मध्यप्रदेश में मोहन कैबिनेट के गठन में देरी की ये है बड़ी वजह, 7 पेंच में उलझा बीजेपी का खेल !

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश में मोहन कैबिनेट के गठन में देरी की ये है बड़ी वजह, 7 पेंच में उलझा बीजेपी का खेल !

BHOPAL. मध्यप्रदेश में मोहन सरकार काबिज होते ही मंत्रिमंडल पर चर्चा शुरू हो चुकी है और जिस तेजी से चर्चा आगे बढ़ रही थी उस पर उतना ही जोर से ब्रेक लग चुका है। मंत्रिमंडल तो गठित होगा, ये बात तय है, लेकिन ये काम भी बीजेपी के लिए उतना ही मुश्किल है, जितना मुश्किल सीएम फेस का चयन करना था।

किस तरह का खेल जमाना चाहती है बीजेपी

अब सेनापति तय है, लेकिन उसकी सेना तैयार करने में बीजेपी के फिर पसीने छूट रहे हैं। वजह है बमुश्किल 4 महीने बाद होने वाला लोकसभा चुनाव। जिसके मद्देनजर बीजेपी पांसे इस तरह जमाना चाहती है कि कांग्रेस के प्यादे बिसात पर आएं तो, लेकिन एक भी घर न जीत पाएं। बीजेपी इस बार लोकसभा की 29 की 29 सीट अपने नाम करना चाहती है। मंत्रिमंडल विस्तार में हुई एक गलती इस कोशिश पर पानी फेर सकती है।

अधर में लटका मंत्रिमंडल विस्तार

यही वजह है कि मंत्रिमंडल विस्तार की पूरी तैयारी होने के बावजूद उसे टाल दिया गया। जबकि इस कवायद के लिए राजपाल ने भी अपना शेड्यूल बदला और तयशुदा समय से पहले ही भोपाल भी आ गए। फिर खबर आई कि मंत्रियों की लिस्ट दिल्ली से ही फाइनल होगी। उसके बाद से ही मुद्दा अधर में लटका हुआ है।

हर चेहरे पर अटका पेंच

पेंच एकाध होता तो शायद बीजेपी के मंझे हुए रणनीतिकार उसे चुटकियों में खत्म कर देते, लेकिन अभी हर चेहरे के साथ एक पेंच अटका हुआ है। सबसे पहला पेंच है कि जितने सीनियर इस बार विधानसभा में पहुंच चुके हैं, उन्हें कैसे एडजस्ट किया जाए। अगर कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह सरीखे सभी नेताओं को मोहन यादव के मातहत मंत्री बना दिया जाएगा तो बड़े ओहदे पर होने के बावजूद मोहन यादव इन दिग्गजों को कैसे मैनेज कर पाएंगे। दूसरा पेंच ये है कि अगर इन दिग्गजों को मंत्री नहीं बनाया गया तो फिर इन्हें क्या भूमिका दी जाएगी।

तीसरा पेंच मध्यप्रदेश के वरिष्ठ विधायक। जो पहले भी मंत्री रह चुके हैं और फिर सदन में पहुंच गए हैं। सीनियोरिटी के नाते उन्हें भी उम्मीद तो होगी ही कि वो फिर मंत्रिमंडल का चेहरा बनेंगे। हालांकि बीजेपी अपनी ओर से ये स्पष्ट कर चुकी है कि तीन बार मंत्री रह चुके विधायकों को इस बार मौका नहीं मिलेगा। लेकिन क्या ये काम इतना आसान होगा। जो सीनियर विधायक इस बात से नाराज होंगे वो लोकसभा चुनाव पर असर डाल सकते हैं, ये डर तो जायज है।

चौथा पेंच हैं वो चेहरे जो शिवराज सिंह चौहान के बहुत करीबी रह चुके हैं। इस बार 12 मंत्री हार चुके हैं। इसके बावजूद शिवराज के करीबी विधानसभा तक पहुंचने में कामयाब हुए हैं। उन्हें मंत्रिमंडल में जगह दी जाएगी या नहीं ये भी तय करना जरूरी है।

पांचवा पेंच हैं वो विधायक जो कांग्रेसी दिग्गजों को हराकर सदन में पहुंचे हैं।

किसे क्या मिलेगा ?

