MP: 11 वर्ग किलोमीटर घटा घना जंगल, नर्मदा की धार भी 31 फीसदी पतली

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Sunil Shukla
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MP: 11 वर्ग किलोमीटर घटा घना जंगल, नर्मदा की धार भी 31 फीसदी पतली

रूचि वर्मा, Bhopal. सतपुड़ा के घने जंगल (Dense forests of Satpura) और कल-कल करती सदा नीरा नर्मदा (Narmada) हिंदुस्तान का दिल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) की कुदरती पहचान और अमूल्य धरोहर है। इतनी महत्वपूर्ण कि मां नर्मदा की महिमा बखान खुद आदि शंकराचार्य (Shankaracharya) ने नर्मदाष्टक "त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे..." के रूप में किया है। और सतपुड़ा के जंगल की विशेषताओं का वर्णन राष्ट्रकवि भवानी प्रसाद मिश्र (National poet Bhavani Prasad Mishra) ने अपनी सुप्रसिद्ध रचना "ऊंघते अनमने जंगल, सतपुड़ा के घने जंगल" में किया है। लेकिन हमारे लोभ-लालच और असंवेदनशील आचरण से अब हमारी इन दोनों ही धरोहरों की सेहत बिगड़ रही है। नर्मदा की धार पतली हो रही है और सतपुड़ा का घना जंगल सिकुड़ रहा है। पिछले तीन सालों में ही सतपुड़ा का वन क्षेत्र 11 वर्ग किलोमीटर घट गया है और नर्मदा की धार में 31 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। 





राज्य में घना जंगल अब सिर्फ 8.60 फीसदी बचा   





अपने हरे-भरे और घने जंगलों के लिए मशहूर मध्य प्रदेश का फॉरेस्ट कवर खतरे में है। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Union Ministry of Environment, Forest and Climate Change) के अनुसार मप्र  में 'बहुत घने' जंगल तेजी से विरल होकर सिकुड़ रहे हैं। कुल फॉरेस्ट कवर राज्य के भौगोलिक विस्तार का लगभग 25 फीसदी रह गया है। राज्य का बहुत घना जंगल कुल क्षेत्रफल का केवल 8.6 फीसदी रह गया है। 'हल्के घने जंगल' सिर्फ 36 फीसदी रह गए हैं और बाकी खुले जंगल ही बचे हैं।





हरदा और सीहोर में सबसे तेजी से घटा फॉरेस्ट कवर  





मप्र के 23 जिलों के फॉरेस्ट कवर में कमी दर्ज की गई है। सबसे तेज गिरावट हरदा से है- यहां दो साल में 51 फीसदी की कमी आई है। इसके बाद सीहोर जिले के वन क्षेत्र में पिछले दो वर्षों में 46 फीसदी की गिरावट आई है। वहीं राजधानी भोपाल में 25 फीसदी फारेस्ट कवर कम हो गया है। यही हाल विदिशा जिले का है। भोपाल, सीहोर और विदिशा जिलों में तो फॉरेस्ट कवर भौगोलिक क्षेत्र क्रमशः केवल 11 फीसदी, 20 फीसदी और 10 फीसदी तक ही बचा रह गया है। 2017 में पिछले आंकलन की तुलना में भोपाल, विदिशा और सीहोर जिलों में वनावरण में क्रमश: 25.33 फीसदी, 25.54 फीसदी और 46.10 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। कुल मिलाकर, भोपाल, सीहोर और विदिशा- इन तीन जिलों ने दो वर्षों के अंतराल में अपने वन क्षेत्र का एक तिहाई हिस्सा खो दिया है।





घना जंगल 11 वर्ग किमी,  मध्यम घना 132 वर्ग किमी कम हो गया





आईएसएफआर-2021 (ISFR) की रिपोर्ट के अनुसार 2011 से 2019 तक फॉरेस्ट कवर में नेट गिरावट दर्ज की गई है। 2011 में मध्य प्रदेश का कुल वन क्षेत्र 77 हजार 700 वर्ग किमी था। 2017 में यह 286 वर्ग किमी घटकर 77 हजार 414 वर्ग किमी हो गया। इसके बाद 2019 तक स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ जब राज्य का कुल वन क्षेत्र 68 वर्ग किमी बढ़कर 77,482 वर्ग किमी हो गया। लेकिन यह 2011 में मध्य प्रदेश के कुल वन क्षेत्र से कम ही है।





प्रदेश में 2019 में बहुत घना जंगल 6 हजार 676 स्क्वायर किलोमीटर था। मध्यम रूप से घना जंगल 34 हजार 341 स्क्वायर किलोमीटर था। जबकि खुला जंगल 36 हजार 465 स्क्वायर किलोमीटर था। इस प्रकार प्रदेश में कुल वन क्षेत्र 77 हजार 482 स्क्वायर किलोमीटर था। इसके मुकाबले वर्ष 2021 में बहुत घना जंगल घटकर 6 हजार 665 स्क्वायर किलोमीटर हो गया। मध्यम रूप से घना जंगल भी घटकर 34 हजार 209 स्क्वायर किलोमीटर हो गया। जबकि खुला जंगल बढ़कर 36 हजार 619 स्क्वायर किलोमीटर हो गया। 





