News Strike: कहां है Jyotiraditya Scindia? क्या प्रदेश में घट रही है केंद्रीय मंत्री की सक्रियता?

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी के कमलनाथ बनते जा रहे हैं तो, ये बात भी कुछ गलत नहीं होगी। वो कैसे ये आपको बताएंगे पर पहले बात करते हैं विजयपुर उपचुनाव की।

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Harish Divekar
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 Where is Jyotiraditya Scindia Is the activity of Union Minister decreasing in the state
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मध्य प्रदेश में बड़ा तख्तापलट करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया कहां है?... अब इस सवाल पर जाहिरतौर पर आपका जवाब हो सकता है कि सिंधिया तो केंद्र में हैं मंत्री हैं और खासे एक्टिव भी हैं। उनका ट्विटर अकाउंट उठा कर देख लीजिए जहां हर रोज उनके एक एक दो- दो ट्वीट भी दिखते हैं। फिर भी सवाल जस का तस है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया कहां है। और, ये सवाल क्यों पूछ जा रहा है, अगले कुछ मिनट में आपको वो भी समझ में आ जाएगा। और अगर ये कहे कि सिंधिया, बीजेपी के कमलनाथ बनते जा रहे हैं तो, ये बात भी कुछ गलत नहीं होगी। वो कैसे ये भी आपको बताएंगे, पर पहले बात करते हैं उपचुनाव की, चूंकि सिंधिया का जिक्र निकला है तो विजयपुर की बात होना भी जरूरी है।

उसूलों पे आंच आए तो टकराना जरूरी है...

साल 2020 तो याद ही होगा आपको। जब मध्य प्रदेश की सियासत में एक जुमला खूब गूंजा। जुमला कुछ यूं था उसूलों पे जहां आंच आए टकराना जरूरी है, जो जिन्दा हों तो फिर जिन्दा नजर आना जरूरी है। वसीम बरेलवी के इस शेर को पढ़ते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस को टाटा कहा और बीजेपी का हाथ थाम लिया। उस वक्त उन्हें एक कांग्रेसी से बहुत उम्मीद थी कि वो भी शायद उनके प्रति निष्ठा दिखाएंगे। ये कांग्रेस नेता थे राम निवास रावत। जिनकी विधानसभा सीट पर बुधवार (13 नवंबर) को वोटिंग हुई है। विजयपुर विधानसभा सीट पर रावत ने पिछले साल विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी। तब वो कांग्रेस में थे, लेकिन इस लोकसभा चुनाव से पहले वो बीजेपी में शामिल हो गए, इसलिए उनकी सीट पर उपचुनाव हुआ हैं।

सिंधिया ने विजयपुर में नहीं किया प्रचार

सिंधिया के कभी खास माने जाने वाले राम निवास रावत ही यहां से प्रत्याशी हैं। रावत के रिश्ते माधव राव सिंधिया से भी काफी गहरे रहे हैं, दिग्विजय सरकार में रावत, सिंधिया कोटे से ही मंत्री बने थे। इसके बावजूद सिंधिया उनके क्षेत्र में एक भी बार चुनाव प्रचार करने नहीं आए, जबकि सिंधिया बीजेपी के स्टार प्रचारक हैं और लगातार महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार कर भी रहे हैं। सिंधिया का ट्विटर अकाउंट उठा कर देख लीजिए। आपको ऐसा कोई ट्वीट नहीं मिलेगा जब वो ये कह रहे हों कि वो विजयपुर जाने वाले हैं, या विजयपुर की जनता से रावत को जिताने की अपील की हो। हां उन्होंने मंगलवार को एक ट्वीट जरूर किया। जिसमें लिखा कि मतदान का प्रयोग जरूर करें, साथ ही बुधनी और विजयपुर दोनों विधानसभा उपचुनाव का जिक्र भी किया है।

ट्विटर पर एक्टिव हैं सिंधिया

वैसे ऐसे चंद ही नेता हैं जो अपने क्षेत्र की सियासत, अपने काम की समझ के साथ साथ सोशल मीडिया पर भी दमदार मौजूदगी रखते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया भी ऐसे ही नेताओं में से एक हैं। जो ट्विटर पर खासे एक्टिव हैं। आपको उनके पिछले कुछ दिनों के ट्वीट्स पर गौर करना चाहिए, सिंधिया बहुत समझदारी से एक एक ट्वीट करते हैं। कब अपने मूवमेंट की जानकारी देनी है। कब अपनी पार्टी की योजना से जुड़े ट्वीट करने हैं, कब अपने मंत्रालय से जुड़े ट्वीट करने हैं। इस प्लेटफॉर्म पर बहुत बैलेंस तरीके से सिंधिया काम कर रहे हैं।

पर, आप उनके ट्विटर अकाउंट को जरा आगे तक स्क्रॉल डाउन कीजिए, अगर हो सके तो करीब एक या दो साल पहले तक का ट्विटर खंगाल डालिए, आपको एक अंतर बहुत आसानी से समझ आएगा। कुछ समय पहले तक उनके ट्वीट्स में एमपी का जिक्र बहुत ज्यादा मिलता था। एमपी अब भी उनके ट्विटर में दिखता है लेकिन उसकी जगह कुछ कम हो गई है, कभी वो एमपी के किसी नेता को जन्मदिन की बधाई देते दिखते हैं, या, फिर ग्वालियर को क्या सौगात दी इस पर ट्वीट करते हैं और कभी सीएम मोहन यादव की योजनाओं की तारीफ में ट्वीट करते हैं।

