आखिर कहां अटकी है पीडब्ल्यूडी के दागी अफसरों की ईओडब्ल्यू-लोकायुक्त जांच

मध्यप्रदेश के लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर मलाई काट रहे हैं। डिजाइन-ड्राइंग में मनमाने बदलाव, सड़क और भवनों के गुणवत्ताहीन निर्माण के मामलों में ढेरों शिकायतें ईओडब्ल्यूऔर लोकायुक्त के पास लंबित हैं।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे मध्यप्रदेश के लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर मलाई काट रहे हैं। डिजाइन-ड्राइंग में मनमाने बदलाव, सड़क और भवनों के गुणवत्ताहीन निर्माण के मामलों में ढेरों शिकायतें ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त के पास लंबित हैं। कोई जांच 12 साल से चल रही है तो कोई 10 साल से अटकी हुई है। ऐसे 15 से ज्यादा इंजीनियर विभाग में ऊंचे पदों पर काबिज हैं और सरकार में अपने दखल का सहारा लेकर जांचों को प्रभावित कर रहे हैं। ऐसे मामलों में दो से तीन साल में जांच पूरी होने के बाद न्यायालय में सुनवाई शुरू हो जाती है लेकिन विभाग की मेहरबानी से ये एक दशक से भी ज्यादा समय से बचे हुए हैं। आर्थिक अनियमितता, निर्माण में गड़बड़ी की आंच में प्रमुख अभियंता, अधीक्षण यंत्री और कार्यपालन यंत्री स्तर के तकनीकी अधिकारी भी घिरे हैं। ऐसे अधिकारियों के मामले जांच एजेंसियों में सालों से दबे हुए हैं। शिकायतों के बावजूद इन अधिकारियों पर कार्रवाई तो हुई नहीं उल्टा ये अपने रसूख के सहारे लगातार ऊंचे पदों का प्रभार हासिल करने में कामयाब होते रहे हैं। ऐसे ही दागी अफसरों का दबदबा पीडब्ल्यूडी में कायम है और इसी वजह से घटिया निर्माण, ठेकेदारों से साठगांठ के मामलों में जांच आगे ही नहीं बढ़ पा रही है। 

ऊंचे पदों पर भी दागी काबिज 

सबसे पहले उन अधिकारियों की बात करते हैं जो निर्माण कार्यों में गड़बड़झालों की शिकायतों से घिरे हुए हैं। इनमें मध्यप्रदेश सड़क विकास निगम के मुख्य अभियंता जीपी मेहरा मुख्य हैं। वे पीडब्ल्यूडी में भी मलाईदार भवन विभाग के प्रमुख अभियंता भी रह चुके हैं। मेहरा का विभाग में खासा रसूख है। प्रतिनियुक्ति के दौरान हैदराबाद की श्रीकेएन कम्पनी और ग्वालियर के तोमर बिल्डर्स से चंदेरी-मुंगावली के बीच घटिया सड़क निर्माण का आरोप मेहरा पर लगा था। इसकी शिकायत लोकायुक्त पुलिस में की गई है। मेहरा पर लगे आरोपों की जांच के लिए विभागीय स्तर पर तीन सदस्यीय कमेटी बनाई गई थी। कमेटी में शामिल तकनीकी अधिकारी भी जांच पूरी नहीं कर सके। भवन विकास निगम के मंडला डिवीजन प्रभारी प्रभारी उपमहाप्रबंधक ललित चौधरी का है।  चौधरी पर पुराने आरोपों के साथ-साथ बीते साल ही सीएम राइज स्कूल के भवन निर्माण में गड़बड़ी का आरोप लगा है। उनके द्वारा स्कूल भवन के निर्माण में केंद्र और राज्य सरकार की राशि का गलत तरीके से उपयोग करने और भ्रष्टाचार की शिकायत ईओडब्ल्यू तक पहुंची थी। यह जांच भी अब तक फाइल से बाहर नहीं आई है।

