BHOPAL. केंद्र सरकार की 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए बनाई गई कोचिंग गाइडलाइन से कोचिंग संचालकों और अभिभावकों में हलचल है। खास तौर से मध्यप्रदेश में IIT और नीट (NEET) की तैयारी के लिए कोचिंग सेंटर्स में 5 लाख से ज्यादा छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। इनमें से 70 फीसदी बच्चे 10वीं पास हैं, इनमें 30 प्रतिशत बच्चे लगभग 14 साल के हैं, जो हाल ही में 8वीं पास कर पहुंचे हैं। इस हिसाब से करीब डेढ़ साल से ज्यादा बच्चे 16 साल से कम उम्र के हैं। केंद्र की गाइडलाइन के अनुसार उन्हें अब कोचिंग से बाहर जाना पड़ेगा। या यूं कहें कोचिंग सेंटर ऐसे बच्चों को एडमिशन नहीं दे सकेंगे।
केंद्र की गाइडलाइन का मप्र में होगा पूरी तरह पालन
अब केंद्र सरकार कोचिंग संस्थानों के लिए नई गाइडलाइन लेकर आई है। इसके मुताबिक 16 साल से कम उम्र के बच्चे कोचिंग संस्थानों में एडमिशन नहीं ले पाएंगे। इस बारे में मप्र के स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह ने कहा कि केंद्र की गाइडलाइन का मप्र में पूरी तरह से पालन किया जाएगा। राज्य सरकार ये गाइडलाइन लागू करती है तो प्रदेश की कोचिंग में पढ़ रहे 16 साल से कम उम्र के डेढ़ लाख बच्चे इन संस्थानों से बाहर हो जाएंगे।
केंद्र की इस नई गाइडलाइन को लेकर कोचिंग संचालक इसे अव्यवहारिक बता रहे हैं। वहीं कुछ पेरेंट्स इसके समर्थन में हैं तो कुछ विरोध में। हालांकि, एक्सपर्ट और साइकोलॉजिस्ट नई गाइडलाइन को सकारात्मक पहल के रूप में देख रहे हैं।
केंद्र सरकार ने गाइडलाइन क्यों बनाई ?
कोचिंग सेंटर्स के रेगुलेशन के लिए गाइडलाइन बनाने के बारे में यहां कुछ पॉइंट्स में समझते हैं-
- किसी निर्धारित नीति या रेगुलेशन के अभाव में देश में प्राइवेट कोचिंग सेंटर्स की संख्या बढ़ रही है। छात्रों से ज्यादा फीस वसूलने, कोचिंग संचालकों के गैरजरूरी तनाव देने के चलते छात्रों के खुदकुशी करने, आग और अन्य दुर्घटनाओं के कारण जान जाने की घटनाएं सामने आती रही हैं। इन मुद्दों पर कई बार संसद में बहस हुई है।
- सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में इस मामले में दायर याचिका पर फैसला देते हुए याचिकाकर्ता से कहा था कि वे इस मुद्दे को संबंधित अधिकारियों के सामने उठाएं जो कानून के मुताबिक इस पर विचार कर सकते हैं।
- संसद में पेश अशोक मिश्रा समिति की रिपोर्ट ने भी प्राइवेट कोचिंग के रेगुलेशन की बात की थी।
- छात्रों की खुदकुशी के निराकरण के लिए न्यायमूर्ति रूपनवाल जांच आयोग की रिपोर्ट ने भी 12 सुझाव दिए थे। जिसमें कोचिंग सेंटर्स के रेगुलेशन का भी सुझाव था।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भी सुझाव देती है कि कोचिंग संस्कृति के बजाय सीखने के लिए नियमित रचनात्मक मूल्यांकन पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
गाइडलाइन का सबसे ज्यादा असर 10वीं तक की कोचिंग पर
