Raipur। छत्तीसगढ़ के ताड़मेटला नक्सली हमले पर द केरला स्टोरी के निर्माता निर्देशक फ़िल्म रिलीज़ करने जा रहे हैं। निर्देशक सुदीप्तो सेन ने इसका पोस्टर ट्विटर पर शेयर किया है। हालाँकि इस पोस्टर में ही तथ्यात्मक त्रुटियाँ हैं। मगर जिन शब्दों के साथ यह पोस्टर जारी हुआ है उसने ध्यान खींच लिया है।
क्या लिखा है पोस्टर और ट्विट में
द केरला स्टोरी के निर्देशक सुदीप्तो सेन ने पोस्टर पर लिखा है कि छिपा हुआ सच जो देश को हिलाकर रख देगा। इस पोस्टर पर फ़िल्म की रिलीज़ डेट 5 अप्रैल 2024 दर्ज की गई है। इस पोस्टर के साथ जो जानकारी ट्विट पर दी गई है उसमें लिखा गया है कि यह दंतेवाड़ा ज़िले के चिंतलनेर गाँव में आतंकवादियो के सबसे खूनी हमले में 76 सीआरपीएफ जवान और 8 गरीब ग्रामीणों की मौत हो गई थी। ठीक 14 साल बाद काव्यात्मक न्याय दिया जाएगा।
ट्विट में तथ्यात्मक गलती
सुदीप्तो सेन के ट्विट में तथ्यात्मक ग़लतियों की भरमार है। यह समझना थोड़ा मुश्किल है कि इसे जानबूझकर किया गया या कि यह हो गया है। जिस घटना का ज़िक्र किया गया है वह चिंतलनार में नहीं ताड़मेटला में हुई थी। यह अब सुकमा ज़िले में है। एक शब्द इसमें आतंकवादी है, इस पर भी एक वर्ग ऐसा है जो आपत्ति कर सकता है। नक्सलियों और आतंकियो को अलग अलग मानने वालों की बड़ी संख्या है और इनमें पुलिस प्रशासन और सामान्य नागरिक शामिल हैं। यह भी सार्वजनिक है कि, एक वर्ग ऐसा भी है जो नक्सलियों और आतंकियो को एक मानता है।
क्या था ताड़मेटला कांड
ताड़मेटला कांड 6 अप्रैल 2010 को हुआ था। ताड़नेवाला में नक्सलियों ने सीआरपीएफ के 76 जवानों की हत्या की थी।शुरुआत में याने सुबह खबर मुठभेड़ की थी लेकिन जैसे जैसे सूरज चढ़ता गया, मामला देश के सबसे बड़े नक्सल हमले के रुप में दर्ज हो गया। घटना को लेकर जानकारी यह है कि, पाँच अप्रैल को चिंतलनार कैंप से सीआरपीएफ के 150 जवान सर्चिंग पर निकले थे। 6 अप्रैल को सुबह जवान वापस लौट रहे थे, तब नक्सलियों ने एंबुश में उन्हें घेर लिया। माओवादियो की इस हमले की अगुवाई हिड़मा ने की थी। माना जाता है कि यह नक्सलियों की मिलिट्री बटालियन नंबर वन थी।यह गर्मी का मौसम था और माओवादी इस दौरान टीसीओसी कैंपेन चलाते हैं। टीसीओसी के मायने होते हैं टेक्टिकल काउंटर अफेंसिव सिस्टम। नक्सलियों ने जंगल के भीतर जवानों के लौटने के मार्ग पर लैंड माईंस बिछा दी थी। पुलिया को भी उड़ा दिया था। जिस जगह जवान घिरे थे वो रणनीतिक रुप से हमलावर नक्सलियों के लिए मुफ़ीद जगह थी। माओवादी उपर पहाड़ियों पर थे और जवान नीचे फँस गए थे।
इस मामले में कोर्ट में गवाह ही नहीं मिला
इस मामले में पुलिस ने बाद में कई लोगों को गिरफ़्तार किया था। लेकिन पुलिस अपनी ही थ्योरी साबित नहीं कर पाई और घटना में आरोपी बताए गए सभी लोग छूट गए। बताया जाता है कि, पुलिस ने जिन्हे माओवादी बताकर पकड़ा था उनमें अधिकांश दरअसल ग्रामीण थे।
क्या बदला इस घटना के बाद
सीआरपीएफ ने इस घटना के बाद अपनी रणनीति में व्यापक परिवर्तन किया। माओवादी ईलाके का थंब रुल है जिस रास्ते से सुरक्षा बल जाएँ उस राह से क़तई ना लौटें। लेकिन सीआरपीएफ से यह चूक हुई थी। देश को हिला देने वाले इस हमले में वीरगति प्राप्त 76 जवानों की शहादत के बाद इस नियम का सख़्ती से पालन सुनिश्चित किया गया, इसके अलावा भी कई और रणनीतिक परिवर्तन किए गए। ऐसा माना जाता है कि, जवान जिस राह से गए, उसी राह से वापस कैंप की ओर लौटे।माओवादियो को हमले का पूरा मौक़ा मिला और जवानों को उन्होंने घेर लिया। जवानों ने पूरी बहादुरी से मुक़ाबला किया। लेकिन वे घिर चुके थे। नक्सलियों ने जवानों के हथियार भी लूट लिए थे, जिसका वीडियो बाद में माओवादियों ने जारी किया था।