इंदौर में अल हिलाल क्रेडिट कोऑपरेटिव संस्था की 20 करोड़ की जमीन कौड़ियों के भाव बेचने की तैयारी, खरीदी की ताक में शहर के कई नामचीन

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BP Shrivastava
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इंदौर में अल हिलाल क्रेडिट कोऑपरेटिव संस्था की 20 करोड़ की जमीन कौड़ियों के भाव बेचने की तैयारी, खरीदी की ताक में शहर के कई नामचीन

संजय गुप्ता/ ज्ञानेंद्र पटेल, INDORE. इंदौर में सहकारी समितियों की जमीन के खेल पूरे प्रदेश में चर्चित हैं। अब एक नए खेल की तैयारी हो रही है और इस बार निशाना है महू तहसील में स्थित अल हिलाल क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी की जमीन पर। दो हेक्टेयर से अधिक यह जमीन 20 करोड़ से अधिक की कीमत की है और इसकी गुपचुप तरीके से दो करोड़ के करीब में नीलामी की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इस जमीन को खरीदी की ताक में शहर के कई नामचीन लोग पर्दे के पीछे लगे हैं, जो सहकारिता की जमीनों के बड़े खिलाड़ी माने जाते हैं। इस संस्था में आमजन के साथ सैनिकों के भी खून-पसीने की कमाई लगी हुई है।



 उधर, विभाग के ही एक सूत्र ने द सूत्र को बताया कि पूरा खेल दस करोड़ से ज्यादा की जमीन का है। विभाग ने पहले भी राउ के एक खरीदार से इसे लेकर खेल जमाया था, लेकिन बात नहीं जमी। जमीन की कीमत 20 करोड़ है, इसे तीन-पांच करोड़ में निकालकर दस करोड़ से ज्यादा का खेल करने की तैयारी है। उधर, इस मामले में विभाग के अधिकारियों ने चुप्पी साध ली है। सहकारिता उपायुक्त मदन गजभिए ने ये जरूर कहा कि नीलामी का प्रस्ताव भोपाल गया है, लेकिन अभी मंजूरी नहीं आई है। वहीं बाकी मुद्दों पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।





सोसायटी के पूरे दस्तावेज ही नहीं, फिर भी बिकेगी जमीन





सोसायटी के पूरे दस्तावेज ही नहीं, फिर कैसे बिकेगी जमीन? जमीन नीलामी की प्रक्रिया को कितना पारदर्शी और निष्पक्ष रखा जाएगा? इस पर नीलामी से पहले ही कई प्रश्न चिन्ह खड़े हो रहे हैं। मसलन सहकारिता विभाग खुद कह रहा है कि उसके पास अल हिलाल क्रेडिट सोसाइटी के संपूर्ण दस्तावेज नहीं है। जबकि संस्था वर्ष 2006 में ही आर्थिक अनियमितता के चलते संस्था परिसमापन में आ गई थी। सहकारिता विभाग संस्था के सदस्यों की पूंजी वापस लौटाने के नाम पर नीलामी की सिर्फ खाना पूर्ति कर रहे हैं जबकि परिसमापन अवधि में आने के बाद ही संस्था के समस्त दस्तावेज और संपत्ति पर परिसमापक के नियंत्रण में आ जाती है। बिना संपूर्ण दस्तावेजों के और संस्था की लेनदारी एवं देनदारी की सूची बनाएं बगैर नीलामी की प्रक्रिया का आधार ही नहीं बनता है। आखिर यह कैसे संभव है कि एक दशक से अधिक समय तक करोड़ों रुपए की जमीन संस्था के पास रहते हुए भी संस्था के परिसमापक ने संस्था के सदस्यों के अधिकार की एक रुपए तक की आय अर्जित नहीं की। जबकि महू के डोंगरगांव स्थित संस्था की भूमि पर पिछले 10-15 सालों से खेती व पशुपालन का काम चल रहा है।





 क्या है पूरा मामला... आखिर ऐसी नौबत क्यों आई!





