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KOTA. कोटा में छात्रों के आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इसकी गंभीरता को देखते हुए राजस्थान की गहलोत सरकार ने कोचिंग संस्थानों के लिए जरूरी दिशानिर्देश जारी किए हैं। आत्महत्या की समस्या से निपटने के लिए बनाई गई एक उच्च स्तरीय कमेटी ने कोचिंग संस्थानों में विद्यार्थियों में बढ़ते तनाव, मानसिक दवाब और आत्महत्याओं के पीछे की वजहों को लेकर एक रिपोर्ट भी जारी की है। इसमें छात्रों के साथ-साथ हर तीन महीने में पेरेंट्स की भी काउंसलिंग क्लासेस का सुझाव दिया गया है। ऐसे में अब कोचिंग आने वाले छात्रों के साथ उनके अभिभावकों की भी काउंसिलिंग होगी।
कोटा में छात्रों की आत्महत्या की खबरों के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इसी साल 18 अगस्त को कोचिंग संचालकों के साथ बातचीत कर समस्या का समाधान निकालने के लिए 24 अगस्त को एक हाई लेवल कमेटी बनाई थी। कमेटी के प्रमुख शासन सचिव, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा की अध्यक्षता में किया गया। कमेटी ने अलग-अलग विभागों, स्टेक होल्डर्स यथा कोचिंग स्टूडेंट्स, अभिभावकों, कोचिंग संचालकों, मनोसलाहकारों, हॉस्टल/पीजी संचालकों, विभिन्न जिलों के प्रशासनिक एवं कोचिंग संचालकों, एनएचएम टीम, शिक्षाविदों से विर्मश और सुझाव प्राप्त कर अध्ययन और विश्लेषण किया। इसके बाद एक रिपोर्ट तैयार कर राज्य सरकार को भेजी गई। कोटा में यह गाइडलाइन राज्य सरकार द्वारा उच्च शिक्षा सचिव भवानी सिंह देथा की अध्यक्षता में गठित कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर जारी की गई है।
आत्महत्याओं के पीछे ये आए कारण
- प्रतियोगी परीक्षा में अत्यधिक प्रतिस्पर्धा और सफलता की सीमित संभावना, सिलेबस और टेस्ट पेपर ज्यादा कठिन होने से कोचिंग संस्थानों के छात्रों में उत्पन्न मानसिक दबाव एवं निराशा बढ़ रही है।
- छात्रों की योग्यता, रुचि और क्षमता से अधिक उन पर पढ़ाई का बोझ डाला जाता है। बच्चों से अभिभावकों की बड़ी उम्मीदें बंध जाती हैं।
- छोटी उम्र में व्यवहार में बदलाव आना, परिवार से दूर रहना, समुचित काउंसलिंग एवं समुचित शिकायत निवारण तंत्र का अभाव होने से वे निर्णय नहीं ले पाते।
- असेसमेंट टेस्ट्स का ज्यादा होते हैं। उनका रिजल्ट सार्वजनिक किया जाता है। इस दौरान छात्रों पर टिप्पणी की जाती है। परिणाम के आधार पर कोचिंग संस्थानों द्वारा बैच सेग्रिगेशन किया जाता है। इससे मानसिक दबाव बढ़ता है।
- कोचिंग संस्थानों का बहुत बिजी शेड्यूल और बड़ा सिलेबस होता है।
- छुट्टियां कम होती हैं। सह-शैक्षणिक गतिविधियों का अभाव भी रहता है। इससे छात्र पढ़ाई के अलावा कुछ और नहीं कर पाते हैं। इससे तनाव बढ़ता जाता है।
कोचिंगों के लिए ये हैं नए निर्देश
- छात्रों को 9वीं क्लास से पहले एडमिशन लेने का प्रोत्साहन न करें
- अगर 9वीं क्लास से पहले कोई छात्र कोचिंग छोड़ना चाहे तो उसे रोके नहीं और बाकी बची फीस वापस करें।
- एडमिशन के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट और काउंसलिंग के माध्यम से अभिरुचि का आकलन करने के बाद ही दें।
- पेरेंट्स की भी काउंसलिंग की जाए।
- एडमिशन के बाद समय-समय पर पेरेंट्स को बच्चे में हुई प्रगति के बारे में पेरेंट्स को सूचित करें।
- कोचिंग संस्थान टेस्ट रिजल्ट सार्वजनिक न करें।
- रिजल्ट की गोपनियता रखते हुए अपने स्तर पर नियमित विश्लेषण करें।
- जो बच्चा कम नंबर ला रहा या एकेडमिक परफॉर्मेंस कम हो रही है तो उनकी काउंसलिंग करें।
- असेसमेंट टेस्ट के आधार पर बैचों का सेग्रिगेशन न करें।
- कोचिंग संस्थान अपने संचालकों, शिक्षकों समेत सभी स्टाफ की विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा गेटकीपर ट्रेनिंग जरूर करवाएं। स्टूडेंट्स बातचीत करें।
अब ये होगा
- मनोसहाकारों एवं काउंसलर्स की नियुक्ति
- अवकाश एवं सह सह-शैक्षणिक गतिविधियांक्स
- इजी-एग्जिट ऑप्शन एवं फीस रिफंज पॉलिसी
हेल्पलाइन नंबर
टेली-मानस एवं अन्य टोल फ्री हेल्पलाइन नंबरों का प्रचार-प्रसार किया जाए। टेली-मानस के टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर 1800894416, 14416 अनिवार्य रूप से डिस्पे करें।
हॉस्टल/पीजी संचालकों के लिए जरूरी दिशानिर्देश
क्षमता से अधिक बच्चों को न रखें। पीजी या हॉस्टल छोड़ने पर शेष अवधि का किराया एवं मैस चार्जेज मासिक आधार पर वापस किए जाएं। एंट्री-एग्जिट गेट पर हेल्पलाइन नंबर डिसप्ले किए जाएं। सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं। छात्राओं की निजतना का हनन न हो। हॉस्टल्स में सुझाव या शिकायत बॉक्स लगाए जाएं और जिला प्रशासन द्वारा स्थापित ई-कंपलेंट पोटर्ल की जानकारी जारी की जाए। तिदिन स्टूडेंट की बायोमेट्रिक और भौतिक उपस्थित लेनी होगी। छात्राओं के हॉस्टल में केवल महिला वार्डन की नियुक्ति करनी होगी।