संदेह के घेरे में ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र 

लोक निर्माण विभाग की भवन शाखा के एजीएम यानी सहायक महाप्रबंधक राघवेंद्र सिंह किरार के विरुद्ध साल 2023 में भ्रष्टाचार की शिकायत लोकायुक्त पुलिस में दर्ज कराई गई थी। उनके अलावा भवन विकास निगम के डीजीए यानी उपमहाप्रबंधक (तकनीक) निशांत पचौरी पर फर्जी ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी हासिल करने का आरोप लगा है। साल 2024 में उनकी शिकायत लोकायुक्त पुलिस में दर्ज कराई गई थी। जांच के लिए की गई यह शिकायत सालभर से कहां दबी है किसी को इसकी भनक तक नहीं है। 

कांट्रेक्टर एसोसिएशन ने की शिकायत 

मध्यप्रदेश कांट्रेक्टर एसोसिएशन भोपाल ने पीडब्ल्यूडी डीजीएम विक्रम सोनी पर पद के दुरुपयोग, ठेकेदारों पर दबाव बनाने के आरापों सहित शिकायत ईओडब्ल्यू में की थी। डीजीएम जब डीजीएम थे तब अपने भाई और अपनी अघोषित फर्म के जरिए डिजाइन-ड्राइंग तैयार कराने ठेकेदारों पर दबाव बनाते थे। इस गंभीर आरोप की जांच के लिए एमडी आर्किटेक्ट नितिन गोले की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई थी। जिसमें मोहन किशोर परमार उप महाप्रबंधक सिविल, नीलम प्रसाद चौधरी सहायक महाप्रबंधक और कंपनी सचिव के रूप में विष्णु जंगेला रखे गए थे।

भाई से डिजाइन बनवाने का दबाव 

कांट्रेक्टर एसोसिएशन ने वर्ष 2024 में की गई इसकी शिकायत में कहा कि विक्रम सोनी ने एक स्ट्रक्चर डिजाइन कंसल्टेंसी फर्म चलाई जा रही है। इस फर्म विक्रम के भाई और पार्टनर द्वारा चलाई जा रही है। जिन ठेकेदारों को काम मिलता है उन्हें इसी फर्म से स्ट्रक्चर डिजाइन तैयार कराने के लिए परेशान किया जाता है और अगर ठेकेदार नहीं कराता तो उसके काम रोके जाते हैं। इस मामले में करोड़ों रुपए की अनियमितता के आरोप लगाए गए हैं।

सिक्योरिटी डिपॉजिट में सेंध 

लोक निर्माण विभाग में दो साल पहले कार्यपालन यंत्री संभाग (इलेक्ट्रिकल) क्रमांक-1 में सिक्योरिटी डिपॉजिट के गबन की शिकायत की गई थी। गवर्नमेंट इलेक्ट्रिकल कांट्रैक्टर्स एसोसिएशन ने कार्यपालन यंत्री राजेश दुबे और उल्लास मजूमदार द्वारा ठेकेदारों की पूंजी को हड़पने की शिकायत की थी। इस मामले में कांग्रेस नेता और तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर गोविंद सिंह ने दोनों अधिकारियों के कार्यकाल में ठेकेदार फर्मों के लेनदेन की लोकायुक्त_ईओडब्लू से जांच कराने की मांग की गई थी। हांलाकि जांच हुई नहीं और दोनों अधिकारी कार्रवाई से बच गए। 

जांच में डाल रहे हैं अड़ंगा 

लोक निर्माण विभाग में जीएम, एजीएम, डीजीएम स्तर के ऊंचे ओहदेदार अफसर ही नहीं संभाग और जिलों में कार्यरत कार्यपालन यंत्री, सहायक यंत्री भी सड़क और भवन निर्माण में गुणवत्ता की अनदेखी कर रहे हैं। इससे ठेकेदार को मुनाफा होता है जिसका एक हिस्सा इन अधिकारियों तक भी पहुंचता है। टेंडर के लिए साठगांठ हो या फिर डिजाइन_ड्राइंग में बदलाव कर निर्माण एजेंसी को फायदा पहुंचाना हो, लोक निर्माण विभाग के तकनीकी अधिकारी आरोपों से बचे नहीं हैं। इनकी शिकायत भी लगातार विभाग और ईओडब्लू_ लोकायुक्त जैसी जांच एजेंसियों तक पहुंचती  हैं। हांलाकि ये अधिकारी अपनी पहुंच के सहारे शिकायतों को दबा देते हैं, उन पर जांच आगे ही नहीं बढ़ती। एक दशक से ज्यादा के अंतराल में लगातार पीडब्लूडी के इंजीनियर भ्रष्टाचार और तकनीकी गड़बड़ियों के आरोपों से घिरे रहे लेकिन न जांच पूरी हुई और न कार्रवाई। 

