हर साल महाकाल अपनी नगरी के भ्रमण पर निकलते हैं और नगरवासियों का हाल जानते हैं। भगवान महाकालेश्वर को उज्जैन नगरी का राजाधिराज महाराज माना जाता है। महाकाल की शाही सवारी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। मान्यता है कि भगवान महाकाल की शरण में आए बिना इस नगरी का पत्ता भी नहीं हिलता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शाही सवारी क्यों निकाली जाती है और यह यशस्वी परंपरा का इतिहास क्या है......
बाबा की सवारी कब से कब तक निकलेगी
सावन के महीने में उज्जैन महाकालेश्वर में बाबा महाकाल की सवारी की तैयारियां जोर-शोर के बीच पूरी हो चुकी हैं। अगर आप भी महाकाल की सवारी के लिए उत्सुक हैं। तो हम आपको बता दें कि 22 जुलाई को बाबा महाकाल की पहली सवारी निकाली जाएगी। इस दिन अपने भक्तों का हाल जानने के लिए बाबा महाकाल खुद नगर भ्रमण पर निकलेंगे। उनकी शाही सवारी 2 सितंबर को निकाली जाएगी।
महाकाल सवारी का शेड्यूल
पहली सवारी- 22 जुलाई
दुसरी सवारी- 29 जुलाई
तीसरी सवारी- 5 अगस्त
चौथी सवारी- 12 अगस्त
पांचवी सवारी- 19 अगस्त
छटी सवारी - 26 अगस्त
शाही सवारी- 2 सितंबर
इन रास्तों से गुजरेंगे महाकाल
मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में श्री महाकालेश्वर की सवारी महाकालेश्वर मंदिर से महाकाल लोक, गुदरी चौराहा, बक्षी बाजार, कहारवाड़ी से होते हुए रामघाट शिप्रा तट पहुंचेगी। यहां से वापसी में सवारी रामानुज कोट, मोढ़ की धर्मशाला, कार्तिक चौक, खाती समाज मन्दिर, सत्यनारायण मन्दिर, ढाबा रोड, टंकी चौराहा, छत्री चौक, गोपाल मन्दिर, पटनी बाजार और गुदरी बाजार होते हए श्री महाकालेश्वर मंदिर आएगी।
महाकाल की सवारी का इतिहास
पहले सावन महीने में महाकाल की सवारी नहीं निकलती थी, सिर्फ सिंधिया वंशजों के सौजन्य से महाराष्ट्रीयन पंचाग के अनुसार दो या तीन सवारी ही निकलती थीं। एक बार उज्जयिनी के प्रकांड ज्योतिषाचार्य पद्मभूषण स्व. पं. सूर्यनारायण व्यास के निवास पर कुछ विद्वजन के साथ कलेक्टर भी बैठे थे। आपसी विमर्श में परस्पर सहमति से तय हुआ कि क्यों न इस बार सावन के आरंभ से ही सवारी निकाली जाए। सवारी निकाली गई और उस समय उस प्रथम सवारी का पूजन सम्मान करने वालों में तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह, राजमाता सिेंधिया व शहर के गणमान्य नागरिक मौजूद रहे। सभी पैदल सवारी में शामिल हुए और इस तरह एक खूबसूरत परंपरा का आगाज हो गया।
सिंधिया परिवार ने शुय की परंपरा
सिंधिया परिवार की ओर से शुरू की गई ये परंपरा आज भी जारी है। पहले महाराज स्वयं शामिल होते थे, बाद में राजमाता नियमित इस यात्रा में शामिल होती रहीं और आज भी उनका कोई ना कोई प्रतिनिधित्व सम्मिलित होता है। महाकालेश्वर मंदिर में एक अखंड दीप भी आज भी उन्हीं के सौजन्य से जलता है।
महाकाल की सवारी का महत्व
भक्त महाकाल को उनकी पसंद के भोग अर्पित करते हैं। इन भोगों में फूल, फल, मिठाई, दूध शामिल होते हैं। महाकाल की सवारी के दौरान कई भक्त महाकाल के जयकारे लगाते हैं और उनके नाम का जाप करते हैं। महाकाल की सवारी एक भव्य और पवित्र जुलूस है, जो महाकाल के प्रति श्रद्धा और भक्ति दर्शाता है, उज्जैन शहर के साथ साथ अब दूर-दूर से लोग महाकाल की एक झलक पाने के लिए यहां पहुंचते हैं।
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