अल हिलाल क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी लि. महू, मध्य प्रदेश सहकारी समिति अधिनियम 1960 के तहत एक पंजीकृत संस्था है। इस शहरी साख संस्था ने अपने सदस्यों से संस्था में निवेश करवाया, संस्था में आमजनता के साथ सेना के कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों ने भी जीवनभर की बचत पूंजी लगी हुई है। सहकारिता अधिनियम एवं नियम के अनुसार कार्य नहीं करने और आर्थिक गड़बड़ियों के कारण विभाग ने संस्था को वर्ष 2006 में परिसमापन में डाल दिया और परिसमापक की नियुक्ति कर दी गई। परिसमापक नियुक्ति होते ही संस्था के समस्त रिकॉर्ड और संस्था की संपत्तियां भी विभाग के नियंत्रण में आ गईं। संस्था के सदस्य अपना पैसा वापस आने का इंतजार कर रहे थे।





 संस्था ने 40 लाख में व्यापारी को जमीन बेचकर किया था घोटाला





इस दौरान और एक घोटाला तब सामने आया, जब अल हिलाल क्रेडिट सोसाइटी के परिसमापन में जाने के बाद भी संस्था के तत्कालीन अध्यक्ष अब्दुल खालिक ने संस्था की महू तहसील के डोंगरगांव की कृषि भूमि सर्वे क्रमांक 58/1, 58/2, 59, 60, 80, 76, 81/1 कुल 2.639 हेक्टर की जमीन राऊ के एक व्यापारी को 40 लाख रुपए में बेच दी। जिसका बाद में नामांतरण भी हो गया। व्यापारी भी इस बात को नहीं जानता था कि जिस भूमि को वह खरीद रहा है। उस भूमि को बेचने का अधिकार संस्था के अध्यक्ष को था ही नहीं। 40 लाख रुपए में बेची गई जमीन की वर्तमान बाजार भाव 14 से 15 करोड़ रुपए है। खबर लगते ही विभाग हरकत में आया और संस्था के तत्कालीन अध्यक्ष के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी और अन्य धाराओं में एफआईआर दर्ज कराई गई और रजिस्ट्री शून्य कराने के लिए कोर्ट में केस दायर किया। विभाग के पक्ष में निर्णय आने के बाद से ही करोड़ों की इस जमीन पर कॉलोनाइजर और भूमाफियाओं की नजरें गड़ गई।





पूर्व अध्यक्ष ने कहा विभाग के लोग खेल कर रहे





सोसाइटी के अध्यक्ष रहे अब्दुल खालिक ने द सूत्र से बातचीत के दौरान बताया कि वह नहीं चाहते कि संस्था की जमीन नीलाम हो। वह कहते हैं मैं सदस्यों का पैसा वापस लौटाना चाहता हूं और चाहता हूं कि संस्था परिसमापन से बाहर आए। जमीन नीलामी के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि पूरा खेल विभाग के लोग कर रहे हैं।





विभाग के सूत्रों ने यह बताया





सहकारिता विभाग के सूत्रों ने द सूत्र को बताया कि पूरा खेल पहले से ही सेट है। आज जमीन की कीमत 20 करोड़ के आसपास है। तीन करोड़ में जमीन निकालकर 10 करोड़ हजम करने की तैयारी है। जमीन की कीमत को देखकर यह खेल 2019 से ही शुरू हो गया था जब 2008 में जमीन के खरीदार  राऊ के एक व्यापारी से विभाग के जादूगरों ने 80 लाख में जमीन दिलाने का ठेका लिया था। इस ठेके में तय हुआ था कि विभाग विभागीय कार्रवाई में मदद करके जमीन दिलवा देगा मगर सौदा जम नहीं पाया और मामला दब गया था। इस जमीन को लेकर सहकारिता विभाग में बरसों से जमे अधिकारियों की नजरें पहले से ही गड़ी हुई थीं। यह वे अधिकारी हैं जिन्हें कई बार ट्रांसफर होने के बाद भी इंदौर छोड़ने का मन नहीं किया और यहीं जमे रहे।





यह सारे सवाल इशारा कर रहे हैं कि कुछ तो खिचड़ी पक रही है







  • वर्ष 2006 से आज दिनांक तक संस्था के कई परिसमापक बदले गए, लेकिन 15 सालों के बाद भी आज दिनांक तक परिसमापक ने संस्था के सदस्यों के लिए संस्था की संपत्ति से ₹1 तक की आय अर्जित नहीं की। जिसका लाभ संस्था से अपनी पूंजी वापस आने का इंतजार कर रहे सदस्यों को मिलता। इसका खुलासा आरटीआई से मिली जानकारी से हुआ।



