मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन ( religious city ujjain ) पूरी दुनिया में 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक महाकाल मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। हाल ही में शहर में विकास की दृष्टि से कोई बाधा न हो, इसके लिए सभी धर्मों के नागरिकों ने आपसी तालमेल और समन्वय से जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए जिला प्रशासन ( district administration ) को सहयोग प्रदान करते हुए धार्मिक सौहार्द्र का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है।
प्रशासन ने विकास के लिए बनाई सहमति
प्रशासन की संयुक्त टीम ने जन सहयोग से गुरुवार-शुक्रवार यानी 23 और 24 मई को दो दिन में मार्ग के 18 धार्मिक स्थलों के आगे हिस्से को तोड़ने व उन्हें अन्यत्र शिफ्ट करने का काम किया है। अब जिम्मेदार अधिकारी इस मार्ग पर बिजली के पोल, तार खींचने, अधूरे नाली निर्माण के काम की तरफ आगे बढ़ रहे हैं। केडी गेट से इमली तिराहा वाले इस मार्ग में तीन चौराहे बनाए जाएंगे। सबसे बड़ा चौराहा लालबाई-फूलबाई माता मंदिर के यहां बनेगा। इसके लिए एक तरफ पाटीदार धर्मशाला व दूसरी तरफ दो भवनों की जमीन ली जा रही है। चौराहे पर माताजी के दोनों मंदिर के बीच में से और आसपास से रास्ता रहेगा।
धार्मिक भावना का विशेष ध्यान रखा
कलेक्टर नीरज कुमार सिंह और पुलिस अधीक्षक प्रदीप शर्मा के निर्देशानुसार धार्मिक स्थलों को हटाने से पूर्व और दौरान प्रत्येक संप्रदाय के व्यस्थापकों और प्रमुख लोगों से चर्चा की गई और समन्वय स्थापित किया गया। कलेक्टर सिंह के निर्देशानुसार किसी भी संप्रदाय की धार्मिक भावना आहत न हो, इस बात का विशेष ध्यान रखा गया। निगमायुक्त आशीष पाठक ने बताया कि चौड़ीकरण में जनता खूब सहयोग कर रही है। बिजली के पोल पर लाइन खींचने की तैयारी की जा रही है। प्रयास करेंगे कि जनता का कम से कम नुकसान हो।
क्या है पूरा मामला ?
उज्जैन शहर के केडी मार्ग के चौड़ीकरण का कार्य इस समय प्रगति पर है, वहीं केडी गेट तिराहें से तीन इमली चौराहे मार्ग में सभी धर्मों के 18 धार्मिक स्थल एवं निजी भवन विकास में बाधा बन रहे थे, जिन्हें स्थानीय नागरिकों के जनसहयोग व आपसी सामंजस्य, समन्वय व स्वेच्छा से शांतिपूर्वक ढंग से हटाने की कार्रवाई की गई हैं। जिसमें धार्मिक स्थलों के व्यवस्थापकों, पुजारियों और लोगों द्वारा भी सहयोग किया गया।18 धार्मिक स्थलों में 15 मंदिर, 2 मस्जिद, एक मजार हैं, जिन्हें पीछे करने और अन्यत्र स्थापित करने की कार्रवाई की गई हैं। हटाई गई प्रतिमाओं को प्रशासन द्वारा धार्मिक स्थलों के व्यवस्थापकों द्वारा बताए गए निर्धारित स्थान पर विधि विधान से स्थापित किया गया। साथ ही, 20 से अधिक घरों का आगे का हिस्सा बढ़ा हुआ था, इसलिए उनके मालिकों ने स्वेच्छा से उस हिस्से को तोड़ दिया।