सिंधिया के नाम से वो सुर्खियां गायब

याद दिला दें ये वही नेता है जो इस हुंकार के साथ बीजेपी में शामिल हुए थे कि टाइगर अभी जिंदा है, लेकिन बीजेपी में सीएम फेस बदलने के बाद लगता है कि इस टाइगर की टैरेटरी भी फिक्स कर दी गई है। पहले सिंधिया मध्य प्रदेश में आया करते थे तो उनकी एक अलग धमक हुआ करती थी, वो कब आ रहे हैं, क्यों आ रहे हैं। उनके आने के बाद और जाने के बाद क्या क्या हुआ। यहां तक की उनके समर्थकों को क्या मिला क्या नहीं मिला ये सब चर्चा का विषय रहा करता था। पर अब सिंधिया के नाम से वो सुर्खियां मिसिंग है। 
इस बार कैबिनेट गठन के दौरान भी सिंधिया की सक्रियता कम दिखीं। उनके कुछ समर्थक, जैसे इमरती देवी, इस इंतजार में हैं कि उन्हें निगम मंडल या किसी आयोग में पद मिल जाए, लेकिन उसके लिए भी कुछ चर्चा होती नजर नहीं आती। ये वही सिंधिया हैं जो बीजेपी में शामिल होने के बाद एक बार बड़ा सा कारवां लेकर सीएम हाउस पहुंचे थे। और अपनी ताकत का अहसास करवाया था, लेकिन इस बार खामोशी है, बात होती है तो बस ग्वालियर की।

अगस्त के महीने में वो ग्वालियर आए, लगातार दस घंटे वो क्षेत्र में सक्रिय रहे। उन्होंने शनिचरा मंदिर में दर्शन किए और फिर आगरा ग्वालियर हाई स्पीड कॉरिडोर पर चर्चा की, ग्वालियर की मोरार नदी के रेज्युविनेशन के काम की जानकारी ली। ग्वालियर के नए बस अड्डे के बारे में बात की। मल्टी लेवल पार्किंग का जिक्र किया।

कॉन्क्लेव में सिंधिया रखीं थी मांगे

इसके कुछ दिन बाद रीजन इंड्स्ट्री कॉन्क्लेव में वो फिर ग्वालियर आए। इस कॉन्क्लेव के जरिए 13 सौ करोड़ के निवेश पर चर्चा हुई। जो ग्वालियर और उसके आसपास के लिए होगा. सिंधिया ने सीएम के सामने दो मांगे भी रखीं, पहली की शहर के गोले के मंदिर के पास खाली जमीन पर हॉस्पिटल निर्माण हो और दूसरा उनके के स्थापित किए स्पेशल एरिया डेवलपमेंट अथोरिटी का विकास किया जाए। अक्टूबर में उन्होंने इस बात की खुशी जाहिर की कि ब्रिटानिया कंपनी ग्वालियर में नई यूनिट खोलने जा रही है। इस यूनिट की कमान पूरी तरह से महिलाओं के हाथ में होगी।

कमलनाथ की तर्ज पर चलते दिख रहे हैं सिंधिया

आपसे कुछ देर पहले कहा था कि सिंधिया अब कमलनाथ बनने की राह पर चल पड़े हैं। अब तक आप समझ ही गए होंगे कि मैंने ऐसा क्यों कहा, जो नहीं समझे उन्हें बता दूं कि सांसद रहते हुए कमलनाथ ने छिंदवाड़ा को ढेरों सौगातें दी हैं। छिंदवाड़ा जैसे छोटे से शहर में रोजगार के लिए कई अवसर जनरेट किए तो सड़क से लेकर और भी बहुत से निर्माण कार्य किए। अब सिंधिया भी उसी तर्ज पर चलते दिख रहे हैं, जैसे उनकी टेरेटरी अब सिर्फ ग्वालियर और उनका संसदीय क्षेत्र रह गया है। जहां वो विकास और नई योजनाओं की बात कर रहे हैं।

सिंधिया के हाथों में पूरे प्रदेश की विकास की डोर

हालांकि इसमें कोई बुराई भी नहीं है एक सांसद होने के नाते अपने क्षेत्र अपने गृह जिले को तवज्जो देना उनका हक भी है और जिम्मेदारी भी, लेकिन उन्हें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि कमलनाथ जब सीएम बने तब भी कई बार ये कहा जाता था कि वो छिंदवाड़ा के सीएम हैं। सिंधिया को भी ये याद रखना जरूरी है कि वो केंद्रीय मंत्री भी हैं, वो भी मध्य प्रदेश के कोटे से ही, तो इस पूरे प्रदेश की विकास की डोर उनके हाथों में भी है। उम्मीद है कि उनके जैसे टाइगर की दहाड़ सिर्फ ग्वालियर में नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में गूंजेगी और सुनाई देगी।

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