जंगल घटने का सीधा असर पर्यावऱण पर पड़ता है 





वन एवं पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक प्रदेश में जंगल घटने का मुख्य कारण विकास औऱ निर्माण कार्यों के लिए सरकारी एवं निजी जमीन पर पेड़ों की कटाई, अवैध कटाई, खेती के लिए वनों की कटाई, जंगल की जमीन पर अतिक्रमण, अवैध उत्खनन और जंगली जानवरों का शिकार प्रमुख है। वनों की कटाई की सीधा असर वन्यजीवों और नदियों और पर्यावरण पर पड़ता है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार को बेहतर सार्वजनिक नीतियों औऱ योजनाओं से दूर करने की आवश्यकता है। एक पर्यावरण अध्ययन विशेषज्ञ और सरकार के सलाहकार के अनुसार सरकार को राज्य एवं देश की आर्थिक समृद्धि की रक्षा के लिए फारेस्ट कवर के महत्व और इसके जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और आजीविका पर पड़ने वाले प्रभाव को समझने की जरुरत है। 





नर्मदा दुनिया की 6 नदियों में शामिल जिसके अस्तितव पर संकट  





घटते जंगलों के बाद अब बात करते हैं मप्र की लाइफ लाइन कही जाने वाली मां नर्मदा की। इसके किनारे जंगलों की अवैध कटाई, अवैध उत्खनन और प्रदूषण के कारण नर्मदा की सांसें उखड़ रही हैं। धार टूट रही है, जलस्तर कम हो रहा है। भारत की 5वीं सबसे बड़ी नर्मदा नदी को 2019 में वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट ने एक रिपोर्ट में दुनिया की उन 6 नदियों की सूची में रखा, जिनके अस्तित्व पर खतरा है। 





45 साल में नर्मदा में बहने वाले पानी की मात्रा आधी रह गई 





1975 की कैलकुलेशन के अनुसार, नर्मदा नदी में बहने वाली पानी की उपलब्धता 28 मिलियन एकड़ फीट (MAF) थी। नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने 1980-81 से हर साल नर्मदा कछार में उपलब्ध जल की मात्रा का जो रिकॉर्ड किया गया, उससे यह पता चलता है कि नर्मदा कछार में उपलब्ध जल की मात्रा घट रही है। 2010-2011 में नर्मदा कछार में 22.11 MAF जल उपलब्ध था। अप्रैल 2018 में आई मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में नर्मदा नदी की जल उपलब्धता 14.66 MAF पाई गई। साफ है कि 45 सालों में नदी में बहने वाले पानी की उपलब्धता घटकर आधी रह गई है।





तीन साल में ही 31 फीसदी तक प्रवाह में कमी 





द सूत्र की पड़ताल में यह खुलासा हुआ कि नर्मदा नदी के प्रवाह में लगातार कमी आ रही है। मात्र तीन साल में यह कमी 20 से 31 फीसदी तक है। नर्मदा नदी के तीन प्रमुख स्थान बरमान घाट, सांडिया और होशंगाबाद में नदी के प्रवाह का पता लगाया। जो आंकड़े मिले वे बेहद चौंकाने वाले हैं। सभी आंकड़े मॉनसून के जाने के बाद के हैं। 31 अक्टूबर 2019, 2020 और 2021 के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि नर्मदा नदी का जल प्रवाह तेजी से कम हुआ है। बरमान घाट पर यह क्रमशः 284 घनमीटर/सेकंड, 118 घनमीटर/सेकंड और 87.3 घनमीटर/सेकंड रहा। इसी तरह सांडिया में नर्मदा नदी का जल प्रवाह 679.2, 290.7, 112.6 घनमीटर/सेकंड रहा। होशंगाबाद में 2019 में 640.1 घनमीटर/सेकंड, 2020 में 210 घनमीटर/सेकंड और 2021 में यह घटकर 129 घनमीटर/सेकंड रह गया है।





सांडिया घाट  में 3 साल में 1.39 मीटर तक कम हुआ जलस्तर 





नर्मदा का जलस्तर कितना कम हो रहा है, यह जानने के लिए द सूत्र ने 2019 से 2020 तक के आंकड़े जुटाए। जो सच सामने आया, वह डराने वाला है। सांडिया में नर्मदा का जलस्तर 3 साल में 1.29 मीटर तक कम हो गया। 31 अक्टूबर 2019 में यह 300.74 मीटर था, 2020 में यह 299.93 मीटर हुआ, जो 2021 में गिरकर 299.35 मीटर तक पहुंच गया। होशंगाबाद में इन्हीं तीन सालों में 0.65 मीटर की कमी आई। 2019 में यहां नर्मदा का जलस्तर 285.15 मीटर था, 2020 में 284.8 और 2021 में 284.5 मीटर पर पहुंच गया। मंडला में इन्हीं 3 सालों में 0.33 मीटर और बरमान घाट में 0.25 मीटर की गिरावट देखी गई।





