मध्यप्रदेश में चुनाव के लिए ''चाणक्य अमित शाह'' ने की व्यूह रचना, कांग्रेस प्रदेश स्तर पर मुस्तैद नहीं, लेकिन हाईकमान सक्रिय

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Rajeev Khandelwal
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मध्यप्रदेश में चुनाव के लिए ''चाणक्य अमित शाह'' ने की व्यूह रचना, कांग्रेस प्रदेश स्तर पर मुस्तैद नहीं, लेकिन हाईकमान सक्रिय

BHOPAL. इस साल के अंत में होने वाले मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव परिणाम का आंकलन आरंभ किए हुए साढे़ 5 महीने बीत चुके हैं। पिछले कुछ समय से राजनीतिक क्षेत्रों, चर्चाओं व मीडिया में कांग्रेस को एक प्रारंभिक बढ़त दिख रही या दिखाई जा रही थी। अब ऐसा लगता है कि पिछले पखवाड़े में बीजेपी हाईकमान ने खासकर 'चाणक्य अमित शाह' ने जो व्यूह रचना रची है, उसके अनुरूप धरातल पर जिस तेजी से कार्य हो रहा है, उससे बीजेपी की स्थिति में काफी सुधार नजर रहा है। इसके उलट कांग्रेस के पास कई महत्वपूर्ण मुद्दे होने के बावजूद प्रदेश स्तर पर कांग्रेस उस मुस्तैदी के साथ खड़ी नहीं दिख रही है, जैसा कि बीजेपी जमीन पर खड़ी है अथवा कांग्रेस का हाईकमान मध्यप्रदेश में सक्रिय दिख रहा है।





बीजेपी की नई चौकड़ी मचा सकती है धमाचौकड़ी





प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का डेढ़ महीने में तीसरा दौरा हुआ है और देश के गृह मंत्री का फिर भोपाल दौरा हुआ है। अमित शाह ने शिवराज सिंह चौहान के चेहरे के एंटी इन्कंबेंसी फैक्टर से निपटने के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण नीति तय की है, उसके मुताबिक आगामी चुनाव में 'मुख्यमंत्री का चेहरा' कोई नहीं होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा जाएगा। संभव है कि शिवराज सिंह चौहान शायद विधानसभा का चुनाव ही न लड़ें। अर्थात गुजरात स्टाइल में मुख्यमंत्री से लेकर कुछ वरिष्ठ मंत्री स्वयं चुनाव लड़ने से मना कर दें या यह कहा जाए कि 'निर्देश' पर मना कर दें। अमित शाह ने नरेन्द्र सिंह तोमर को आगे रखकर और उमाश्री भारती, प्रहलाद पटेल व कैलाश विजयवर्गीय की 'चौकड़ी' को प्रभावी बना दिया तो निश्चित रूप से इस चौकड़ी की धमाचौकड़ी से विद्यमान परिस्थितियों में परिवर्तन की संभावनाएं जागृत हो जाएंगी। वैसे भी बीजेपी अभी तक दूसरे प्रदेशों में हुए चुनाव में नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे रखकर ही चुनाव लड़ती चली आ रही है। जहां सफलताएं और असफलताएं दोनों मिली हैं। अब मध्यप्रदेश में यह नीति कितनी कारगर सिद्ध होगी यह आने वाला समय ही बताएगा ?





प्रियंका गांधी की महाराज के गढ़ में हुंकार ?





राहुल गांधी के बाद प्रियंका गांधी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ ग्वालियर में बड़ी सभा कर कांग्रेस में प्राण फूंकने का प्रयास किया है। लेकिन आशानुसार संचार, सक्रियता कांग्रेसियों की जमीन पर बढ़ती नहीं दिख रही है। परिणाम स्वरूप बीजेपी न केवल उक्त आंकलन की प्रारंभिक बढ़त को समाप्त करते हुए दिखाई दे रही है, बल्कि चुनाव में यदि कांग्रेस की गति, नीति इसी तरह से चली, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा, बीजेपी सरकार बना ले।





