BHOPAL. फर्जीवाड़े के सहारे व्यापमं परीक्षा पास करने के आरोपी 38 वनरक्षकों की बहाली सवालों के घेरे में है। साल 2012-13 में हुई वनरक्षक परीक्षा संदेहास्पद पाई गई थी। फर्जीवाड़े के बाद नौकरी हासिल करने वाले सभी 69 वनरक्षकों को निलंबित कर दिया गया था। मामले में जांच कर रही सीबीआई अपनी क्लोजर रिपोर्ट भी पेश कर चुकी है। हालांकि, प्रकरण में अभी सुनवाई जारी है। ऐसे में निर्णय आने से पहले एक-एक साल जेल में रह चुके वनरक्षकों की बहाली के तरीके पर सवाल उठाए जा रहे हैं। वहीं, तीन महीने में गुपचुप तरीके से जारी किए गए दो आदेश और पदस्थापना की चर्चा हो रही है।
परीक्षा पास कराने में लाखों का लेनदेन हुआ
2012-13 में व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापमं ने वन विभाग में वनरक्षकों की भर्ती के लिए परीक्षा ली थी। इस परीक्षा के रिजल्ट घोषित होने के बाद वनरक्षकों को विभाग में नियुक्ति दे दी गई। इसके कुछ समय बाद परीक्षा में फर्जीवाड़ा सामने आया था। परीक्षा पास कराने के लिए लाखों रुपए का लेनदेन हुआ था, जिसमें मंडल के परीक्षा नियंत्रक से लेकर केंद्र पर ड्यूटी करने वाले पर्यवेक्षकों की भूमिका भी संदेह के दायरे में थी। अभ्यर्थियों को अलग से बैठाकर परीक्षा दिलाने से लेकर तमाम इंतजामों का खुलासा फर्जीवाड़े के मुख्य आरोपी ने पूछताछ में किया था।
व्यापमं फर्जीवाड़े के इस मामले को सीबीआई ने जांच के लिए अपने हाथ में लिया था। पुलिस के बाद सीबीआई द्वारा आरोपियों को गिरफ्तार कर कई दौर में पूछताछ की गई थी। फर्जीवाड़े के आरोपों से घिरे वनरक्षकों को जांच के दौरान करीब एक-एक साल से ज्यादा समय तक जेल की सलाखों में रहना पड़ा था। हालांकि, इन्हें बाद में जमानत दे दी गई थी। जेल भेजे जाने के कारण वन विभाग द्वारा फर्जीवाड़े के आरोपों का सामना करने वाले 69 वनरक्षकों को निलंबित कर दिया गया था। तब से ये वनरक्षकों को जीवन निर्वाह भत्ता के रूप में 75 फीसदी वेतन मिल रहा था। हालांकि, वे विभाग के हर दायित्व से मुक्त थे।
अधिकारियों ने यह दिया तर्क
निलंबन के बाद से इन वनरक्षकों को वन विभाग के संबंधित कार्यालयों में हाजिरी के लिए पाबंद किया गया था। वे केवल हाजिरी लगाने दफ्तर पहुंचते थे और कोई काम भी नहीं करना पड़ता था। बदले में जीवन निर्वाह भत्ता यानी 75 फीसदी वेतन पा रहे थे। एक ओर विभाग मैदानी वनकर्मियों की कमी से जूझ रहा है। ऐसे में वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को बिना काम वेतन पा रहे इन निलंबित वनरक्षकों की सुध आ गई। बताया जाता है अफसरों ने आनन-फानन में फाइल बुलाई गई। इसी साल तीन माह पहले 31 वनरक्षक और 12 सितंबर को बाकी 38 वनरक्षकों की बहाली का आदेश जारी कर दिया गया। कोर्ट में विचाराधीन प्रकरण में कानून के बंधनों का ध्यान रखा गया या नहीं अभी यह साफ नहीं है, हालांकि, अफसरों का कहना है कि मैदानी वनकर्मियों की काफी कमी है और इसे पूरा करने के लिए ही इन वनरक्षकों का निलंबन समाप्त किया गया है।
न्यायालय के अंतिम निर्णय के अधीन बहाली
निलंबन बहाली के आदेश को कोर्ट के अंतिम निर्णय के अधीन रखा गया है। 11 साल से चल रहे प्रकरण में न्यायालय जो फैसला सुनाएगा, वह इन वनरक्षकों का भविष्य तय करेगा। विभाग के इस आदेश में 38 वनरक्षकों के नाम और नई पदस्थापना के कार्यालय का उल्लेख किया गया है। इससे करीब तीन माह पहले भी वन विभाग व्यापमं फर्जीवाड़े के इसी मामले में 31 वनरक्षकों का निलंबन समाप्त कर चुका है। 38 वनरक्षकों को बहाल किया गया है, उनमें से 18 वनरक्षक साल 2015 में, 16 वनरक्षक 2020 और चार वनरक्षक साल 2021 में निलंबित किए गए थे। यानी वनरक्षक तीन से लेकर 9 साल तक निलंबित रहे। इस अवधि में वन मुख्यालय को इनकी सुध नहीं आई। अब मुख्यालय को अमले की कमी और बिना का वेतन देने की सुध हो आई है।
जांच एजेंसियों की क्लोजर रिपोर्ट के बाद लिया निर्णय
व्यापमं घोटाले में सीबीआई जांच के दौरान पर्याप्त ठोस साक्ष्य नहीं जुटा पाई थी। इसके चलते न्यायालय में सरकार का पक्ष कमजोर हो गया था। आरोपों से घिरे व्यापमं के तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी और 17 वनरक्षकों इसी कारण जुलाई 2023 में आरोपमुक्त हो चुके हैं। सरकार की जांच एजेंसियों के साथ ही सीबीआई की भी खूब किरकिरी हुई थी। बाद में सीबीआई ने ठोस सबूत और साक्ष्यों की कमी की सफाई देते हुए क्लोजर रिपोर्ट न्यायालय में पेश कर दी थी। इस मामले की जांच कर रही सीबीआइ ने पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में अपनी क्लोजर रिपोर्ट भोपाल स्थित विशेष न्यायालय में प्रस्तुत की थी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।
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