गाइडलाइन के अनुसार 16 साल से कम उम्र के बच्चों को एडमिशन नहीं दिया जाए। इसे लेकर कोचिंग संचालकों में असंतोष है। जो कोचिंग संस्थान दसवीं तक के बच्चों को पढ़ाते हैं उन पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। छोटे शहरों में बोर्ड परीक्षा की तैयारी करने के लिए दसवीं के छात्र कोचिंग संस्थानों पर सबसे ज्यादा निर्भर होते हैं।
ऐसी पॉलिसी कोटा के लिए बनाई जाए
इस गाइडलाइन को छात्र और शिक्षक दोनों के हित में नहीं मानते हैं। उनका मानना है कि आत्महत्या के सबसे ज्यादा मामले राजस्थान के कोटा में आते हैं। ऐसी पॉलिसी भी कोटा के लिए बनाई जाना चाहिए। हमारे पास स्टूडेंट्स उन विषयों की पढ़ाई करने आते हैं, जिसमें वो या तो कमजोर होते हैं या फिर जिसे ज्यादा प्राथमिकता देते हैं।
बड़े-बड़े कोचिंग संस्थान रिजल्ट देने के लिए पढ़ाई के नाम पर बच्चों को घंटों टॉर्चर करते हैं। हम तो 9वीं और दसवीं तक के बच्चों को उन विषयों को पढ़ाते हैं, जिस पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। किशारे बच्चों के कोचिंग पर पाबंदी होगी, तो हम तो पूरे बर्बाद हो जाएंगे। इस गाइडलाइन से हमारी रोजीरोटी झिन जाएगी।
उम्र सीमा के मामले में संशोधन होना चाहिए
वे कोचिंग संस्थान जो 9वीं और 10वीं क्लास से ही IIT और NEET की तैयारियां करवाते हैं, वे इस मुद्दे पर फिलहाल चुप हैं। भोपाल के एमपी नगर में IIT-NEET की तैयारी करवाने वाले एक कोचिंग संचालक ने कहा कि इन परीक्षाओं की तैयारी करने वाले ज्यादातर छात्र 14 से 16 साल की उम्र के ही होते हैं। ऐसे में तो वो कोचिंग से इन परीक्षाओं की तैयारी ही नहीं कर पाएंगे। जहां तक बीच कोर्स में फीस लौटाने या घंटों की सीमा तय करने की बात है, उससे हमें कोई समस्या नहीं है। लेकिन उम्र सीमा जैसे पॉइंट में संशोधन करना चाहिए।
सकारात्मक बदलाव है- एक्सपर्ट
शिक्षा से जुड़े एक्सपर्ट इसे सकारात्मक बदलाव मानते हैं। उनका मानना है कि कोचिंग संस्थान अपना बाजार बढ़ाने के लिए अभिभावकों को एक सपना दिखाते हैं। पेरेंट्स उन सपनों को अपने बच्चों पर थोपते हैं। बच्चों की चाहे उस विषय में रुचि हो या ना हो, उसे उससे जूझना पड़ता है। जो गाइडलाइन आई है, ये समय की मांग थी क्योंकि किशोरावस्था में ये मानसिक दबाव किसी टॉर्चर से कम नहीं होता। जहां तक कोचिंग संस्थानों के विरोध का सवाल है तो वे इसका विरोध करेंगे ही क्योंकि वे इसके एवज में मोटी फीस वसूल करते हैं।
पेरेंट्स और स्टूडेंट बोले- स्कूल में अच्छी पढ़ाई नहीं होती
एक पेरेंट्स का कहना है कि कोचिंग नहीं कराएंगे तो फिर कौन पढ़ाएगा? स्कूल जाना तो इसलिए जरूरी है कि आगे की डिग्री का रास्ता वहीं से होकर जाता है। पढ़ाई में असल समस्याएं तो कोचिंग से ही दूर होती हैं। सरकार को इस पर विचार करना चाहिए। यदि स्कूल से ही अच्छी पढ़ाई हो जाती तो हम कोचिंग पर पैसा बर्बाद क्यों करते? जहां तक बच्चों का कहना है कि गाइडलाइन में बदलाव होना चाहिए। यदि गाइडलाइन लागू होती है तो बहुत दिक्कत आएगी। वह कहती है कि स्कूल में बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा ज्यादा होती है। टीचर सभी बच्चों के सवालों का जवाब नहीं देते हैं। कोचिंग से कमजोर विषयों पर ध्यान दे पाते हैं।