Raipur. राजधानी के इंदिरा प्रियदर्शिनी सहकारी बैंक घोटाला मामले में रायपुर न्यायालय में सत्रह वर्ष बाद इस मामले में फिर से जाँच किए जाने का आवेदन भूपेश सरकार की ओर से दिया गया है। रायपुर की अदालत ने इस आवेदन को स्वीकार किया है। लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि आखिर किस आधार पर इस मसले की फिर से नई जाँच होगी।
क्या है प्रियदर्शनी घोटाला
इंदिरा प्रियदर्शिनी एक सहकारी बैंक था। इस बैंक में फ़र्ज़ी एफडीआर के माध्यम से ऋण बाँटा गया था। आरोप है कि, फ़र्ज़ी एफडीआर और ऋण में तत्कालीन मैनेजर उमेश सिन्हा की ही प्रमुख भुमिका थी। आरोप यह भी लगा कि, फ़र्ज़ी एफडीआर को फ़र्ज़ी कंपनियों के नाम पर जारी किया गया और उन्हीं को एफडीआर के आधार पर लोन दे दिया गया। जिन्हे ऋण दिया गया उन्होंने राशि वापस नहीं की। नतीजतन एक दिन बैंक की नक़दी ही समाप्त हो गई। फ़र्ज़ी एफडीआर का आशय यह है कि, बैंक में खाते में रक़म जमा ही नहीं थी लेकिन एफडीआर जारी कर दिया गया, और उसी आधार पर ऋण दिया गया, जिससे बैंक की मूल राशि निकलती चली गई, जो लौटी ही नहीं। इस मामले में ऑडिटर भी संदेह के घेरे में आए, क्योंकि यह गड़बड़ी लंबे अरसे से जारी थी और ऑडिटरों के ऑडिट में बैलेंसशीट हमेशा सही बताई गई। इस मामले में बैंक डिफ़ॉल्ट हुआ। मामले की रिपोर्ट कोतवाली रायपुर में दर्ज हुई। मामला कोतवाली में 2007 में दर्ज हुआ। कोतवाली में यह प्रकरण 7/2007 अपराध क्रमांक के तहत दर्ज हुआ था। पुलिस ने इसमें चार्जशीट पेश कर दी जिसमें संचालक मंडल बैंक मैनेजर समेत कई लोग अभियुक्त बने।
इस मामले में सीडी का खेल
मामले में क़रीब सत्रह करोड़ का घोटाला होने की बात कही जाती रही है। यह मसला लंबे अरसे तक एक बैंक घोटाले के रुप में ही जाना पहचाना गया। लेकिन इसमें राजनीति शामिल हुई जबकि, मुख्य आरोपी के रुप में मैनेजर उमेश सिन्हा की नार्को परीक्षण की सीडी के अंश 2012-2013 में वायरल हुए। ग़ौरतलब है कि, नार्को सीडी के अंश तब मार्केट में वायरल हो गए जबकि यह कोर्ट में पेश नहीं हुए थे। 2012-13 में भूपेश बघेल ने इसे मीडिया को तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में जारी कर दिया था। कांग्रेस नेता कन्हैया अग्रवाल बताते हैं कि इसके जारी होने के करीब एक महीने बाद उन्होंने यह सीडी आरटीआई से हासिल की थी। इधर इस सीडी को लेकर रायपुर कोर्ट में कोई ऐसी विशेष हलचल कभी हुई ही नहीं कि, इस सीडी को लेकर कोई गंभीर क़ानूनी मसला खड़ा हुआ हो। चर्चाएँ हैं कि कथित रुप से इस सीडी में आरोपी बैंक मैनेजर उमेश सिन्हा तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह, तत्कालीन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल समेत कई दिग्गजों के नाम लेते और उन्हे रक़म दिए जाने की बात कहता है, हालाँकि इस दावे का कभी कोई प्रसंग पुलिस की केस डायरी में नहीं मिलता। लेकिन तब डॉ रमन सिंह समेत बीजेपी के दिग्गजों के नाम आने से कांग्रेस को हमलावर होने का मौक़ा मिल गया। लेकिन यह हमला भी तब कोई बहुत असर नहीं कर पाया था।
अभी क्या हुआ है
हालिया दिनों इस प्रकरण में भूपेश बघेल सरकार ने विशेष लोक अभियोजक संदीप दुबे की नियुक्ति की। उनके द्वारा आवेदन दिया गया कि, इस प्रकरण में कुछ नए तथ्य हैं जिनकी फिर से जाँच जरुरी है। रायपुर न्यायिक मजिस्ट्रेट ने इसकी अनुमति दे दी है।
सोलह साल बाद अब हासिल क्या
सोलह साल बाद इस मामले में नए स्तर की जाँच से क्या हासिल होना है, यह यक्ष प्रश्न है। यदि केवल सीडी ही आधार बनती है तो उस सीडी की विधिक अधिकारिता कितनी टिकेगी यह भी सवाल है,जिनके जवाब आगे मिलेंगे।