बृजेश शर्मा, नरसिंहपुर. सरकार को अंधेरे में रखकर अफसरों ने केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना अमृत सरोवरों को पलीता लगा दिया है। अब सरकार ही अमृत सरोवरों के निर्माण पर उंगली उठा रही है। यहां हम बात कर रहे हैं ग्राम निकाय सरकार की अर्थात जिला पंचायत के निर्वाचित सदस्यों की, जिन पर ग्रामीण क्षेत्र के विकास और क्षेत्र की जरूरतों की पूर्ति करने की जिम्मेदारी होती है। ज़िला पंचायत सदस्यों को यह नहीं मालूम कि उनके क्षेत्र में अमृत सरोवर कितने और कैसे बन रहे हैं ? कितनी लागत है, उनका निर्माण सही हो रहा है या नहीं। जिले में इस वित्तीय वर्ष में 30 सरोवर बनना थे। जबकि बीते वित्तीय वर्ष 2021-22 में स्वीकृत सरोवरों को मिलाकर इनकी संख्या 63 है। इन सरोवरों के निर्माण का उद्देश्य यह था कि बारिश का अमृत तुल्य पानी रोका जाए ताकि जल स्तर में वृद्धि हो, जरूरतमंद लोगों और मवेशियों को पानी मिल सके।
योजना के अनुसार सरोवर के इर्द- गिर्द पौधारोपण हो, सरोवर के लिए बाकायदा गाइडलाइन भी तय है, जैसे तालाब की वाल, आउटलेट , पडल, मिट्टी का कटाव रोकने पिचिंग ,कैचमेंट एरिया आदि सटीक हो, लेकिन नरसिंहपुर जिले में बनने वाले सरोवरों में कई तकनीकी खामियां देखने को मिलेंगी और फिर यह भी कि मानसून जब महाकौशल समेत प्रदेश के सभी हिस्सों में दस्तक देने तैयार है, तब जिले में कोई भी सरोवर अमृत तुल्य बारिश के पानी को सहजने तैयार नहीं है। तालाब अधूरे हैं, नदारद हैं और उनमें कई तरह की विसंगतियां हैं।
नरसिंहपुर जिले में 63 में से 13 मार्च की स्थिति में लगभग 30 अमृत सरोवरों का निर्माण प्रगतिरत बताया गया है, जबकि 20 जून की स्थिति में अधिकारियों का कहना है कि 37 पूरे किए जा चुके हैं। हाल यह है कि साईंखेड़ा विकासखंड में तो कहीं सरोवरों के निर्माण के लिए एक पैसा भी खर्च नहीं हुआ।
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कार्य भी शुरू नहीं हुए
पिछले दिनों नरसिंहपुर कलेक्टर ने कुछ स्थानों का मुआयना किया। जिस दौरान कार्यों में लापरवाही पर नाराजगी जताई, सुधार के निर्देश दिए तो कहीं स्थान बदलने को भी कहा लेकिन यह सब मीडिया तक खबर पहुंचाने के लिए सीमित रहा। गोटेगांव जनपद के अंतर्गत बेलखेड़ी शेढ में अमृत सरोवर बीते वित्तीय वर्ष 2021-22 में 23 लाख 80 हज़ार रु की लागत से स्वीकृत हुआ लेकिन यह 22 जून 2023 की स्थिति में भी अधूरा है जबकि यह शेढ नदी के ऊंचे-नीचे मिट्टी के टीलों, पठार के बीच बनाया जा रहा है। निर्माणाधीन तालाब को देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि 23-24 लाख रुपए एक तरह से मिट्टी में मिलाए जाने की योजना बद्ध कहानी है। जिले में कुछ और तालाबों की भी स्थिति यही है।
नरसिंहपुर जनपद पंचायत के ग्राम डुडवारा ग्राम पंचायत के तहत ग्राम लबेरी में एक ढलान वाली जमीन को अमृत सरोवर की शक्ल देकर 20 .75 लाख़ रुपए खर्च करना बतला दिया गया। ना तो यहां पत्थरों की वाल दिखती है और ना ही सही तरीके से की गई पिंचिग। योजना के तहत पौधारोपण भी होना था लेकिन सब कागजों तक ही सीमित है। ग्राम कटकुही के सरोवर का हाल फोटो देखकर समझ जा सकता है कि कैसे लोकधन की बर्बादी की गई है।