आदिवासी के बाद दलित वोटों पर फोकस





बीजेपी ने आदिवासियों के वोट को एकजुट करने के लिए बिरसा मुंडा, टंट्या मामा, शंकर शाह, रानी दुर्गावती, रानी कमलापति के नामों पर भवन विश्वविद्यालय, चौराहे, रेलवे स्टेशन के नामों के साथ साथ 'पेसा एक्ट' के नियम को लागू किया है। अब एक कदम आगे बढ़ाते हुए दलित वोटों के लिए संत रविदास जयंती पर उनका स्मारक बनने का भी भूमिपूजन प्रधानमंत्री द्वारा कराया गया। संत रविदास के उद्देश्यों को लेकर प्रदेश के 5 अलग-अलग इलाकों से यात्रा निकाली जा रही है। अमित शाह ने भोपाल प्रवास के दौरान यह तय किया है कि प्रदेश में विभिन्न क्षेत्रों से 5 विकास यात्राएं निकाली जाएंगी, जिनका नेतृत्व 5 प्रमुख नेता करेंगे। इसके विपरीत सीधी का जो पेशाब कांड हुआ है अथवा उसके बाद हाल ही में छतरपुर मानव मल कांड घटित हुआ है, कांग्रेस पार्टी की धरातल पर उन मुद्दों को लेकर सक्रियता का नितांत अभाव दिखता है। पार्टी का अनुसूचित जाति एवं जनजाति प्रकोष्ठ धरातल पर नहीं, सिर्फ ट्वीट्स पर ही दिखते हैं। तथापि आदिवासी स्वाभिमान यात्रा 19 जुलाई से चल रही है, परन्तु उसकी कोई चर्चा या शोर सुनाई नहीं आ रहा है। इन सब मुद्दों पर सक्रिय न दिखने का दुष्परिणाम पार्टी को आगामी चुनाव में भुगतने पड़ सकते हैं।





वोटर को लुभाने के लिए रेवड़ी कल्चर की भेड़चाल





वैसे शिवराज सिंह चौहान की सरकार द्वारा सवा लाख करोड़ से अधिक कर्जा लेने का कारण खजाना खाली होने के बावजूद दोनों पार्टियों में से बीजेपी सरकार बनाए रखने के लिए एवं कांग्रेस सरकार बनाने के लिए घोषणाएं पर घोषणाएं किए जा रही है। प्रदेश सरकार पिछले 6 महीनों में 11 बार कर्ज ले चुकी है। अभी 10 हजार करोड़ कर्ज सरकार पुनः लेने जा रही है, जो शायद लाड़ली बहना योजना में खर्च किया जाएगा। वैसे शिवराज सिंह सरकार की पिछले 18 वर्षों की रेवड़ी देने वाली योजनाओं, पैदा होने से लेकर अंतिम संस्कार तक के नाम यदि गिनाए जाएं तो, एक किताब लिखी जा सकती है। क्योंकि यदि सभी घोषणाओं को अमली जामा पहनाकर धरातल पर उतारा जाए तो एक अनुमान के अनुसार 2 खरब 8 अरब रुपए खर्च होंगे। रेवड़ी कल्चर की यह उच्चतम स्थिति है।





अब बढ़त की स्थिति में बीजेपी





घोषणावीर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की देखा-देखी पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 'पूर्व' शब्द को हटाने के लिए 'कृषक न्याय योजना' के नाम से 5 घोषणाएं की हैं। पहली- 5 हॉर्स पावर का बिल माफ। दूसरी- बिजली का बकाया माफ। तीसरी- किसानों का कर्ज माफ। चौथी- आंदोलनों के मुकदमे माफ। पांचवीं- 12 घंटे बिजली का रास्ता साफ। इन घोषणाओं के संबंध में बीजेपी प्रवक्ता नरेन्द्र सलूजा का यह कथन है कि ये समस्त घोषणाएं शिवराज सिंह की सरकार ने पहले ही लगभग पूरी कर दी हैं। ऐसी स्थिति में 'हाथ में एक पक्षी, झाड़ी में 2 के बराबर हैं।' अतः स्पष्ट है, गुजरते समय के साथ कांटे की टक्कर होकर फिलहाल मुकाबला पुनः बराबरी में आकर बीजेपी बढ़त लेने की स्थिति की ओर अग्रसर हो रही है।



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