BJP Star Campaigner Away From Elections In MP
हरीश दिवेकर, BHOPAL. लोकसभा चुनाव ( Lok Sabha Elections ) के पहले चरण का प्रचार थम चुका है। चंद घंटों में कुछ प्रत्याशियों की किस्मत भी ईवीएम में कैद हो जाएगी। लेकिन इस पूरे प्रचार के दौरान एक आवाज कहीं सुनाई नहीं दी। वो आवाज जिसने पूरे 18 साल मध्यप्रदेश में बीजेपी का परचम बुलंद रखा। गांव-गांव शहर-शहर तक पैठ गहरी की। बिना किसी शक और शंका के ये कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री, मंत्री कोई भी हो उस चेहरे से ज्यादा लोकप्रिय चेहरा कोई नहीं है। ये चेहरा है शिवराज सिंह चौहान ( Shivraj Singh Chauhan ) का। जिन्हें बीजेपी ने स्टार प्रचारकों की लिस्ट में तो रखा है, लेकिन इस बार चुनाव का स्टार बनने नहीं दिया। इसके पीछे बीजेपी का क्या डर है। और क्यों बाकी स्टार प्रचारक भी एक सिमटे हुए हिस्से में रहने पर मजबूर कर दिए गए हैं।
क्यों उठ रहे सवाल ?
बीजेपी या तो जीत को लेकर बहुत ज्यादा कॉन्फिडेंट है या फिर इस बार जीत का श्रेय अपनी ही किसी पार्टी के नेता के साथ बांटना नहीं चाहती है। ये एक सवाल है। और, ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि बीजेपी का कोई भी स्टार प्रचारक इस बार धुआंधार रैली या लाखों लोगों के बीच में जनसभा करता हुआ नजर नहीं आ रहा है। खासतौर से बात मध्यप्रदेश की करें तो यहां पीएम मोदी के ताबड़तोड़ प्रोग्राम हो रहे हैं। अमित शाह की रैलियां हो रही हैं, जेपी नड्डा ने भी कमान संभाली है, लेकिन प्रदेश के अपने जाने-माने चेहरे कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। कहने को सब तुर्रम हैं, लेकिन सभी अपने अपने क्षेत्र तक सिमटे हुए हैं। कुछ को तो वहां भी मैदान मारने का मौका नहीं मिल रहा।
शिवराज सिंह चौहान
शिवराज सिंह चौहान ने बतौर सीएम मोहन यादव के नाम का ऐलान होने के साथ ही खुद एक घोषणा कर दी थी। उन्होंने कहा था कि वो प्रदेश छोड़कर कहीं नहीं जाने वाले यहां रहकर वो लोकसभा की सारी सीटें बीजेपी की झोली में डालने के लिए काम करेंगे। इसके कुछ ही दिन बाद उनकी पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात होती है और उनके सुर बदल जाते हैं। शिवराज सिंह चौहान ये कहते हैं कि उन्हें दक्षिण की जिम्मेदारी मिली है। वो वहीं का गढ़ मजबूत करेंगे। इसके कुछ दिन बाद फिर एक ट्विस्ट आता है। शिवराज सिंह चौहान को विदिशा लोकसभा से टिकट मिल जाता है। उनका नाम स्टार प्रचारकों की सूची में भी जोड़ा गया। इसके बाद उम्मीद थी कि शिवराज सिंह चौहान पूरे प्रदेश का दौरा करते नजर आएंगे। जैसे इससे पहले के चुनाव में वो करते रहे हैं।
इस सोच की एक वजह ये भी थी कि विदिशा सीट को बीजेपी का गढ़ माना जा सकता है। यानी यहां कोई टफ मुकाबला नहीं है। खासतौर से इस सीट पर शिवराज सिंह चौहान को टिकट देकर बीजेपी ने एक तरह से कांग्रेस के लिए रही सही उम्मीद भी खत्म कर दी है। ऐसे में शिवराज सिंह चौहान का उपयोग बीजेपी उन सीटों पर कर सकती थी जहां-जहां ये थोड़ा बहुत भी खटका है कि सीट हाथ से निकल सकती है। लेकिन शिवराज सिंह चौहान पहले चरण के चुनाव में कहीं प्रचार करते या जनसभा करते नजर नहीं आए। इस दौरान वो सिर्फ एक ही बार खबरों में आए जब ट्रेन में सफर करते दिखे, लेकिन वो भी सिर्फ अपने लोकसभा क्षेत्र तक ही सीमित रहे।
चुनाव से दूर क्यों किए गए शिवराज ?