जबलपुर में नर्मदा सबसे ज्यादा प्रदूषित, पानी आचमन लायक भी नहीं 





मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PCB) ने नर्मदा नदी (Narmada River) के पानी पर एक जांच रिपोर्ट (Report on Narmada Water) पेश की है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में पेश हुई इस रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि नर्मदा नदी जबलपुर (Jabalpur) में सबसे ज्यादा प्रदूषित हो रही है। जबलपुर में रोज 136 MLD सीवरेज की गंदगी नर्मदा में मिल रही है। यहां के घाटों पर नर्मदा का जल आचमन लायक तक नहीं है। ग्वारीघाट और तिलवारा समेत अन्य किनारे के गांवों की गंदगी सीधे नर्मदा में मिल रही है।





कैसे बचे नर्मदाः  रेत के बिना नहीं बचेगा नदी का अस्तित्व





वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं पर्यावरणविद् सुभाष सी. पांडे का कहना है कि नर्मदा नदी का अस्तित्व तभी तक है, जब तक की उसमें रेत है। दरअसल, रेत का एक महत्वपूर्ण गुण होता है कि वह पानी को पकड़कर रखती है। नर्मदा में जो पानी देखाई देता है, वह इसी कारण है। यदि रेत नहीं होगी तो पूरा पानी बह जाएगा और बारिश के अलावा ठंड और गर्मी में नदी कई घाटों पर पूरी तरह सूख जाएगी। इसलिए सबसे पहले ये जरूरी है कि नदी में रेत के अवैध उत्खनन पर सख्ती से रोक लगाई जाए। 





नदी किनारे जितने ज्यादा पेड़ उतनी सेहतमंद होगी नर्मदा 





पांडे स्पष्ट करते हैं कि नदी के किनारों पर जितने ज्यादा पेड़ होंगे, वहां नदी के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा होगी। ऑक्सीजन ज्यादा होने से पानी में उछाल आएगा और इससे नदी में घुली ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा होगी। इससे पानी हेल्दी होगा, जो जलीय जीव जंतुओं और आमजन के लिए भी लाभदायक होगा।





प्रदूषण पर अंकुश के लिए नदी किनारे शहरों में जल्द शुरू हों ट्रीटमेंट प्लांट 





नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़ी रहीं मेघा पाटकर का कहना है कि सरकार ने इजराइली कंपनी को नदी किनारे ट्रीटमेंट प्लांट बनाने का ठेका दिया। कंपनी बहुत धीरे काम कर रही है। मध्य प्रदेश के बड़े शहर हों या छोटे, ड्रेनेज का पानी बिना ट्रीटमेंट सीधे ही नदी में मिल रहा है, इसमें इंदिरा सागर बांध के पास बनी ऑफिसर्स कॉलोनी भी शामिल है।





नर्मदा को बचाने के लिए बड़े-बड़े दावे-वादे लेकिन अमल कमजोर 





मां नर्मदा के संरक्षण के लिए मध्य प्रदेश सरकार कई बड़े-बड़े दावे और वादे करती रही है। राजधानी की प्रशासन अकादमी में 2017 में इसके लिए 3 दिनों तक बड़ी नेशनल वर्कशॉप हुई। इसमें देशभर के पर्यावरणविद् जुटे, नदी के संरक्षण के लिए बढ़-चढ़कर बातें हुईं लेकिन अमल कुछ नहीं हुआ। 3 मई 2017 को नर्मदा नदी को जीवित इकाई का (Live Unit) दर्जा देने के लिए  मप्र विधानसभा में संकल्प पारित किया गया। इस दौरान तत्कालीन पर्यावरण मंत्री अंतर सिंह आर्य ने विधानसभा में नर्मदा नदी को जीवित इकाई का दर्जा देने का संकल्प रखा।





नर्मदा को जीवित इकाई के दर्जे का संकल्प लिया लेकिन जरूरी कानून नहीं बनाया 





कहा गया कि कानून बनने के बाद नदी को जीवित व्यक्ति के सभी अधिकार मिलेंगे। नदी में प्रदूषण फैलाने या नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ नदी के नाम से ही FIR दर्ज कराई जाएगी। इसके लिए प्राधिकृत अधिकारी तैनात किया जाएगा या फिर किसी संस्था को अधिकार दिए जाएंगे, लेकिन संकल्प पारित होने के बाद भी ये संकल्प कानून की शक्ल नहीं ले सका। प्रदेश के मुखिया सीएम शिवराज सिंह चौहान ने नर्मदा जयंती के पहले अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि नर्मदा जयंती तक जो नाले सीधे नदी में मिल रहे हैं, वहां एसटीपी प्लांट शुरू हो जाना चाहिए पर ऐसा हुआ नहीं। 







 



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