RAIPUR. कोयला घोटाला और अवैध वसूली मामले में ईडी की कार्रवाई पर लगे विधिक सवालों को लेकर इस मामले में गिरफ़्तार आरोपियों के लिए नई मुसीबत खड़ी हो गई है। आयकर विभाग ने भोपाल कोर्ट में परिवाद पेश कर दिया है। आयकर विभाग का यह परिवाद नई धाराओं के साथ पेश है और इसमें उन सभी के नाम बतौर अभियुक्तों दर्ज हैं जिनमें से अधिकांश इस समय ईडी की कार्रवाई की वजह से रायपुर सेंट्रल जेल में हैं।
आउट ऑफ बॉक्स लेकिन अपेक्षित था
ईडी की कार्रवाई पर बैंगलोर पुलिस द्वारा पेश चार्जशीट में शैड्यूल अफेंस हटाए जाने के बाद बचाव पक्ष बेहद उत्साहित था कि, अब ना केवल ज़मानत बल्कि प्रकरण से सीधी रिहाई तय है,और यह रिहाई केवल अदालती कार्रवाई पूरी होने की औपचारिकता है। लेकिन इसके पहले कि, इस ओर कार्रवाई पूरी होती आयकर विभाग की ओर से भोपाल कोर्ट में परिवाद पेश कर दिया गया है। यह परिवाद नई धाराओं के साथ अदालत में पेश कर दिया गया है। इस परिवाद में केवल सूर्यकांत का ही नाम नहीं है, बल्कि कई अन्य आरोपियों के नाम उसमें शामिल हैं।बैंगलोर पुलिस की चार्जशीट के बाद जैसे ही यह माना गया कि, अब ईडी की कार्रवाई पर विधिक अधिकारिता शून्य हो गई है और रिहाई अब तय हो जाएगी, उसी समय से यह खबरें थी कि, मसला इतना आसान नहीं है। लेकिन प्रतिक्रिया इतनी जल्दी आएगी,और “आउट ऑफ बॉक्स” अंदाज में आएगी शायद ही किसी ने सोचा होगा। हालाँकि द सूत्र ने सुधी पाठकों को संकेत दिए थे कि, इस मसले पर अभी “कुछ” होना बचा है।
क्या है परिवाद में
परिवाद आयकर विभाग ने दायर किया है। परिवाद का आधार वह डायरी है जिसे सूर्यकांत तिवारी से आयकर विभाग ने हासिल किया था। परिवाद में धारा 420,120 बी,200, और 186 समेत अन्य धाराओं के प्रभावशील होने की बात है। इस परिवाद में सौम्या चौरसिया, सूर्यकांत तिवारी,सुनील अग्रवाल समेत क़रीब करीब उन सभी के नाम हैं जो कि आज केंद्रीय जेल रायपुर में इस मामले में गिरफ़्तार हैं।
बैंगलोर से कितना अलग है मामला
बैंगलोर से यह मामला केवल इस मायने में अलग है कि, वहाँ एफ़आइआर सूर्यकांत तिवारी पर दर्ज थी, दो शेड्यूल अफेंस उस एफ़आइआर में थे, जिसे आधार बना कर ईडी ने जाँच शुरु की और कोयला घोटाला और अवैध वसूली मामले में कार्रवाई करते हुए गिरफ़्तारी की।ईडी ने इस मामले में बैंगलोर की एफ़आइआर का उपयोग केवल गेटवे पास की तरह किया। भोपाल में दायर परिवाद में आयकर विभाग ने जो परिवाद पेश किया है, उसमें उसी डायरी का उल्लेख है, जिस डायरी में दर्ज एंट्री और उसके अनुरूप ट्रांजेक्शन मिले हैं। उसी डायरी में मौजूद नामों का उल्लेख आयकर विभाग के परिवाद में है।
क्या होगा इस परिवाद से
ईडी के सूत्र यह बता रहे हैं कि, इस परिवाद से जो कि भोपाल अदालत में दायर है, ईडी के उस परिवाद को विधिक अधिकारिता हासिल हो जाएगी जो कि रायपुर की विशेष अदालत में पंजीबद्ध हो चुका है। विधि विशेषज्ञों का मानना है कि, इस परिवाद के दायर होने से रायपुर में दर्ज हो चुके परिवाद को कहीं और स्थानांतरित करने की जरुरत नहीं है। धाराओं के परिवर्तन से मुश्किलें जरुर और बढ़ गई है।
विजय मदनलाल केस का फिर हवाला
जब भी ईडी प्रकरणों की बात होती है तो, न्यायालय में जिस न्याय दृष्टांत का पुरज़ोर उल्लेख होता है वह विजय मदनलाल चौधरी केस है। यह विजय मदनलाल चौधरी केस में ही उल्लेखित है कि, यदि किसी मामले में ईडी की कार्रवाई का आधार बनी एफ़आइआर या कि परिवाद रद्द या कि ख़ारिज होता है तो ईडी की कार्रवाई पर विधिक अधिकारिता नहीं रहेगी। लेकिन इसी विजय मदनलाल चौधरी केस के पैरा 33 के अनुसार यदि कोई परिवाद विचाराधीन है, और उसमें वे धाराएँ हैं जिससे कि ईडी कार्रवाई कर सकती है तो ईडी कार्रवाई कर सकेगी। पैरा 33 का यह हवाला ही ईडी को शराब घोटाला में कार्रवाई का अधिकार दिया है, और इसी पैरा 33 के आधार पर ईडी कोयला घोटाला मामले में विधिक अधिकारिता हासिल कर गई है।
चुनौती कितनी गंभीर, रायपुर कोर्ट के मामले को इस परिवाद से कैसे जोड़ेंगे
बचाव पक्ष के लिए भोपाल में दायर परिवाद बिलाशक चुनौती है, बचाव पक्ष इस परिवाद और रायपुर कोर्ट में पंजीबद्ध परिवाद को संबद्ध किए जाने जैसी किसी कार्रवाई पर सवाल करेगा। इस पर अभी पूरी तरह चुप्पी है कि, भोपाल में दायर परिवाद को रायपुर में पंजीबद्ध परिवाद से ईडी कैसे संबद्ध करेगी, लेकिन ऐसे संकेत हैं कि, इसे लेकर ईडी की विधिक तैयारी है, और यह भी उतना ही सही है कि, इस पूरे मसले पर बचाव पक्ष क़तई शांत नहीं रहेगा और यथाशक्ति विधिक अधिकारिता और न्याय दृष्टांत का हवाला देते हुए इसका विरोध करेगा। मगर अंततः अदालत में क्या होगा इसका निर्णय तो अदालत में ही होना है। फ़िलहाल यह जरुर है कि, ईडी की कोयला घोटाला मामले में की गई कार्रवाई को अगर भोपाल में दायर परिवाद से मज़बूती मिली है। लेकिन यह देखना अभी बाक़ी है कि, बचाव पक्ष इस पूरे मसले पर अदालत के भीतर किस तैयारी से आता है और यह विधिक चुनौती कितनी मज़बूत या कमजोर साबित होती है।