इस बार गोविंद सिंह, कुणाल चौधरी, जीतू पटवारी, सज्जन सिंह वर्मा जैसे नेता चुनाव हार गए। अब ये कांग्रेसी तो लोकसभा में मुकद्दर आजमा सकते हैं, लेकिन इन्हें हराने वाले विधायकों को क्या रिवॉर्ड मिलेगा। इस सवाल का जवाब ढूंढना भी जरूरी है। क्योंकि ये जवाब नहीं ढूंढा तो हो सकता है कि नए विधायक बेमन से चुनावी मैदान में काम करें। कांग्रेसी धुरंधर उसका फायदा लोकसभा में उठा लें। आधा दर्जन से ज्यादा बीजेपी नेताओं ने चंबल-ग्वालियर और बुंदेलखंड अंचल में कांग्रेस के दिग्गजों को धूल चटाई है। इनमें भिंड की लहार सीट पर नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह को अंबरीश शर्मा और भिंड में चौधरी राकेश सिंह को नरेंद्र सिंह कुशवाह ने हराया है। शिवपुरी में केपी सिंह को देवेंद्र कुमार जैन, चाचौड़ा में लक्ष्मण प्रियंका मीणा और सेवढ़ा में घनश्याम सिंह को प्रदीप अग्रवाल सिंह ने शिकस्त दी है। इसी प्रकार बुंदेलखंड के छतरपुर में आलोक चतुर्वेदी को ललिता यादव और पन्ना जिले में मुकेश नायक को प्रहलाद लोधी ने हराया है। मंत्रिमंडल में शामिल करने के लिए इन 6 नामों पर लगातार दूसरी बार विचार हुआ है। भोपाल दक्षिण पश्चिम से भगवानदास सबनानी और भोजपुर से जीते सुरेंद्र पटवा ने भी कांग्रेस के दिग्गजों को हराया है। सबनानी ने पूर्व मंत्री पीसी शर्मा को शिकस्त दी है जबकि पटवा ने पूर्व मंत्री राजकुमार पटेल को, इसलिए मंत्री बनने के लिए इनके नाम चर्चा में हैं।

दिल्ली बैठक में होगा विचार

जबलपुर पश्चिम में कांग्रेस सरकार में वित्त मंत्री रहे तरुण भनोत को हराने वाले राकेश सिंह खुद बीजेपी के दिग्गज हैं। इसके अलावा मैहर में नारायण त्रिपाठी को हराने वाले श्रीकांत चतुर्वेदी, सिहावल में पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल को मात देने वाले विश्वामित्र पाठक और लांजी में हिना कांवरे को शिकस्त देने वाले राजकुमार कर्राए को मंत्री बनाए जाने के लिए दिल्ली की बैठक में विचार किए जाने की सूचना है। मालवा के 4 बीजेपी नेताओं ने कांग्रेस के दिग्गजों को हराया है। इनमें सोनकच्छ में सज्जन सिंह वर्मा को राजेश सोनकर, महेश्वर में विजयलक्ष्मी साधौ को राजकुमार मेव, राऊ में जीतू पटवारी को मधु वर्मा और दीपक जोशी को आशीष कोविंद शर्मा ने मात दी है।

