मध्य प्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर ने 15 साल पुराने एक हत्या के मामले में बड़ा फैसला सुनाया। दरअसल 15 साल पहले हत्या के मामले में दो महिलाओं को ट्रायल कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। जब ये मामला जबलपुर हाईकोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष ने जानबूझकर झूठे साक्ष्य प्रस्तुत किए थे। पुलिस ने मामले की जांच में गंभीर खामियां छोड़ीं थी। ट्रायल कोर्ट के गलत फैसले के कारण एक महिला को 14 साल तक जेल में रहना पड़ा, जबकि दूसरी महिला अपने छोटे बच्चों के साथ जेल में बंद रही।
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न्यायालय ने की सख्त टिप्पणी
जस्टिस जी.एस. अहलूवालिया और न्यायमूर्ति विशाल ने अपने 59 पेज के आदेश में कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाहों ने जानबूझकर झूठे बयान दिए। जिससे दोनों महिलाओं को फंसाया गया। अदालत ने ट्रायल कोर्ट की कार्रवाई पर भी सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ट्रायल कोर्ट ने मामले को लापरवाही से संभाला। पीठ ने यह भी कहा कि ट्रायल कोर्ट ने गवाहों की जिरह को नज़रअंदाज करते हुए साक्ष्यों का उचित मूल्यांकन नहीं किया।
यह था पूरा मामला
21 मई 2008 को सुबह लगभग 7:30 बजे अपीलार्थी सूरजबाई ने सूचना दी कि वह अपने घर में सो रही थी। सुबह करीब साढ़े तीन बजे उसकी सास सुकमाबाई आईं उसने अपने घर जाकर शोर मचाया, परिणामस्वरूप वह जाग गई। पूछताछ करने पर वह सुकमा बाई द्वारा सूचना दी गई कि मृतक हरि उर्फ भग्गू नीम के पेड़ पर फांसी पर लटका हुआ है। वह तुरंत मौके पर पहुंची और दाराती की मदद से रस्सी काट दी। छाया ने दावा किया कि हरि अभी भी जीवित हैं। जिसके बाद वह अपने छोटे बहनोई हरि को अस्पताल ले गई जहां कंपाउंडर राजले बाबू को बुलाया गया, जिन्होंने बताया कि मृतक की मृत्यु हो गई है। इसके बाद शव को वापस घर लाया गया। परिजनों के आरोप थे कि अपीलकर्ताओं ने मृतक को जहर दिया था साक्ष्यों को गायब करने की मंशा इसे आत्महत्या का रूप दिया। और अपीलकर्ता सूरजबाई ने पुलिस को झूठी सूचना भी दी। इसी आधार पर अपीलकर्ताओं और रेखा बाई के खिलाफ अपराध दर्ज किया गया था।अपीलकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और जांच पूरी करने के बाद पुलिस ने आरोप पत्र दायर किया। घटना के समय सूरज बाई की बेटी रेखाबाई नाबालिग थी, इसलिए, उसे जेजेबी के समक्ष पेश किया जाना था । लेकिन मामले में यह बताने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं था कि रेखा बाई के मुकदमे का क्या हुआ। ट्रायल कोर्ट ने 30 जुलाई 2009 के आदेश के तहत आरोप तय किये और भूरीबाई के विरूद्ध आईपीसी की धारा 302/34 एवं 201 तथा सूरजबाई के विरूद्ध आईपीसी की धारा 302/34, 201 एवं 203 के तहत अपराध कायम किया गया। अपीलकर्ताओं ने उस वक़्त भी खुद को निर्दोष बताया।
गलत जांच और झूठे साक्ष्य
अदालत ने यह पाया कि पुलिस ने जांच में जानबूझकर कई महत्वपूर्ण पहलुओं की अनदेखी की, जिससे अभियोजन पक्ष के गवाहों को झूठी गवाही देने का मौका मिला। इसके साथ ही जब इस मामले की सुनवाई चल रही थी तो कथित आरोपियों की ओर से अधिवक्ता ही कोर्ट में हाजिर नहीं हुए थे। इसके बाद जब उन्हें शासन की तरह से कानूनी सहायता दी गई तो वह अधिवक्ता भी कोर्ट में उपस्थित नहीं हुए और इस मामले में फैसला सुना दिया गया। इस तरह आरोपियों को अपना पक्ष रखने के लिए कानूनी मदद ही नहीं मिल सकी।
अलग-अलग बयान दे रहे थे गवाह
हाईकोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों में कई विरोधाभास थे, जिन्हें ट्रायल कोर्ट ने नजरअंदाज कर दिया। पाटीदार रूपों की ओर से अधिवक्ता उपस्थित न होने के कारण उन्हें क्रॉस करने का भी मौका नहीं मिला। अब इस मामले की सुनवाई पर कोर्ट ने कहा कि गवाहों की जिरह की अहमियत को समझे बिना उनकी मुख्य परीक्षा को आँख मूंदकर स्वीकार कर लिया गया।
15 साल बाद हुए दोषमुक्त
हाईकोर्ट ने निचली अदालत द्वारा दोषसिद्धि और सजा को रद्द करते हुए कहा कि यह मामला झूठे साक्ष्यों और पुलिस की गलत जांच का नतीजा था। पीठ ने दोनों महिलाओं को बरी करने का आदेश दिया, जिसमें से एक महिला को तुरंत रिहा करने का निर्देश दिया गया, जो पहले से जेल में थी। न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि गवाहों के खिलाफ झूठी गवाही देने पर कार्रवाई की जाए। यह न्यायपालिका की भूमिका और पुलिस जांच की निष्पक्षता पर एक महत्वपूर्ण फैसला है। अदालत ने ना केवल अभियोजन पक्ष की खामियों को उजागर किया, बल्कि इस बात पर जोर दिया कि अदालतों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जीवन से संबंधित मामलों को बेहद सावधानी से देखना चाहिए। मामला 15 साल पुराना है लेकिन जेल का समय 14 साल हुआ है।
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