MP में प्लेयर्स को जॉब गारंटी नहीं, 5 साल में एक सैकड़ा खिलाड़ियों ने प्रदेश छोड़ा, अकादमी के 24 प्लेयर्स ने किया किनारा

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BP Shrivastava
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MP में प्लेयर्स को जॉब गारंटी नहीं, 5 साल में एक सैकड़ा खिलाड़ियों ने प्रदेश छोड़ा, अकादमी के 24 प्लेयर्स ने किया किनारा


BHOPAL. मध्यप्रदेश में खेलों का बजट तो लगातार बढ़ रहा है। वर्तमान खेल विभाग का बजट करीक 1000 करोड़ रुपए है, लेकिन खेलों का बुरा हाल है। पिछले एक साल में प्रदर्शन 'अर्श से फर्श' पर आ गया है। खिलाड़ियों के लिए जॉब की कोई गारंटी नहीं है। प्लेयर्स मजबूरन दूसरे राज्यों या अन्य सरकारी विभागों की ओर रूख कर रहे हैं। इससे एमपी का राष्ट्रीय स्पर्धाओं में प्रदर्शन गिर रहा है। पिछले महीने ही वॉटर स्पोर्ट्स के कोर ग्रुप के 24 खिलाड़ियों ने एक साथ एमपी क साथ छोड़कर सर्विसेस और अन्य प्रदेशों का दामन धाम लिया है। जिसका असर हुआ कि चार महीने पहले गोवा नेशनल गेम्स में एमपी ने क्याकिंग खेल में 12 में से 9 गोल्ड मेडल जीते थे, वहीं पिछले हफ्ते भोपाल में हुई इसी खेल की नेशनल चैंपियनशिप में मेजबान एमपी केवल एक गोल्ड ही जीत सका।

एमपी में खिलाड़ियों की भर्ती की प्रोसेस काफी जटिल

पिछले 5 साल का हिसाब लगाएं तो करीब एक सैकड़ा खिलाड़ी पीक पर रहते पलायन कर गए हैं। दो साल पहले खेल विभाग ने खिलाड़ियों की पुलिस में सीधी भर्ती करने का दूसरा रास्ता निकाला है, लेकिन शर्तें इतनी जटिल कर दी हैं कि प्लेयर्स चाहकर भी फॉर्म नहीं भर पा रहे हैं। मध्यप्रदेश में हॉकी खिलाड़ी विवेक प्रसाद को टोक्यो ओलिंपिक में ब्रॉन्ज जीतने पर सीधे डीएसपी बनाया गया था, लेकिन ऐसे खिलाड़ियों की संख्या बेहद कम है।

इन खिलाड़ियों ने छोड़ा प्रदेश

हाल ही में क्याकिंग खेल के अभिषेक ठाकुर, अंकिता वर्मा, अभिषेक सांधव, रौनक, शिव बचन, दीपाली, शुभम वर्मा, नितिन वर्मा, नीरज वर्मा, कानन, कावेरी ढीमर, शिवानी वर्मा, देवेंद्र सेन, सोनू वर्मा, रिमसन मेरीबम, अर्जुन सिंह, हिमांशु टंडन, सुंदरम सूर्यवंशी, विशाल दांगी, संतोबी देवी, विनीता चानू और आस्था दांगी आदि ने सर्विसेस में नौकरी जॉइन की और एमपी छोड़ दिया।

मापदंड शिथिल होने चाहिए: पवन जैन

खेल एवं युवा कल्याण विभाग के पूर्व डायरेक्टर पवन जैन कहते हैं, कांस्टेबल पद पर करीब 35 खिलाड़ी भर्ती किए गए हैं। हां, एसआई के सभी 10 पद खाली रह गए। कोई आवेदन ही नहीं आया। शायद मापदंड काफी ऊंचे हो गए हैं। इनमें सुधार की गुंजाइश है। जैसे ही मापदंड थोड़े शिथिल होंगे, भर्तियां हो जाएंगी।

खेल नीति में यह प्रावधान

 मध्यप्रदेश की खेल नीति के तहत प्रदेश में हर साल बेहतर प्रदर्शन के लिए विक्रम अवॉर्ड जीतने वाले 10 खिलाड़ियों को नौकरी मिलती है, वो भी ​क्लर्क की।

हरियाणा- पंजाब और एमपी में जॉब की शर्तें अलग

हरियाणा-पंजाब में जहां ओलंपिक, एशियाड, कॉमनवेल्थ में भाग लेने पर ही इंस्पेक्टर और मेडल जीतने पर डीएसपी की जॉब मिल जाती है। वहीं एमपी में एसआई बनने के लिए ही ओलिंपिक, कॉमनवेल्थ, एशियन गेम्स में मेडल होना जरूरी है।

एमपी में पॉइंट सिस्टम, जिसके ज्यादा पॉइंट, वो जॉब का हकदार

खेल एवं युवा कल्याण विभाग के संचालक रवि कुमार गुप्ता का कहना है कि मप्र में हर साल पुलिस में 60 खिलाड़ियों की भर्ती होती है। दो साल पहले हुई थी। इस साल नहीं हो पाई है। हमारे यहां पॉइंट सिस्टम है। जिसके ज्यादा पॉइंट, वो जॉब का हकदार हो जाता है।

5 साल में इतने खिलाड़ी गए एमपी

  • कयाकिंग-केनोइंग 24
  • एथलेटिक्स 10
  • बॉक्सिंग 44
  • फेंसिंग 02
  • कुश्ती 08
  • हॉकी 08
  • अन्य 05

खेल मंत्री सारंग ने कहा- खिलाड़ियों के लिए कॉर्पोरेट घरानों से भी बात करेंगे

नए खेल मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि खेल विभाग खिलाड़ियों के लिए रोजगारोन्मुखी योजनाएं लेकर आएगा। कॉर्पोरेट घरानों से बात की जाएगी। पुलिस भर्ती की योजना चल रही है। जो सुधार की गुंजाइश होगी, वह की जाएगी।

शर्तें  जटिल...एसआई के लिए क्वालिफाई ही नहीं कर पाया कोई खिलाड़ी

खेल विभाग और पुलिस में एक एमओयू साइन हुआ था। इसमें हर साल 50 कांस्टेबल, 10 एसआई के पद खिलाड़ियों के जरिए भरे जाना तय हुआ था, लेकिन एसआई के लिए ओलिंपिक, एशियन या कॉमनवेल्थ गेम्स के मेडलिस्ट होने की शर्त रख दी है। नतीजतन पहली बार में एसआई के 10 के 10 पद खाली रह गए।



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