BHOPAL. मालवा-निमाड़ के बीजेपी के कई दिग्गज नेता 2023 के विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाना चाहते हैं। इन नेताओं ने अभी से जोड़-तोड़ शुरू कर दी है। हर हालत में पांचवीं बार मध्यप्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के लिए प्रयासरत पार्टी में भी इनमें से कुछ के दावों को गंभीरता से लिया जा रहा है। इनमें से कुछ सांसद ऐसे हैं जिन्हें आने वाले लोकसभा चुनाव में अपनी उम्मीदवारी खतरे में पड़ती दिख रही है।
ये हैं विधानसभा की ओर नजर करने वाले सांसद
शंकर लालवानी (इंदौर)
पिछले चुनाव में रिकार्ड मतों से जीते लालवानी की नजर इंदौर- 4 विधानसभा क्षेत्र पर है। वे इसी विधानसभा क्षेत्र से कई बार पार्षद भी रहे हैं। यहां से अभी मालिनी गौड़ विधायक हैं। वे तीसरी बार विधानसभा में पहुंची हैं। इसके पहले इसी क्षेत्र से उनके पति लक्ष्मणसिंह गौड़ भी विधायक रहे हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में सिंधी समाज के मतदाताओं का बाहुल्य है। 1984 में यहां से कांग्रेस ने नंदलाल माटा जैसे अनजान चेहरे को मैदान में उतारा था और वे चुनाव जीत गए थे। हालांकि इसके बाद दो बार कांग्रेस ने गोविंद मंघानी को मौका दिया, पर वे जीत नहीं पाए। लालवानी और वर्तमान विधायक के राजनीतिक समीकरण बिगड़े हुए हैं। सालभर पहले संपन्न हुए नगर निगम चुनाव में विधायक ने यहां सांसद की पसंद को बिलकुल तवज्जो नहीं दी थी। लालवानी इस विधानसभा क्षेत्र में बहुत सक्रिय हैं और विधायक विरोधियों को साथ लेकर चल रहे हैं।
सुधीर गुप्ता (मंदसौर)
मंदसौर से दो बार लोकसभा चुनाव जीत चुके सुधीर गुप्ता के निशाने पर मंदसौर विधानसभा क्षेत्र है। अपने नौ साल के संसदीय करियर में गुप्ता बीजेपी की राजनीति में राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित हो गए और इन दिनों उनके पास गुजरात सह प्रभारी और राष्ट्रीय सह कोषाध्यक्ष के रूप में दो बड़ी जिम्मेदारी हैं। मंदसौर से तीन बार विधायक चुने जा चुके यशपाल सिंह सिसौदिया और गुप्ता के संबंध बनते-बिगड़ते रहते हैं। यहां के बीजेपी कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग विधायक से नाराज है, गुप्ता को लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार के रूप में देखना चाहता है। यह भी माना जा रहा है कि यदि मध्यप्रदेश में बीजेपी सत्ता में बरकरार रहती है और गुप्ता विधायक चुने जाते हैं तो उन्हें वरिष्ठता के आधार पर मंत्रिमंडल में भी मौका मिल सकता है। यह संभावना भी जताई जा रही है कि इस बार गुप्ता की बजाय पार्टी किसी अन्य नेता को लोकसभा चुनाव में मौका दे सकती है।
गजेन्द्र पटेल (खरगोन)
बीजेपी में नए आदिवासी चेहरे के रूप में पटेल ने खुद को स्थापित कर लिया है। वे एक बार 2013 में भगवानपुरा से विधानसभा चुनाव लड़कर कांग्रेस के विजय सिंह सोलंकी से हार चुके हैं। 2018 में कांग्रेस ने भगवानपुरा से सोलंकी को फिर से मैदान में उतारा था, लेकिन निर्दलीय केदार डावर ने उन्हें विधानसभा में पहुंचने नहीं दिया। यहां डावर की स्थिति मजबूत है और बीजेपी इस बार उन्हें विधानसभा में जाने से रोकने के लिए पटेल को भगवानपुरा से मैदान में ला सकती है।
अनिल फिरोजिया (उज्जैन)
उज्जैन-आलोट के सांसद अनिल फिरोजिया की निगाह आलोट सीट पर है। ऐसा कहा जा रहा है कि बीजेपी फिरोजिया को संभवत: लोकसभा चुनाव में मौका ना दे। आलोट सीट पर बीजेपी हमेशा मजबूत रही है। 2018 में यहां कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत के बेटे जितेंद्र गहलोत को बीजेपी का टिकट दिया गया, पर कांग्रेस के नए चेहरे मनोज चावला ने उन्हें शिकस्त दे दी थी। फिरोजिया इस क्षेत्र में काफी सक्रिय हैं और पार्टी का एक बड़ा वर्ग भी उन्हें उम्मीदवार के रूप में देखना चाहता है। हालांकि गहलोत पार्टी में अपने प्रभाव का उपयोग कर एक बार फिर बेटे को मौका दिलवाना चाहेंगे।
महेन्द्र सिंह सोलंकी (देवास)
लंबे समय से कांग्रेस के कब्जे में चल रही सोनकच्छ सीट पर कांग्रेस के सज्जन सिंह वर्मा जैसे कद्दावर नेता के सामने बीजेपी देवास-शाजापुर क्षेत्र के सांसद महेंद्र सिंह सोलंकी को मैदान में ला सकती है। सोलंकी सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति में आए हैं और संघ के बहुत भरोसेमंद हैं। यहां वर्मा को शिकस्त देने के लिए बीजेपी के पास कोई बड़ा चेहरा भी नहीं है। सोलंकी इन दिनों वर्मा के खिलाफ काफी मुखर हैं।
छतरसिंह दरबार (धार)
उम्रदराज सांसद छतर सिंह दरबार को बीजेपी उमंग सिंगार के खिलाफ गंधवानी के मैदान में ला सकती है। हालांकि, दरबार यहां एक चुनाव हार चुके हैं। बढ़ती उम्र दरबार का नकारात्मक पक्ष है, लेकिन गंधवानी में बीजेपी के पास सिंगार का मुकाबला करने के लिए कोई बड़ा नाम भी नहीं है।