मध्य प्रदेश में अप्रैल के शुरू होते ही पानी संकट ने भयावह रूप ले लिया है। बालाघाट जिले में पानीस्तर तेजी से घटने के कारण लोग गंभीर समस्या का सामना कर रहे हैं। किसानों के खेतों में फसलें सूखने की कगार पर हैं और पानी स्रोतों का पानी भी सूखने लगा है। ऐसी स्थिति में जिले के कलेक्टर मृणाल मीणा ने पानी संकट को गंभीरता से लेते हुए कड़े कदम उठाए हैं।
नए ट्यूबवेल खनन पर रोक
बालाघाट के कलेक्टर मृणाल मीणा ने 1 अप्रैल से 31 जुलाई तक जिले को पानी अभावग्रस्त घोषित कर दिया है। इसका मतलब यह है कि अब सार्वजनिक पानी स्रोतों से सिंचाई या औद्योगिक कार्यों के लिए बिना अनुमति पानी का उपयोग नहीं किया जा सकेगा। इसके अलावा, नए ट्यूबवेल खनन पर भी पूरी तरह रोक लगा दी गई है। पेयपानी आपूर्ति में भी मोटर पंप से पानी खींचने पर प्रतिबंध लगाया गया है। अगर कोई इन नियमों का उल्लंघन करता है तो उसे 2 साल की सजा और 2 हजार रुपए का जुर्माना हो सकता है।
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जल स्तर में गिरावट
बालाघाट जिले से वैनगंगा नदी गुजरती है, लेकिन इस नदी का पानी स्तर लगातार घट रहा है। रबी फसलें इस समय पानी की कमी से जूझ रही हैं और गांवों के अलावा शहरों में भी पीने के पानी की भारी किल्लत हो रही है।
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जंगलों की अंधाधुंध कटाई
बालाघाट जिले में जंगलों की अवैध कटाई और नदी-नालों से रेत का अनियंत्रित खनन भी पानी संकट को और बढ़ा रहा है। जिले के आधे से ज्यादा हिस्से में घना जंगल है, लेकिन इन जंगलों में हो रही अंधाधुंध कटाई और खनन के कारण पानी स्रोतों पर बुरा असर पड़ा है। इन गतिविधियों ने पानी संकट को और विकराल बना दिया है।
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रबी फसल की चिंता
बालाघाट जिले में रबी फसलों का रकबा बढ़ा है, जिससे सिंचाई की मांग भी अधिक हो गई है। लेकिन पानी की कमी के कारण किसानों की मेहनत पर संकट आ गया है। यदि पानी प्रबंधन के मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो जिले में पानी संकट और भी गंभीर रूप ले सकता है। किसानों की मेहनत पर पानी फिर सकता है और खाद्यान्न उत्पादन पर भी प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
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