छिंदवाड़ा में जीत के लिए बीजेपी एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है, लेकिन वहां भी पार्टी ने शिवराज सिंह चौहान जैसे फेस का उपयोग करना जरूरी नहीं समझा। इसकी आखिर क्या वजह हो सकती है। चलिए थोड़ा डीप डाइविंग करते हुए ये समझने की कोशिश करते हैं कि बीजेपी ने टिकट देकर शिवराज सिंह चौहान का मान तो रखा, लेकिन उन्हें चुनावी माहौल से पूरी तरह दूर क्यों कर दिया। इसका एक कारण हो सकता है शिवराज की लोकप्रियता। जो कभी बीजेपी के लिए एसेट थी वो अब शिवराज सिंह चौहान की माइनस मार्किंग में जा चुकी है। ये सही है कि अगर शिवराज सिंह चौहान चुनाव प्रचार में उतरते हैं तो पूरी सभा उन्हीं के नाम हो जाएगी। पिछले दो दशकों में वो अपनी छवि एक मास लीडर के रूप में गढ़ चुके हैं।
मोदी की गारंटी
दूसरा कारण हो सकता है मोदी की गारंटी। मोदी की गारंटी को ही जीत का पूरा क्रेडिट देने की कोशिश बीजेपी ने विधानसभा चुनाव के दौरान भी की थी। लेकिन शिवराज की लाड़ली बहना ने बाजी मार ली। न चाहते हुए और न मानते हुए भी जीत का सारा क्रेडिट लाड़ली बहना को चला गया। लेकिन इस बार बीजेपी मोदी के फेस पर ही पूरा चुनाव लड़ रही है। चुनावी भट्टी में सिर्फ मोदी के फेस की अग्नि परीक्षा है और इसमें संशय नहीं कि वो अच्छे मार्क्स से पास भी हो ही जाएंगे। ऐसे में भला शिवराज सिंह चौहान से क्रेडिट क्यों शेयर किया जाएगा।
MP में जीत के लिए आश्वत है बीजेपी
तीसरा कारण हो सकता है कि मध्यप्रदेश में जीत के लिए आश्वस्त होना। तमाम चुनावी सर्वे और राजनीतिक पंडित भी इसी ओर इशारा कर रहे हैं कि यहां 2019 के चुनाव की स्थिति में कोई बदलाव आने वाला नहीं है। सिवाय इसके कि हो सकता है कि बची हुई एक सीट भी बीजेपी जीत ही जाए। इसलिए यहां स्टार प्रचारकों का ज्यादा उपयोग नहीं हो रहा है।
कई चेहरे लोकसभा सीट तक सिमटे
सिर्फ शिवराज सिंह चौहान ही क्यों, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे मास लीडर भी सिर्फ अपनी लोकसभा सीट तक सिमटे हुए हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया एक ऐसा फेस हैं जो हर जगह पसंद किए जाते हैं और उन्हें सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोग सभा में पहुंचते भी हैं। इसके बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया कहीं नजर नहीं आए। इससे पहले तक वो कम से कम हर उस कार्यक्रम में जरूर होते थे जिसमें पीएम मोदी शामिल होने आते थे, लेकिन इन कार्यक्रमों में भी वो दिखाई नहीं दे रहे हैं। चलिए ये तो दो बड़े नाम है। ये कहा जा सकता है कि ये अपनी-अपनी सीट में व्यस्त हैं। शायद इसलिए इन्हें प्रचार में झोंका नहीं जा रहा है। इसके अलावा स्टार प्रचारकों की लिस्ट देखें तो उसमें प्रदेश से मोहन यादव, वीडी शर्मा, जगदीश देवड़ा, राजेंद्र शुक्ला, फग्गन सिंह कुलस्ते, प्रहलाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, जयभान सिंह पवैया, राकेश सिंह, लाल सिंह आर्य, नारायण कुशवाहा, तुलसी सिलावट, निर्मला भूरिया, एंदल सिंह कंसाना, गोपाल भार्गव, नरोत्तम मिश्रा, सुरेश पचौरी, गौरी शंकर बिसेन शामिल हैं। इसमें से कौन-सा नेता ऐसा है जिसकी रैली या सभाएं आपने अब तक देखी हैं। मोहन यादव का उपयोग बिहार और यूपी के यादव वोटर्स को रिझाने के लिए बीजेपी जरूर कर रही है, पूरे प्रदेश में अकेले सीएम मोहन यादव कमान संभाले है, चुनाव प्रचार कर रहे है। बिहार से लेकर मध्य प्रदेश तक जातीय वोट गणित में यादव वोटों की लड़ाई दिलचस्प हो गई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की लिस्ट में शामिल रहने वाले सुरेश पचौरी, बीजेपी के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में नीचे से तीसरे नंबर पर हैं। उन्हें नरोत्तम मिश्रा के बाद जगह मिली है, लेकिन सुरेश पचौरी भी कहीं चुनाव प्रचार करते नजर नहीं आ रहे हैं।
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स्टार प्रचारकों की लिस्ट सिर्फ चुनावी औपचारिकता !
स्टार प्रचारकों की लिस्ट में जितने भी नाम हैं वो ऐसे किसी मंच पर जरूर दिख सकते हैं जहां मोदी, शाह या नड्डा मौजूद हों। लेकिन इन स्टार प्रचारकों की कोई इंडिविजुअल सभा या रैली नहीं हो रही है। वैसे ये स्टार प्रचारकों के चेहरे सिर्फ एमपी में ही नहीं बल्कि किसी भी प्रदेश में नहीं चमक रहे हैं। जहां देखिए वहां बस मोदी ही नजर आएंगे। गुंजाइश हुई तो कहीं अमित शाह और जेपी नड्डा। तो जब प्रचार कराना ही नहीं था तो स्टार प्रचारकों की लिस्ट तैयार करने की जहमत भी क्यों उठाई गई। क्या ये एक चुनावी औपचारिकता की खानापूर्ति है। लेकिन बीजेपी को एक बात और याद रखने की जरूरत है। वो ये कि कहीं मोदी नाम का इतना ओवरडोज न हो जाए कि लोग उकताने लग जाएं और टीवी ही बंद कर दें या सोशल मीडिया की उस पोस्ट को ही स्किप कर दें जिसमें उनकी सभा नजर आ रही हो।
मध्यप्रदेश में चुनाव से बीजेपी स्टार प्रचारक दूर