BHOPAL. प्रदेश में बदहाली का शिकार शिक्षा व्यवस्था पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने भी चिंता जताई है। ये बात सरकार के लिए इसलिए शर्मनाक है क्योंकि विद्यार्थी परिषद आरएसएस का अनुषांगिक संगठन है। बीजेपी के नेता और सरकारें आरएसएस की नीति-निर्देश और सिद्धांतों पर चलती है। हाल ही में गुना में संपन्न हुए एबीवीपी के प्रांतीय अधिवेशन में शिक्षा के गिरते स्तर पर शिक्षकों की कमी पर चर्चा सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रही है।
इससे पहले भी एबीवीपी शिक्षा संस्थानाओं में फैली अव्यवस्थाओं को लेकर बीजेपी सरकार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन करती आ रही है। कॉलेज और स्कूली शिक्षा की बदहाली के अलावा अधिवेशन में छात्रों के डिजिटल अरेस्ट की घटनाओं, नशे के बढ़ते कारोबार, छात्राओं में असुरक्षा के मुद्दों पर भी गहरी चिंता जताई गई है। ये सभी वे मुद्दे हैं जिनको लेकर विपक्ष भी सरकार को घेरता आ रहा है। यानी अब बीजेपी सरकार विपक्ष के साथ ही आरएसएस के अनुषांगिक संगठन के भी निशाने पर है।
स्कूलों में शिक्षकों के 70 हजार पद खाली
एबीवीपी को वैसे तो बीजेपी का सहयोगी माना जाता है सिद्धांत के मामले में ये संगठन ज्यादा तटस्थ है। इसका अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि सीएम डॉ.मोहन यादव के अतिथि होने के बावजूद परिषद ने उनकी सरकार की कमियों पर पर्दा नहीं डाला। अधिवेशन में एबीवीपी के राष्ट्रीय संगठन मंत्री आशीष चौहान, अध्यक्ष डॉ.धर्मेन्द्र राजपूत, प्रांत मंत्री केतन चतुर्वेदी और राष्ट्रीय कार्यसमिति की सदस्य डॉ.निधि बहुगुणा भी मौजूद थीं। कमियों पर चर्चा और चिंतन के बाद प्रस्ताव तैयार कर सरकार को सलाह दी है। अधिवेशन में सामान्य सरकारी स्कूलों के साथ ही उच्च प्राथमिकता वाले सीएम राइज स्कूलों में भी शिक्षक व संसाधनों पर भी चिंता की गई। पदाधिकारियों ने माना है कि शिक्षकों की कमी की वजह से शिक्षा व्यवस्था चरमरा चुकी है। 1275 स्कूल शिक्षकों के बिना चल रहे हैं। 22,000 स्कूल एक_एक शिक्षक के भरोसे है। शिवपुरी जिले में तो 420 स्कूल एक-एक शिक्षक संभाल रहे हैं। वहीं 3500 स्कूलों में एक भी एडमिशन नहीं हुआ। प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षकों के 70 हजार से ज्यादा पद खाली पड़े हैं।
कॉलेज में प्राध्यापकों के बिना हो रही पढ़ाई
प्रांतीय अधिवेशन में प्रदेश की उच्च शिक्षा पर भी असंतोष सामने आया है। सरकार भले ही बड़े दावे कर रही है लेकिन एबीवीपी ने गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा को नाकाफी माना है। अधिवेशन में प्रदेश के सरकारी कॉलेजों में प्राध्यापकों के साथ ही नियमित प्राचार्यों की कमी पर भी चिंता जताई गई है। प्रदेश के ज्यादातर कॉलेज गेस्ट फैकल्टी के सहारे हैं। कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर्स के 3715 और प्रोफेसर्स के 457 पद खाली हैं। 264 लायब्रेरियन और 267 स्पोर्ट्स ऑफीसरों की कमी है। अधिवेशन के दौरान प्रदेश के विश्वविद्यालयों की हालत भी चिंताजनक बताई गई। भोपाल स्थित बरकतउल्ला विश्वविद्यालय में केवल 37, ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय में 27 और जबलपुर के रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय केवल 19 नियमित प्रोफेसर्स के भरोसे चल रहे हैं। कई विभागों में तो एक भी प्रोफेसर नहीं है। वहीं कुलसचिव, फायनेंस ऑफीसर और एग्जाम कंट्रोलर के पद प्रतिनियुक्ति के भरोसे हैं।
इन मुद्दों पर भी हुआ चिंतन-मंथन
1. डिजिटल अरेस्ट एवं ऑनलाइन धोखाधड़ी की वारदातों के शिकार लोग जमापूंजी गंवा रहे हैं। वृद्धजन, महिलाएं और छात्रों को डिजिटल अरेस्ट के जरिए प्रताड़ित कर उनसे ठगी की जा रही है। ऐसी वारदातों को रोकने सरकार को त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए।
2.बड़ी संख्या में युवा नशे का शिकार बन रहे हैं। इसके कारण आपराधिक वारदातें भी बढ़ रही हैं। मंहगे और प्रतिबंधित नशीले पदार्थों की बिक्री बिना संरक्षण संभव नहीं। सरकार को युवा पीढ़ी को खोखला करने वाले ऐसे संगठित नेटवर्क को सख्ती से ध्वस्त करना होगा।
3.शैक्षणिक संस्थाओं में छात्राओं से दुष्कर्म की घटनाएं चिंता बढ़ाने वाली हैं। बीते 6 माह में प्रदेश में ऐसी 11 वारदातें दर्ज की गई हैं इससे परिजनों में बच्चियों को लेकर असुरक्षा का भाव है। इन पर अंकुश लगाने और पीढ़ितों को न्याय दिलाने सख्ती जरूरी है।
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