छठवां पेंच है जाति और अंचल के आधार पर सही चेहरे का चयन करना। मालवा से अगर कैलाश विजयवर्गीय को चुना जाता है तो क्या सबसे ज्यादा मतों से जीतने वाले रमेश मंदोला को अनदेखा कर दिया जाएगा। इसी तरह राकेश सिंह और प्रहलाद पटेल में से किसे मौका मिलेगा। जीतकर आने के बाद रीति पाठक भी मंत्रिमंडल में जगह मिलने की आस जरूर लगाएंगी। विंध्य क्षेत्र में बीजेपी के पास दूसरे भी मुखर ब्राह्मण चेहरे हैं। किसी मौका मिलेगा किसे नहीं ये शॉर्टलिस्ट करना आसान नहीं है। अगर सभी ब्राह्मणों को मौका मिल गया तो ठाकुर और अन्य जातियों के प्रतिनिधित्व का क्या होगा। भोपाल जिले की सीट से रामेश्वर शर्मा और कृष्णा गौर भी रिकॉर्ड मतों से जीते हैं। दोनों को ही अपनी बारी का इंतजार जरूर होगा।

सातवां पेंच हैं बड़े गुट। बीजेपी भले ही गुटबाजी से इनकार करती रहे। लेकिन ये सच है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के जीते हुए समर्थक गोविंद राजपूत, तुलसी सिलावट, प्रद्युम्न सिंह तोमर। मालवा निमाड़ से कैलाश गुट के रमेश मेंदोला, इंदर परमार, निर्मला भूरिया, मंजू दादू, ग्वालियर चंबल से एंदल कंसाना, अमरीश शर्मा, बृजेंद्र यादव के नाम चर्चा में शामिल करना मजबूरी है।

हालांकि ये तय माना जा रहा है कि विंध्य इलाके से दिव्यराज सिंह, कुंवर टेकाम, महाकौशल से संपतिया उइके, ओम प्रकाश धुर्वे और भोपाल-नर्मदापुरम संभाग से रामेश्वर शर्मा, विष्णु खत्री, कृष्णा गौर, विश्वास सारंग और विजय शाह को मोहन मंत्रिमंडल में जगह मिलने की संभावना है। बुंदेलखंड से ललिता यादव, प्रदीप लारिया, बृजेंद्र प्रताप सिंह, हरिशंकर खटीक और गोपाल भार्गव को मंत्री बनाया जा सकता है।

मंत्रियों की संख्या कम

हालात ये है कि मंत्रियों की संख्या बहुत कम रखी जा सकती है। जबकि जीतकर आए दिग्गज और उम्मीद लगाए रखने वाले नए चेहरों की गिनती बहुत ज्यादा हो गई है। एमपी में सीएम सहित मंत्रिमंडल में 35 नेता हो सकते हैं। एक सीएम और 2 डिप्टी सीएम पहले ही हो चुके हैं। अब केवल 32 चेहरों की जगह शेष है। मुख्यमंत्री मोहन यादव ओबीसी, तो दोनों डिप्टी सीएम सवर्ण और एससी कोटे से आते हैं। इसलिए अन्य जातियों के विधायकों को मंत्रिमंडल में ज्यादा जगह मिलने की उम्मीद है। लोकसभा चुनाव देखते हुए भाजपा अन्य जातियों को लुभाने की भी कोशिश जरूर करना चाहेगी।

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बीजेपी के चाणक्य कर रहे माथापच्ची

लोकसभा चुनाव सिर पर न होते तो बीजेपी के लिए 32 चेहरे चुनना बहुत आसान होता। लेकिन अभी हालात अलग हैं। कोशिश है कि हर लोकसभा सीट से मंत्रिमंडल में एक चेहरा पहुंचे। जो जातीय समीकरणों पर भी बिलकुल फिट बैठता हो। जिस पर बीजेपी के चाणक्य फिर माथा पच्ची कर रहे हैं। अब तक बीजेपी के अधिकांश चुनावी पैंतरे सही ही साबित हुए हैं तो क्या मंत्रिमंडल गठन बीजेपी एक बार फिर कांग्रेस से चार कदम आगे निकलने में कामयाब हो पाएगी।

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