आजादी के अमृत महोत्सव की परिपेक्ष में जिले में अमृत सरोवरों के निर्माण की जिस तरह से उपयोगिता और कार्ययोजना तैयार की गई है। योजना के मानक पर उसका कहीं भी धरातलीय स्वरूप सटीक नहीं है। ऐसे में नरसिंहपुर सहित मध्य प्रदेश के अनेक जिलों में निर्मित किए जा रहे अमृत सरोवर निर्माण के बाद कितने सही सार्थक होंगे ? यह फिलहाल ठोस तरीके से नहीं कहा जा सकता और इन सरोवर में कितना पानी रह पायेगा और इन अमृत सरोवरों के निर्माण को लेकर रोजगार सहित अन्य सुविधाओं की उपलब्धता कितनी कारगर सिद्ध होंगी ? इस पर भी सवालिया निशान हैं। प्रदेश में इस वित्तीय वर्ष में 307.6 करोड़ की लागत से 2452 अमृतसर सरोवर बनना है जब जिले का यह हाल है तो सहज तौर पर अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रदेश में लगभग स्थिति कमोवेश यही होगी।
बात करने से कतराते हैं अधिकारी
इस मामले में जिला पंचायत की सीईओ सुनीता खंडायत से बात करने की कोशिश की गई लेकिन वह कैमरे के सामने कुछ भी कहने के लिए तैयार नहीं थीं। हालांकि अधिकारी ने यह जरूर कहा कि 63 अमृत सरोवर बनना हैं, जिनमें 37 लगभग पूरे हो चुके हैं और शेष का काम चल रहा है।
विधानसभा में भी उठा था मामला
वैसे अमृत सरोवर में गड़बड़ी का यह मामला विधानसभा में भी उठ चुका है। जिला पंचायत की बैठक में भी छाया रहा। इस सिलसिले में जब क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों से चर्चा की गई तो वह स्वीकारते हैं कि गड़बड़ियां तो हैं।
जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष एवं कांग्रेस नेता संदीप पटेल बेबाक कहते हैं कि यह भ्रष्टाचार की योजना है। उनका कहना है कि अमृत सरोवर जैसी योजना सरकारी तंत्र के शोषण की योजना है। सरपंच और अन्य लोगों को इससे परेशान किया जाता है, पहले ही हिसाब किताब कर लिया जाता है, जल संरक्षण तो बहुत दूर और बाद की बात है। यह भ्रष्टाचार की योजना है, आप पिछले वर्ष या इस वर्ष जितने भी अमृतसरोवर बने हैं वहां देखिए, कहीं किसी में पानी नहीं ठहरता दिखेगा। कहते हैं कि पूरी तरह से यह शासन तंत्र की कमाई योजना है।
इस मामले में जब भाजपा जिला उपाध्यक्ष हरीप्रताप ममार से बात की गई तो उनका कहना था कि राज्य व केंद्र सरकार की सोच है कि लोगों तक की योजनाओं का लाभ पहुंचे। जमीन के जल स्तर पर वृद्धि हो, अगर सरकार के निर्णय पर कहीं अमल नहीं हो रहा है तो प्रशासन को चाहिए कि उसे ठीक करे। किसी तरह की कोई कमीवेशी है तो उनको दुरुस्त करे।
जिला पंचायत सदस्य एवं कांग्रेस नेत्री मोना कौरव कहती हैं कि पूरे मामले उनके संज्ञान में है। उन्होंने जिला पंचायत की बैठक में भी यह मुद्दा उठाया था, कहती हैं कि उनके गृह ग्राम इमलिया पिपरिया में भी सरोवर बना है लेकिन पूरा काम ठेकेदार को दे दिया गया है। इसमें जनप्रतिनिधियों की कोई गलती नहीं है, अधिकारी और ठेकेदार मिलकर गड़बड़ कर रहे हैं। सरपंच अधिकारी से बुराई नहीं लेना चाहते हैं इसलिए वह सिर्फ दस्तखत करने मजबूर रहते है, ठेकेदार और अधिकारी पूरी तरह जवाब देह हैं।
जिला पंचायत सदस्य एवं भाजपा नेता देवेंद्र गंगोलिया स्वीकार करते हैं कि निश्चित तौर पर इनमें त्रुटियां हुई हैं लेकिन कलेक्टर मैडम के दौरे के बाद इनमें काफी हद तक सुधार आया है, और जो भी गड़बड़ियां है उन्हें भी सुधारा जाएगा। भाजपा नेता तथा जिला पंचायत सदस्य नवाब ठाकुर तो कहते हैं कि उन्हें तो पता ही कि नहीं कि उनके क्षेत्र में अमृत सरोवर बन रहे है, और पूरे जिले में 10 वार्डों में दिखा दें कि किस तरह सरोवर बन गए है जहां पानी रोका जा सके।