यहां राम- राम नहीं बोला जाता है जय लकेंश, क्योंकि इस गांव में राक्षस के वध के बाद रावण ने किया था आराम

मध्‍य प्रदेश के विदिशा में आज भी बच्चा हो या बड़ा उसकी जुबान पर राम- राम नहीं जय लकेंश होता है। तो आइए आपको बताते हैं कि लंकापति रावण इस गांव में कैसे आए और यहां उनकी तलवार की आज भी मौजूद है..

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Ravi Singh
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Ravan Village : दशहरे के अवसर पर एक तरफ पूरे देशभर में रावण दहन कर सत्य पर असत्य की जीत होती है। लेकिन मध्य प्रदेश में एक ऐसा गांव  है, जहां पर प्रभु श्री राम नहीं रावण की पूजा होती है। यहां आज भी बच्चा हो या बड़ा उसकी जुबान पर राम- राम नहीं जय लकेंश होता है। तो आइए आपको बताते हैं कि लंकापति रावण इस गांव में कैसे आए और यहां उनकी तलवार की आज भी मौजूद है..

मंदिर में लंकेश्वर की 6 फीट लंबी प्रतिमा

विदिशा से 40 किलोमीटर दूर नटेरन तहसील से मात्र 6 किलोमीटर की दूरी पर रावण गांव है। यहां रावण बाबा नाम से प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर भी है। मंदिर में लंकेश्वर की 6 फीट लंबी प्रतिमा है। जो लेटी हुई है। मंदिर के पुजारी का कहना है कि उत्तर दिशा में 3 किलोमीटर की दूरी पर बुधे की पहाड़ी है, जहां प्राचीन समय में बुधे नाम का राक्षस रहता था। जो रावण बाबा से युद्ध करना चाहता था। लेकिन जब वह लंका पहुंचा और वहां की चकाचौंध भरी दृश्यावली देखी तो उसकी शक्ति कम जाती थी।

आज भी मौजूद है रावण की तलवार

एक दिन लंका राजा रावण ने इस राक्षस से पूछा कि तुम हर बार दरबार में आते हो और बिना कुछ बताए चले जाते हो। तब बुधे राक्षस ने कहा कि महाराज मैं हर बार आपसे युद्ध करना चाहता हूं। लेकिन यहां आने में मेरी शक्ति समाप्त हो जाती है। जिसके बाद रावण ने कहा कि मैं तुमसे युद्ध करने जरुर आउंगा। तुम तैयारी कर लो। इसके कुछ समय बाद रावण इस गांव में आया और पास ही पहाड़ी पर जाकर बुधे राक्षस से युद्ध कर उसको मार दिया। मारने के बाद लंकेश ने यहीं आराम किया। और पास में तलवार भी रख दी। उसी समय से लकेंश की लेटी हुई मुर्ति की पूजा की जाती है। और आज भी रावण की वह तलवार वहीं मौजूद है।

रावण बाबा की महिमा

जब भी यहां कोई हवन, पूजन या बड़ा उत्सव मनाया जाता है तो सबसे पहले यहां रावण की पूजा की जाती है। गांव में जब भी शादी या कोई समारोह होता है तो उसकी शुरुआत रावण की नाभि में तेल भरकर की जाती है। मंदिर से सटा एक तालाब भी है जिसकी भी अपनी अलग महिमा है। उसके अंदर रावण की एक प्राचीन तलवार है और लोग उस तालाब के पानी को गंगा की तरह पवित्र मानते हैं। गांव वालों का कहना है कि अगर कोई भी शुभ कार्य करने से पहले रावण बाबा के यहां पूजा नहीं करते हैं तो उसके यहां चुल्हा भी नहीं जल पता है।

दशहरे पर शौक मनाया जाता है

रावण गांव के लोगों का मानना है कि चरणामृत के समान तालाब का पानी पीने से कई तरह की बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं। जब पानी खत्म हो जाता है तो लोग इसकी मिट्टी से अपने बाल धोते हैं और स्नान करते हैं। जिससे किसी भी तरह का चर्म रोग ठीक हो जाता है। मंदिर और तालाब के प्रति लोगों की इतनी आस्था है कि जब भी कोई गांव में कोई गाड़ी खरीदता है तो उस पर रावण बाबा का नाम जरूर लिखवाता है। और जब भी मंदिर के पास से गुजरता है तो गाड़ी या किसी और गाड़ी का हॉर्न बजाता है या बाबा को प्रणाम करता है। लोग अपने शरीर पर रावण बाबा की जय भी लिखवाते हैं। जहां  पूरे देशभर में रावण दहन कर दशहरा पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। वहीं दूसरी ओर इस गांव में इसका शोक मनाया जाता है।

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