वर्ष 2023 में होने वाले मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव परिणाम का आकलन आरंभ किए हुए साढ़े चार महीने व्यतीत हो चुके हैं। राजनैतिक परिस्थितियां तेजी से बदल कर कुछ-कुछ दिशा लेने लगी हैं। यद्यपि अभी तक अन्य पार्टियों की विशेष हलचल चुनावी दृष्टि से दिखाई नहीं दे रही है। ‘‘आप’’ पार्टी की स्थिति भी अभी तक अस्पष्ट है। ‘‘आप पार्टी’’ के सौरभ भारद्वाज का यह कथन-वह मध्य-प्रदेश में चुनाव नहीं लड़ेगी यदि कांग्रेस पंजाब और दिल्ली में चुनाव नहीं लड़ेगी तो हम मप्र और राजस्थान में चुनाव नहीं लड़ेंगे। यह फिलहाल एक संकेत मात्र ही है, अथवा शिगूफा इससे ज्यादा कुछ नहीं?
अभी हाल ही में ग्वालियर क्षेत्र से भाजपा के पूर्व संभागीय मीडिया प्रभारी सुबोध दुबे और किसान मोर्चा प्रदेश कार्यसमिति सदस्य सतेंद्र सिंह गुर्जर ने साथ ही खंडवा जिले की मांधाता विधानसभा क्षेत्र के वरिष्ठ नेता राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त नरेंद्र सिंह तोमर ने भाजपा पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दिया है। यद्यपि फिलहाल दल-बदल की प्रक्रिया कुछ धीमी पड़ गई है। प्रधानमंत्री के 6 दिवसीय विदेशी दौरे पर पूरे मीडिया व राजनैतिक दलों का फोकस (केन्द्र) होने के कारण प्रदेश की राजनैतिक हलचल में कोई खास बदलाव पिछले 15 दिनों में देखने को नहीं मिला है।
दो नावों पर सवार निशा बांगरे
नौकरी से इस्तीफा देने वाली डिप्टी कलेक्टर (उनका इस्तीफा अभी तक स्वीकार नहीं हुआ हैं) निशा बांगरे का बैतूल के आमला विधानसभा में अंतर्राष्ट्रीय सर्वधर्म सद्भाव सम्मेलन व गृह प्रवेश, शासन-प्रशासन की प्रारभिक अड़चन व रोक-टोक के कारण प्रदेश की मीडिया में व राजनैतिक क्षेत्रों में छाया रहा। बावजूद इसके कार्यक्रम काफी सफल रहा है। बैतूल जिले की राजनीति पर इसका प्रभाव पड़ना अवश्यंभावी है। राजनैतिक गलियों में निशा बांगरे के कांग्रेस टिकट पर आमला से लड़ने की चर्चा जोरों पर है। परन्तु मेरी नजर में वे दो नावों में एक साथ दौड़ रही हैं यद्यपि इसका फायदा जमीनी कार्यकर्ताओं के स्तर पर चुनाव लड़ने की स्थिति में तो जरूर मिल सकता है। परंतु किसी भी पार्टी की टिकट मिलने में उनकी यह कलाकारी कहीं आड़े न जाए। कार्यक्रम में जिस तरह की प्रारंभिक स्तर पर रूकावटें पैदा की गई हो सकता है, उस कारण उनका भाजपा से मोह भंग हो गया हो। तथापि कार्यक्रम के बाद होने वाली नोटिस की कानूनी प्रक्रिया भी भाजपा के प्रति उनके रूख को कुछ जरूर दिशा दे सकती है। कहा जाता है ‘‘दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंक कर कदम उठाता है’’। याद कीजिए! 2014 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने पूर्व सेवानिवृत्त नौकरशाह डॉ. भागीरथ प्रसाद को भिंड से टिकट दिया था, उन्होंने अंतिम क्षण में ठुकरा कर भाजपा की टिकट से चुनाव लड़कर विजयी हुए थे। निशा बांगरे ने महत्वपूर्ण गलती यह की कि उक्त कार्यक्रम के दो दिन पूर्व ही मुलताई में संघ कार्यालय के भूमि पूजन कार्यक्रम में उन्होंने भाग लिया था, जिसका समाचार मीडिया में आया था। जातिगत समीकरण भी निशा बांगरे की टिकट तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे। आमला के विधानसभा कांग्रेस के सशक्त दावेदार मनोज मालवे जो पिछला चुनाव लड़ चुके है, अपनी दावेदारी को सुरक्षित बनाये रखने के लिए उक्त घटना का संज्ञान कमलनाथ के पास तो जरूर ले ही जाएंगें?
पीएम ने बजा दी चुनावी बिगुल
मंगलवार को ही प्रधानमंत्री का भोपाल आगमन हुआ। इसे भाजपा का आगामी हो रहे विधानसभा चुनाव के लिए बिगुल बजाने की शुरुआत भी कह सकते हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे प्रियंका गांधी ने पिछले दिनों जबलपुर आकर चुनावी बिगुल की शंखनाद की थी। प्रधानमंत्री ने लगभग 10 लाख बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं ‘‘मेरा बूथ मजबूत बूथ’’ वीसी के माध्यम से संबोधित किया। उन्होंने पहली बार सार्वजनिक मंच से कॉमन सिविल कोड (यूसीसी) पर कार्यकर्ता को जनता के बीच जाने की सलाह तथा वंचित ‘‘पसमांदा’’ मुसलमानों को इस पर विचार करने का अनुरोध, साथ ही एक घर एक परिवार में दो कानून नहीं चलेगा का नया नारा, अल्पसंख्यक वोटों पर चुनावी दृष्टि से क्या प्रभाव डालेगा, इसके लिए थोड़ा इंतजार करना होगा।
अतः स्थिति वही पर फिलहाल टिकी हुई है। यद्यपि तीन दिन पूर्व एक सर्वे सोशल मीडिया पर आया है, जिसमें कांग्रेस को काफी बढ़त दिखाई गई है। अभी-अभी शाम को ‘‘एबीपी सी वोटर’’ की सर्वे रिपोर्ट में भी फिर कांग्रेस को आगे बताया गया हैं। तथापि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की दिन-प्रतिदिन नई-नई लुभावनी लोकहित की घोषणाएं जो उन्हें अभी भी ‘‘घोषणावीर’’ बनाई हुई है, कितना इन सर्वो को सामना (काउंटर) कर पाएगी, यह देखना भी कम दिलचस्प नहीं होगा।