रविकांत दीक्षित, BHOPAL. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भोपाल दौरे के साथ ही भाजपा ने मध्यप्रदेश में चुनावी बिगुल फूंक दिया है। नेताओं को मैदानी जिम्मेदारियां सौंप दी गई हैं। क्षत्रपों को वर्ग विशेष को साधने का काम भी सौंपा गया है। इनमें सबसे प्रमुख नाम मध्यप्रदेश युवा आयोग के अध्यक्ष डॉ. निशांत खरे का है। संघ ने कोटे से आने वाले डॉ. खरे को पार्टी ने वीरांगना रानी दुर्गावती की गौरव यात्रा की अहम जिम्मेदारी दी है। इस रिपोर्ट में जानिए आखिर सरकार ने डॉ.निशांत खरे पर ही क्यों खेला दांव? क्या हैं उनकी खूबियां? कैसे बढ़ रहा उनका सियासी कद? कैसे दिग्गज भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय के साथ वे आदिवासियों को साधने के लिए कर रहे हैं काम?
आदिवासी वोट बैंक पर नजर
दरअसल, भाजपा गौरव यात्रा को आदिवासियों को साधने के लिए बड़ा सियासी हथियार मान रही है। यही वजह है कि डॉ. खरे को इस काम में जुटाया है। उनकी मालवा और निमाड़ के आदिवासी वर्ग में अच्छी पैठ है और भाजपा उनकी इसी ताकत का फायदा उठानी चाहती है। यह इसलिए भी खास है, क्योंकि वर्ष 2018 के चुनाव में भाजपा आदिवासी सीटों पर पिछड़ गई थी। इसलिए इस बार रणनीतिक तौर पर पार्टी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है।
पहले बिरसा मुंडा की जयंती पर बड़ा कार्यक्रम किया गया और अब रानी दुर्गावती की गौरव यात्रा के जरिए आदिवासी वोटों को साधने की तैयारी है। 1 जुलाई को प्रधानमंत्री मोदी आदिवासी बहुल शहडोल में गौरव यात्रा का समापन करेंगे। पहले यह कार्यक्रम 27 जून को प्रस्तावित था, लेकिन खराब मौसम के चलते इसे रद्द कर दिया गया था।
डॉ.खरे आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय
पेशे से सर्जन डॉ.निशांत खरे जनजातीय वर्ग में काफी लोकप्रिय हैं। महू में पिछले दिनों हुई आदिवासी युवक की मौत के मामले में उन्होंने सरकार को इस फांस से बाहर निकालने में अहम भूमिका निभाई थी। वे आदिवासी खेलों के संरक्षण के लिए काम करते रहे हैं। उन्होंने बिरसा मुंडा क्रिकेट लीग कराकर आदिवासी युवाओं को मुख्य धारा में लाने का भी प्रयास किया था। साथ ही आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य शिविरों के जरिए भी वे लगातार सक्रिय बने रहते हैं।
प्रदेश में आदिवासी बहुल 47 सीटें
230 सीटों वाली मध्यप्रदेश विधानसभा में 47 सीटें आदिवासी बहुल हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि आदिवासी जिस पार्टी का साथ देते हैं, सत्ता की चाबी उसी के हाथ में होती है। वर्ष 2018 के चुनाव में कांग्रेस को 47 में से 31 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि भाजपा को 15 सीटें मिली थीं। एक सीट पर भाजपा के बागी नेता को ही निर्दलीय जीत मिली थी। इससे सबक लेकर अब सीधे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS ) ने आदिवासी सीटों पर फोकस किया है। चूंकि डॉ. निशांत खरे आदिवासियों में चर्चित चेहरा हैं, इसलिए गौरव यात्रा की जिम्मेदारी उन्हीं को सौंपी गई है।
जयस की काट निकालने की कवायद
इधर, इस बार भी जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन 'जयस' ने सक्रियता बढ़ा दी है। इसकी काट निकालने के लिए डॉ. खरे को आगे करना भाजपा की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। वे सामाजिक मंचों से हिन्दुत्व के साथ आदिवासियों के हितों की पैरवी करते रहे हैं। उन्होंने पिछले दिनों महू में स्वाभिमान यात्रा के जरिए अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज कराई थी। इस यात्रा में बड़ी संख्या में महिलाओं की भागीदारी भी रही थी।
महापौर पद के लिए आए थे चर्चा में
अपने सरल, सौम्य व्यवहार के चलते युवाओं में लोकप्रिय डॉ. खरे का नाम पहले इंदौर महापौर प्रत्याशी के तौर पर तेजी से उभरा था, लेकिन स्थानीय समीकरणों के चलते भाजपा ने ऐन वक्त पर उनका टिकट काटकर पुष्यमित्र भार्गव को दे दिया था। इसमें उनकी राजनीतिक रूप से कैलाश विजयवर्गीय से पटरी न बैठना अहम कारण था, लेकिन अब दोनों में सुलह हो गई है। मालवा-निमाड़ में दोनों नेताओं के अनुभव और टीम का फायदा सीधे तौर पर भाजपा को मिल रहा है। डॉ. खरे इससे पहले भाजपा संगठन में और भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभा चुके हैं। कोरोना काल में उन्होंने अपनी सक्रियता दिखाते हुए कई महत्वपूर्ण दायित्व निभाए थे।