  • जानकारी यह भी बताती है कि संस्था का संपूर्ण रिकॉर्ड आज दिनांक तक परिसमापक को प्राप्त नहीं हुआ है। जबकि नियम अनुसार परिसमापन आदेश प्राप्त होते ही परिसमापक सबसे पहले संस्था का रिकॉर्ड प्राप्त करता है। 2015 में संस्था का कामकाज देख चुके आशीष सेठिया वर्तमान में भी संस्था के परिसमापक है। सबसे बड़ा सवाल यहीं खड़ा होता है कि जब विभाग के पास संस्था का संपूर्ण रिकॉर्ड नहीं है तो किस आधार पर विभाग, संस्था पर एक करोड़ रुपए की देनदारी निकाल रहा है। 


  • यदि वर्तमान में भी संस्था से संपूर्ण दस्तावेज प्राप्त नहीं हुए तो परिसमापक का यह कर्तव्य था कि वह संस्था के अध्यक्ष से रिकॉर्ड प्राप्त करने  की मांग करता। संपूर्ण रिकॉर्ड प्राप्त नहीं होने की स्थिति में आखिर संस्था की लेनदारी-देनदार की सूची किस आधार पर तय की गई, संस्था के सदस्यों और उनके द्वारा लगाया गई पूंजी की स्पष्ट जानकारी विभाग ने किस आधार पर निकाली है। यह किसी को नहीं पता।


  • यह इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि जमीन की नीलामी का फैसला तो सदस्यों को उनकी पूंजी वापस दिलाने के लिए ही किया जा रहा है। जब विभाग की जानकारी में संस्था की बेशकीमती जमीन बिकने की बात वर्ष 2008 में ही आ गई थी तो फिर जमीन बिक्री से अध्यक्ष को मिले 40 लाख रुपए की वसूली उपायुक्त सहकारिता द्वारा क्यों नहीं की गई, यदि वसूली होती तो, पहले ही संस्था के सदस्यों को उनका पैसा दिलाया जा सकता था। 


  • आखिर क्यों परिसमापक ने इतने वर्षों से  संस्था का ऑडिट नहीं कराया, विभाग की ऐसी क्या मजबूरी है कि रिपीट बैलेंस शीट से काम चलाया जा रहा है। एक नियम यह है कि यदि परिसमापक को यह मालूम हो की सहकारिता की कोई संपत्ति किसी व्यक्ति के कब्जे में है या नियंत्रण में है तो वह न्यायालय को आवेदन देकर ऐसी संपत्तियों की जांच करवा सकेगा, क्या विभाग के अधिकारी ने संस्था की अन्य संपत्तियों की जानकारी हासिल करने की कोशिश की।अन्य संपत्ति प्रकाश में आने पर जिम्मेदारी किसकी होगी, यह कौन तय करेगा की संस्था की अन्य संपत्तियां कहीं ठिकाने तो नहीं लग गई। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार सदस्यों के हित की आड़ में लंबे चौड़े खेल की तैयारी चल रही है।






  • 450 सदस्यों को एक करोड़ की राशि चुकाने के नाम पर हो रहा है खेल





    वैसे तो सहकारिता विभाग ने यह स्पष्ट कर दिया है कि संस्था का संपूर्ण रिकॉर्ड उसे प्राप्त नहीं हुआ है। फिर भी विभाग के अधिकारी यह ढूंढने में कामयाब हो गए कि 450 सदस्यों को लगभग एक करोड़ रुपए से अधिक की राशि का भुगतान करना है। 15-16 वर्षों से संस्था की करोड़ों की भूमि पर खेती का काम किया जा रहा है। जमीन का व्यवसायिक उपयोग करने की अनुमति किसे और किस आधार पर दी गई और भूमि परिसमापक के नियंत्रण में रहते भूमि से अर्जित आय की वसूली क्यों नहीं की गई?



      द सूत्र की पड़ताल में संस्था की भूमि पर पशुपालन और मुर्गी फार्म भी चलता देखा गया, मगर संस्था के सदस्यों के लिए विभाग के अधिकारी संस्था की भूमि से एक रुपए तक की आय अर्जित नहीं कर सके। बहरहाल, अब जमीन की नीलामी से ही सदस्यों का पैसा वसूला जाएगा। इसीलिए यह नीलामी में लाई जा रही है। 20 करोड़ की भूमि से बस एक करोड़ ही निकालने की तो बात है। नीलामी की अनुमति उपायुक्त द्वारा आयुक्त से मांगने के लिए पत्र भेजा जा चुका है। इंतजार है तो बस बड़े अधिकारी की अनुमति का।



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