पर बैठे लोगों को भी जेल पहुचने में देरी नहीं लगेगी।
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