दिग्विजय सिंह भूल गए कानून, आचार संहिता में मासूम पोते से करवा रहे अपना प्रचार

राजगढ़ लोकसभा से कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह के पोते सहस्त्रजय सिंह को इन दिनों अपने दादा के चुनाव प्रचार में अक्सर ही देखा जा रहा है। सहस्त्रजय सिंह अपने पिता जयवर्धन सिंह के साथ राघौगढ़ विधानसभा के कई गांवों में घूमते नजर आए।

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राजगढ़ लोकसभा से चुनाव में उतरे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह वैसे तो राजनीति के साथ कानून के भी अच्छे जानकार हैं, लेकिन इन दिनों चुनाव प्रचार में आचार संहिता की धज्जियां उड़ा रहे हैं। निर्वाचन आयोग के साफ निर्देशों के बावजूद अपने मासूम पोते को रैलियों और सभाओं में शामिल करके वह न सिर्फ चुनाव आयोग के निर्देशों की अवहेलना कर रहे हैं, बल्कि बच्चों के हितों के लिए बने कई नियमों का भी पालन भी नहीं कर रहे। यहां तक की कोर्ट के आदेशों की अवहेलना भी खुलेआम हो रही है।

मासूम पोते के भरोसे चुनाव प्रचार 

राजगढ़ लोकसभा से कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह के पोते सहस्त्रजय सिंह को इन दिनों अपने दादा के चुनाव 2024 के प्रचार में अक्सर ही देखा जा रहा है। सहस्त्रजय सिंह अपने पिता जयवर्धन सिंह के साथ राघौगढ़ विधानसभा के कई गांवों में घूमते नजर आए। उन्होंने गांव- गांव जाकर लोगों से अपने दादाजी के लिए भी समर्थन मांगा, मगर क्या सहस्त्रजय को चुनाव का मतलब भी पता है? एक मासूम बच्चा अपने दादा दिग्विजय सिंह द्वारा निकाली जा रही वादा निभाओ यात्रा में शामिल हो रहा है। इतना ही नहीं उससे भाषण भी करवाया गया। बता दें कि पिछले साल 2023 में विधानसभा चुनाव में भी वे अपने पिता के समर्थन में नजर आए आए थे। 

चुनाव आयोग लगा चुका है रोक

चुनाव प्रचार में बच्चों के उपयोग को लेकर आचार संहिता लागू होने से पहले ही चुनाव आयोग रोक लगा चुका है। लोकसभा चुनाव ( Lok Sabha Election 2024 ) से पहले चुनाव आयोग ( Election Commission ) ने राजनीतिक पार्टियों के लिए प्रचार से जुड़ी सख्त गाइडलाइन जारी की थी। इसमें साफ कहा गया था कि चुनाव प्रचार में बच्चों और नाबालिग को शामिल नहीं किया जाएगा। आयोग के निर्देश हैं कि अगर कोई उम्मीदवार गाइडलाइन का उल्लंघन करते पाया जाएगा तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। 

यह है चुनाव आयोग की गाइडलाइन

आचार संहिता लागू होने से पहले ही 5 जनवरी को चुनाव आयोग ने सख्त निर्देश जारी किए थे। इसके तहत चुनाव प्रचार में बच्चों या नाबालिगों को शामिल करने पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है। आयोग ने पार्टियों और उम्मीदवारों द्वारा चुनावी प्रक्रिया के दौरान किसी भी तरह से बच्चों को शामिल करने के प्रति 'जीरो टॉलरेंस' की बात कही है। आयोग के निर्देश हैं कि "राजनीतिक दल बच्चों को किसी भी प्रकार के चुनाव अभियान में शामिल न करें, जिसमें रैलियां, नारे लगाना, पोस्टर या पैम्फलेट का वितरण, या कोई अन्य चुनाव-संबंधी गतिविधि शामिल है।" इसके साथ ही आयोग ने कहा कि राज नेताओं और उम्मीदवारों को किसी भी तरह से प्रचार गतिविधियों में बच्चों को शामिल नहीं करना चाहिए। इसमें बच्चे को गोद में लेना, वाहन में बच्चे को ले जाना या रैलियों में शामिल करना तक शामिल है। 

आयोग की गाइडलाइन के अनुसार, राजनीतिक दलों/उम्मीदवारों द्वारा कविता, गीत, बोले गए शब्दों, प्रतीक चिन्हों, राजनीतिक दल की विचारधारा, उनकी उपलब्धियों को बढ़ावा देने सहित किसी भी तरीके से राजनीतिक अभियान से जुड़ी गतिविधियों में बच्चों को शामिल करने पर रोक रहेगी। 

बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले का हवाला

चुनाव आयोग ने गाइडलाइन जारी करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया है। 2014 को दिए एक फैसले में कोर्ट ने यह सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया था कि राजनीतिक दल बच्चों को चुनाव प्रचार में शामिल न करें और अपने उम्मीदवारों को भी इसकी अनुमति न दें। 

दिग्विजय को परिवार को स्थापित करने की चिंता 

इस मामले में मध्यप्रदेश बीजेपी के मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल ने कहा कि चुनाव आयोग के निर्देशों के विरुद्ध यदि बच्चे को चुनावी सभा और कैंपेन में दिग्विजय सिंह ले जा रहे हैं तो इस पर आयोग को स्वतः संज्ञान लेना चाहिए। वैसे भी दिग्विजय सिंह नियम, कायदे और मर्यादाओं को तोड़ने के लिए जाने जाते हैं। वे केवल अपने प्रचार के साथ-साथ परिवार को स्थापित करने की चिंता है। इसीलिए पौत्र को चुनावी सभाओं में ले जा रहे हैं। 

वहीं प्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष मुकेश नायक ने कहा कि पौत्र के साथ चुनावी सभा में शामिल होने के विषय पर मुझे कुछ नहीं कहना। यह दिग्विजय सिंह जी का मामला है, इस विषय पर वे ही कुछ कहने में सक्षम हैं। 

और भी कानून रोकते हैं ऐसा करने से 

  1. बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986: यह अधिनियम 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी प्रकार के काम में शामिल होने से प्रतिबंधित करता है। इसमें चुनावी गतिविधियों में भाग लेना भी शामिल है।
  2. किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015: यह अधिनियम 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी खतरनाक या हानिकारक गतिविधि में भाग लेने से प्रतिबंधित करता है। इसमें चुनावी गतिविधियों में भाग लेना भी शामिल हो सकता है।
  3. भारतीय दंड संहिता, 1860: यह संहिता बच्चों के शोषण और अपहरण से संबंधित अपराधों को दंडित करती है।
  4. Representation of the People Act, 1951: यह अधिनियम चुनावों के संचालन से संबंधित है। इसमें कुछ प्रावधान हैं जो बच्चों को चुनावी गतिविधियों में भाग लेने से प्रतिबंधित करते हैं।

बता दें कि इन कानूनों और नियमों के उल्लंघन पर जुर्माना और कारावास की सजा हो सकती है।
यदि आप चुनाव प्रचार में बच्चों का उपयोग देखते हैं, तो आप इसकी शिकायत निर्वाचन आयोग से कर सकते हैं।
टोल फ्री नंबर पर- 1950
शिकायत शाखा- 0755 2730395
सी-विजिल ऐप पर भी आप आचार संहिता उल्लंघन की शिकायत कर सकते हैं। 

दिग्विजय सिंह