संजय गुप्ता, INDORE. बीजेपी सरकार ने मंत्रीमंडल का विस्तार करते हुए गौरीशंकर बिसेन, राजेंद्र शुक्ला और राहुल लोधी को जगह दे दी। लेकिन इंदौर से विधायक रमेश मेंदोला के हाथ एक बार फिर निराशा ही लगी। उनका नाम दूसरी बार चुनाव जीतने के बाद साल 2013 से ही मंत्री पद के दावेदारों में चल रहा है। प्रदेश में सबसे ज्यादा वोटों का लगातार रिकार्ड बनाने के बाद भी उनके हाथ कुछ नहीं लग रहा है। ऐसे में उनके समर्थक निराश होने लगे हैं। वहीं अब बात यह होने लगी है कि वह बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के खेमे के हैं, तो क्या इसी के चलते उन्हें भोपाल नजरअंदाज कर रहा है। क्योंकि सीएम शिवराज सिंह चौहान और विजयवर्गीय के संबंध किसी से छिपे नहीं जो सतह पर मधुर है और अंदर उतने ही खटास लिए हुए हैं।
मेंदोला का नाम क्या क्यों नहीं?
कुछ साल पहले मंत्रीमंडल में विस्तार के लिए मेंदोला का नाम चला था, लेकिन तब सांसद सुमित्रा महाजन की ओर से सुदर्शन गुप्ता का नाम आ गया और इसी खींचातानी में फिर मेंदोला को दरकिनार कर दिया गया। जब भी मंत्रीमंडल विस्तार की बात आती है तो इंदौर की आपसी खींचातानी में ही मंत्री पद निकल जाता है। जहां महाजन गुट में सांसद शंकर लालवानी, गुप्ता, मालिनी गौड़ आदि नेता शामिल माने जाते हैं तो वहीं विजयवर्गीय के साथ मेंदोला प्रमुख सिपहसालार है, साथ ही निश्चित तौर पर बेटा व विधायक आकाश विजयवर्गीय तो उनके साथ है ही, इसके साथ ही जीतू जिराती भी उनके साथ है। जिराती भी राउ से टिकट पाने से रह गए। वहीं विजयवर्गीय के एक और खास समर्थक चिंटू वर्मा देपालपुर से टिकट मांग रहे हैं, उन्हें भी यह मिलता है कि नहीं इसी पर नजरें हैं।
मेंदोला तो खुद सक्षम उन्हें पद की क्या जरूरत?
दरअसल भोपाल के राजनीतिक हलकों में बीजेपी के बड़े स्तरों पर जब भी मेंदोला को कुछ देने की बात आती है तो उनके साथ विजयवर्गीय गुट का होने की बात प्रमुख स्तर पर आ जाती है। इसके बाद कहा जाता है कि वह (मेंदोला) तो खुद सक्षम है सभी काम कराने के लिए तो फिर उन्हें किसी पद की क्या जरूरत है? वहीं कुछ नेता यह कहकर अड़ंगे अड़ाती है कि पार्टी ने उन्हें बहुत कुछ पहले ही दिया है कई पद दिए हैं। टिकट दिया, विधायक बनाया और अब क्या करने की जरूरत है। इन सभी खींचातानी के चलते उनका हक भोपाल में मार दिया जाता है।
मालिनी गौड़ और हार्डिया के साथ क्या हो रहा है?
मालिनी गौड़ को भी मंत्री पद दिए जाने की बात चलती है और वह सीएम शिवराज सिंह चौहान की पसंद की भी है, लेकिन जातिगत समीकरण और महिला नेत्री समीकरण के चलते उन्हें इससे दूर रखा गया। इंदौर से पहले ही उषा ठाकुर को मंत्री पद मिला हुआ है। वहीं उन्हें महापौर भी पार्टी बना चुकी है। वहीं पार्टी बहुत अब उन्हें आगे कंटीन्यू करने के मूड में नहीं है, इस बार यदि विधानसभा चार से टिकट मिला तो वह अंतिम ही होगा। ऐसे में अब पार्टी नए उम्मीदवारों की ओर देख रही है। यही हाल महेंद्र हार्डिया का भी है, पार्टी इस बार उनकी जगह नए चेहरे पर विधानसभा पांच के लिए विचार कर रही है। ऐसे पार्टी को उन्हें मंत्री पद देने से कोई बड़ा संदेश मतदाताओं को देने की वजह नजर नहीं आई जो पार्टी के लिए उपयोगी हो। इसके चलते पार्टी ने उन्हें भी मंत्री पद से दूर रखा है।
कौन कितनी बार से जीत रहा है?
मेंदोला साल 2008, 2013 और 2018 लगातार तीन बार से जीत रहे हैं, पहला चुनाव जहां करीब 39 हजार वोट से जीते तो दूसरा रिकार्ड 91 हजार वोट से और तीसरा चुनाव 71 हजार वोट से जीते। वहीं मालिनी गौड़ की बात करें तो वह भी 2008 से लागतार जीत रही है। वह भी पहले 28 हजार फिर 33 हजार और 2018 में 43 हजार वोट से जीती। इन सभी में सीनियर विधायक महेंद्र हार्डिया है। जो साल 2003 से लगातार जीत रहे हैं. हालांकि उनकी जीत विधानसभा दो और चार जैसी प्रभावी नहीं रही, वह 2003 में 22 हजार से, फिर 2008 में पांच हजार से 2013 में 14 हजार से और फिर 2018 में तो बमुश्किल 1132 वोट से ही जीते थे।