एमपी में मोबाइल पशु चिकित्सा योजना 54 दिनों में मिसमैनेजमेंट का शिकार, बिना फंड्स दौड़ाए 406 वाहन; अब दवा, स्टाफ, ईंधन का क्राइसिस

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Ruchi Verma
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एमपी में मोबाइल पशु चिकित्सा योजना 54 दिनों में मिसमैनेजमेंट का शिकार, बिना फंड्स दौड़ाए 406 वाहन; अब दवा, स्टाफ, ईंधन का क्राइसिस

BHOPAL. बिना फुल प्रूफ प्लानिंग के जो योजनाएं शुरू की जाती हैं, उनका क्या हाल होता है, इसका बड़ा उदाहरण है मध्य प्रदेश की मोबाइल पशु चिकित्सा यूनिट योजना। 12 मई, 2023 को भोपाल के लाल परेड ग्राउंड में गौ रक्षा संकल्प सम्मेलन में CM शिवराज सिंह चौहान ने पूरे जोर-शोर से 406 मोबाइल पशु चिकित्सा यूनिट/वाहन राज्य में दौड़ाए थे। लेकिन शुरू होने के केवल 54 दिनों के अंदर ही ये योजना परेशानियों में घिर गई है। कहीं मोबाइल पशु चिकित्सा वाहन खराब पड़ा हुआ है तो कहीं चिकित्सा गाड़ी के लिए ईंधन और पशुओं के इलाज के लिए औषधियां खरीदने में दिक्कत हो रही है। कारण - योजना के संचालन के लिए बजट का अभाव। भोपाल के राज्य पशु चिकित्सालय में खड़ा-खड़ा धूल खा रहा ये मोबाइल पशु चिकित्सा वाहन इसका उदाहरण है।



क्या है योजना?



मोबाइल पशु चिकित्सा यूनिट योजना को शुरू करने का मुख्य उद्देश्य था कि राज्य के  में ग्रामीणों इलाकों में जरूरतमंद किसानों के घर तक पहुंचकर पशुओं -विशेषकर गाय- का इलाज किया जा सके। योजना के तहत किसी भी तरह के इलाज के लिए 150 रुपए का शुल्क चार्ज किया जाता है। यूनिट में एक पशु चिकित्सक, एक पैरावेट, और एक सहायक संचालक/ड्रायवर मौजूद होता है। पशुओं के बीमार होने पर इलाज के लिए पशुपालकों को एक टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर 1962 पर कॉल करना होता है। जिसके बाद एक टिकट जेनेरेट किया जाता है और यूनिट-एंबुलेंस पशुपालकों के घर पहुँचती है।



बिना समुचित बजट के योजना का श्री गणेश कर दिया!



दरअसल, बजट की समुचित व्यवस्था किये बिना ही योजना को शुरू कर दिया गया।  योजना लांच करते वक़्त इसके बजट में केंद्र का हिस्सा 60 फीसदी और राज्य का हिस्सा 40 फीसदी के अनुपात में तय हुआ था। लेकिन अभी तक केंद्र सरकार के हिस्से वाला बजट मिला ही नहीं है। ऐसे में कई जिलों/विकासखंडों में वाहन के लिए डीजल तक के लाले पड़ गए हैं। तो वहीँ पशुओं के इलाज़ के लिए औषधि खरीदने में भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अब केंद्र से बजट प्राप्त करने के लिए डेयरी एवं पशुपालन विभाग केंद्र के चिट्ठी-पत्री का सिलसिला जारी है। विभाग ने योजान शुरू करने से पहले तो खर्च के मैनेजमेंट यानी बजट प्रावधान पर ध्यान दिया नहीं, अब ये चिट्ठियां फण्ड में कब परिवर्तित होंगी ये तो आने वाला समय ही बताएगा।



योजना के संचालन पर हर साल 97 करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्चा



योजना की तहत 406 मोबाइल पशु चिकित्सा यूनिट्स के संचालन पर हर साल 97 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च होने हैं। फ़िलहाल अगर एक वाहन की एक माह के संचालन की खर्च की बात करें तो डीजल का खर्चा 33 हज़ार रुपए और जानवरों की दवाइयों का खर्चा 35 हज़ार रुपए आता है। वही स्टाफ में पशु चिकित्सक की सैलरी 56 हज़ार रुपए, पैरावेट के सैलरी 40 हज़ार रुपए और सहायक संचालक/ड्रायवर की सैलरी 17 हज़ार रुपए होती हैं। फ़िलहाल ये सारा खर्चा राज्य के बजट हिस्सेदारी के रूप में  जिला पशु रोगी कल्याण समिति करती है। यानी राज्य सरकार अपने पैसों से ही फिलहाल काम चला रही है।  लेकिन सवाल ये है कि कबतक? क्योंकि एक वाहन पर करीब 2 लाख रुपए महीने का खर्च है, यानी एक साल में 24 लाख रुपए खर्च। अब पूरे प्रदेश में 406 यूनिट है इस हिसाब से महीने का खर्च है करीब 8 करोड़ रुपए और साल का खर्च है करीब 97 करोड़ रु। केंद्र ने पैसा दिया नहीं है, तो राज्य के पास केवल 5 महीने का बजट है।



स्टाफ की कमी



भोपाल जिले में इस वक़्त 3 मोबाइल पशु चिकित्सा यूनिट्स संचालित हैं - एक बैरसिया क्षेत्र के लिए, एक फंदा के लिए और एक भोपाल लोकल के लिए। हालांकि, इसमें से एक वाहन बंद पड़ा हुआ है और राज्य पशु चिकित्सालय में खड़ा-खड़ा धूल खा रहा है। संसथान के डिप्टी डाइरेक्टर डॉ अजय रामटेके का कहना है कि हर वाहन में करीब तीन लोगो का स्टाफ लगता है- एक पशु चिकित्सक, एक पैरावेट, और एक सहायक संचालक/ड्रायवर। पर बैकअप स्टाफ की कमी की वजह से ये तीन लोगो का स्टाफ पिछले डेढ़ महीनों से लगातार बिना छुट्टी के काम कर रहा है। साथ ही बैकअप वाहन की कमी से अगर कोई वाहन ख़राब हो जाता है तो सेवाओं पर असर पड़ता है। फ़िलहाल भोपाल जिले में रोज २० के करीब कॉल्स आते हैं और उनमें से 11-12 जानवरों का हम इलाज़ कर पाते हैं। लेकिन अगर कभी कोई कॉल्स जिले के चार दूरस्थ इलाकों से आ जाएं तो हमारा वक़्त उन 4 जानवरों के इलाज में ही निकल जाता है। इसलिए अगर वाहन बढ़ जाए तो सेवा बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।



अन्य राज्यों में सफल है योजना



ऐसा नहीं है की मोबाइल पशु चिकित्सा योजना सिर्फ मध्य प्रदेश में ही लागू है..बल्कि ये योजना उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और कर्नाटक समेत देश के सात राज्यों में भी चालू है। लेकिन फर्क सिर्फ इतना है की जहाँ मध्य प्रदेश में योजना प्रशासनिक मिसमैनेजमेंट की बलि चढ़ती नज़र आ रही है, बाकी प्रदेशों में ये सफलतापूर्वक संचालित हो रही है।


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