लंबी जांचों से प्रभावित साक्ष्य 

आपराधिक मामलों में केस दर्ज होने के बाद पुलिस को जांच पूरी कर कोर्ट में चालान पेश करने अवधि तय है। जबकि लोकायुक्त और ईओडब्लू जैसी एजेंसियों को जांच पूरी करने समयावधि की बाध्यता नहीं है। यानी शिकायत मिलने के बाद दोनों एजेंसियां कितने ही दिन, महीने या साल जांच पड़ताल में लगा सकती हैं। यही वजह है कि एक दशक और उससे भी ज्यादा समय लगने के बाद भी इन एजेंसियों की अधूरी जांच पर कोई सवाल नहीं उठा पा रहा है। वहीं भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे अधिकारियों की जांच के लिए ईओडब्लू और लोकायुक्त पुलिस को विभाग भी सहयोग नहीं करते। बार_बार पत्र भेजने के बाद भी शासन स्तर से जांच की अनुमति ही नहीं मिल पाती। 

अधूरी जांचों की फेहरिस्त  

  • रमेश चंद्र तिरोले कार्यपालन यंत्री हैं और रीवा मुख्य अभियंता कार्यालय में पदस्थ हैं। उनके विरुद्ध लोकायुक्त पुलिस भोपाल द्वारा वर्ष 2024 से केस दर्ज किया गया था। अब ये मामला जांच में अटका है।  
  • एससी वर्मा कार्यपालन यंत्री (इलेक्ट्रिकल) भवन शाखा मेंपदस्थ हैं। साल 2022 में केस दर्ज कर लोकायुक्त पुलिस द्वारा जांच की जा रही है। वहीं वर्मा के विरुद्ध विभागीय जांच भी लंबित हैं। 
  • जेएस चौहान कार्यपालन यंत्री भवन शाखा में प्रमुख अभियंता का दायित्व भी संभाल रहे हैं। ग्वालियर संभागायुक्त द्वारा विभागीय जांच कराई गई थी लेकिन उसमें क्या हुआ ये पता ही नहीं चला।  
  • गणेश प्रसाद पटेल उज्जैन में कार्यपालन यंत्री हैं। उनके पास अधीक्षण यंत्री का भी प्रभार है। उनके विरुद्ध वर्ष 2019, वर्ष 2020 और वर्ष 2024 में तीन अलग-अलग शिकायत की गई थी जो अब तक विचाराधीन हैं।  
  • केके सिंगारे के विरुद्ध भवन शाखा में  कार्यपालन यंत्री रहते हुए शिकायत लोकायुक्त पुलिस तक पहुंची थी। साल 2019 से लोकायुक्त पुलिस जांच कर रही है। फिलहाल सिंगारे रीवा में कार्यरत हैं। 
  • अनामिका सिंह के खिलाफ साल 2017 में शिकायत हुई थी। ये शिकायत पन्ना में प्रभारी संभागीय परियोजना यंत्री रहने के दौरान दर्ज की गई थी। फिलहाल अनामिका सिंह राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन रीवा में कार्यपालन यंत्री के प्रभार पर  हैं। 
  • अभिषेक ठाकुर के साल 2023 में उमरिया में प्रभारी संभागीय परियोजना यंत्री के कार्यकाल के दौरान ईओडब्लू ने प्राथमिकी दर्ज की थी। दो साल से जांच चल रही है लेकिन अभी तक पूरी नहीं हुई।  

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