संजय शर्मा, BHOPAL. खेती को लाभ का धंधा बनाने का दावा करने वाली सरकार की मॉनिटरिंग एजेंसियों की कमजोर निगरानी के चलते प्रदेश में 25 से ज्यादा सिंचाई परियोजनाएं अधूरी पड़ी हैं। भारी-भरकम बजट वाले इन प्रोजेक्ट में से कोई 10 साल से अधूरा पड़ा है तो किसी की निर्माण लागत डेढ़ से दो गुना तक बढ़ चुकी है। समय पर निर्माण पूरा हो इसकी चिंता यदि वॉटर रिसोर्स डिपार्टमेंट करता तो इन बांधों के पानी से सिंचाई कर लाखों किसान अपनी बदहाली से निजात पा सकते थे। बांधों के निर्माण की कछुआ चाल पर स्थानीय जनप्रतिनिधिओं और कृषक संगठनों की नाराजगी के बाद भी जिम्मेदारों ने सुध नहीं ली और खामियाजा या तो सिंचाई से वंचित किसान उठा रहे हैं या फिर प्रोजेक्ट कॉस्ट बढ़ने से नुकसान सरकार के खजाने को हो रहा है।
25 से ज्यादा प्रोजेक्ट अब भी अधूरे
प्रदेश की बीजेपी सरकार के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान खेती किसानी को फायदेमंद बनाने का भरोसा दिलाते रहे। उनकी सरकार ने कई इरिगेशन प्रोजेक्ट को भी स्वीकृति दी थी। करोड़ों रूपए की लागत वाले ये प्रोजेक्ट अब जमीन पर साकार हो रहे हैं। कुछ तो सिंचाई के लिए किसानों को पानी भी देने लगे हैं लेकिन दो दर्जन से ज्यादा बांध और उनसे जुड़े सिंचाई संरचनाओं का निर्माण अब भी, यानी कहीं 10 साल बाद तो कहीं 5 साल गुजरने पर भी पूरा नहीं हो पाया है।
द सूत्र की पड़ताल के जरिए हम आपको प्रदेश के ऐसे ही इरिगेशन प्रोजेक्ट (सिंचाई परियोजनाएं) के बारे में बताने जा रहे हैं जो फाइलों पर तो सरपट दौड़े लेकिन करोड़ों का बजट होने के बाद भी वे पूरे नहीं हो सके।
पहले बात करते हैं मालवा और निमाड़ अंचल की... इस अंचल में यानी नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर बन रहे बांधों का निर्माण पूरा होने की मियाद 2022 में पूरी हो चुकी है। ये प्रोजेक्ट खंडवा, खरगोन और अलीराजपुर जिलों में चल रहे हैं लेकिन काम पूरा होना तो दूर कुछ प्रोजेक्ट भूमि पूजन से आगे ही नहीं बढ़ पाए हैं। इसके साथ ही मालवा- निमाड़ अंचल में 140 करोड़ लागत वाला किल्लोद प्रोजेक्ट से 10 हजार हैक्टेयर में सिंचाई का लक्ष्य है लेकिन ये 10 साल से निर्माणधीन है। पामाखेड़ी प्रोजेक्ट, सिमरोल और चौड़ी जगानिया प्रोजेक्ट 150 करोड़ से बन रहे हैं। वहीं बलकवाडा प्रोजेक्ट की लागत 123 करोड़, जावर प्रोजेक्ट 466 करोड़ और नागलवाड़ी प्रोजेक्ट 1173 करोड़ के बड़े बजट ने तैयार हो रहा है। लेकिन इन सभी इरिगेशन प्रोजेक्ट के निर्माण की रफ्तार बेहद धीमी है जिससे प्रोजेक्ट कॉस्ट का भार भी बढ़ गया है और अंचल के हजारों किसानों को सिंचाई सुविधा से भी वंचित रहना पड़ रहा है।
अब बात प्रदेश के मध्य क्षेत्र, महाकौशल, विंध्य और बुंदेलखंड अंचल की करते हैं। सागर संभाग के सागर जिले में बीना इरिगेशन इरीगेशन प्रोजेक्ट पर दो दशक से ज्यादा समय से काम चल रहा है। एक दशक से ज्यादा समय तक तो यह प्रोजेक्ट फाइलों में ही रेंगता रहा और इसकी कंस्ट्रक्शन कॉस्ट दोगुनी होकर 1515 करोड़ रुपए से भी ज्यादा पहुंच गयी है और अभी भी परियोजना का काम 60 फीसदी ही हुआ है। दमोह जिले की 263 करोड़ का पंचमनगर इरिगेशन प्रोजेक्ट और सागर की सतगढ़ -कडान परियोजना सहित दुसरे प्रोजेक्ट भी पूरा होने का इंतज़ार कर रहे हैं। इसके अलावा विदिशा जिले में कोठा बैराज के निर्माण की रफ़्तार भी बेहद धीमी है। शमशाबाद में दो दशक बाद भी बाह और सगड़ प्रोजेक्ट पूरे नहीं हो पाए हैं। सीहोर जिले में रेहटी सिंचाई परियोजना, ग्वालियर-चंबल अंचल में सिंध फेस-1 और सिंध फेस-2, नर्मदानगर क्षेत्र में तवा-माचक डिस्ट्रीब्यूटरी प्रोजेक्ट भी अधूरे पड़े हैं।