मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान में हर 5 साल में सत्ता परिवर्तन की परम्परा रही है, लेकिन यहां परम्परागत राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बीजेपी और कांग्रेस के लिए विधानसभा की 200 सीटों में से कुछ सीटें गले की फांस बनी हुई हैं। ये ऐसी सीटें हैं, जिन पर पिछले 6 चुनाव यानी 3 विधानसभा और 3 लोकसभा चुनावों में इन दलों का प्रदर्शन बहुत खराब रहा है और इन सीटों पर दोनों ही दल जीत का नुस्खा ढूंढ रहे हैं। देखा जाए तो इस बार पार्टियों का सबसे ज्यादा फोकस ही इन सीटों पर नजर आ रहा है और चुनाव से काफी पहले इनके प्रत्याशी घोषित करने से लेकर दमदार प्रत्याशियों के चुनाव सहित कई तरह की रणनीतियों पर चर्चा की जा रही है।
कांग्रेस के लिए ये 27 सीटें हैं चिंता का कारण
राजस्थान में कांग्रेस सत्ता में है, लेकिन पिछले चुनावों में जब भी हारी तो करारी हार का सामना करना पड़ा। वहीं पिछले 2 लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 तो ऐसे निकले जिनमें कांग्रेस 25 में से एक भी सीट नहीं जीत पाई। ऐसे में सत्तारूढ़ कांग्रेस की खराब परफॉर्मेंस वाली सीटों की संख्या ना सिर्फ ज्यादा है, बल्कि कई सीटें ऐसी हैं जिन पर पार्टी पिछले 6 चुनाव (3 विधानसभा और 3 लोकसभा) से जीत का इंतजार कर रही है।
9 ऐसी सीटें जहां कांग्रेस को 6 चुनाव से जीत का इंतजार
- रतनगढ़, विद्याधर नगर, मालवीय नगर, अजमेर उत्तर, ब्यावर, रेवदर, भीलवाड़ा, झालरापाटन और खानपुर।
17 ऐसी सीटें जहां 6 में से 5 चुनाव हारी
वहीं 17 सीटें ऐसी हैं जहां पार्टी पिछले 6 में से 5 चुनाव हारी है। दरअसल, 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा था, इसलिए इस चुनाव में कुछ सीटों पर बढ़त हासिल करने में कामयाब रही थी। बीकानेर पश्चिम, फुलेरा, अलवर, अजमेर दक्षिण, सोजत, पाली, बाली, सूरसागर, सिवाना, भीनमाल , उदयपुर, राजसमंद, आसींद, बूंदी, कोटा दक्षिण, लाड़पुरा, रामगंज मंडी। इनके अलावा नागौर ऐसी सीट है, जहां पार्टी विधानसभा तो लगातार 3 बार से हार रही है, लेकिन 2014 और 2009 के लोकसभा चुनाव में बढ़त हासिल कर ली थी।
इन रणनीतियों पर काम कर रही है पार्टी
इन सीटों को जीतने के लिए पार्टी इस बार इन पर चुनाव से काफी पहले प्रत्याशी घोषित करने की तैयारी में है। इसके अलावा इन सीटों पर चुनाव प्रबंधन के लिए वरिष्ठ नेताओं की तैनाती और प्रत्याशियों के रूप में दमदार चेहरे उतारने की बात भी कही जा रही है।
बीजेपी
बीजेपी चुनाव प्रबंधन में मास्टर मानी जाती है। पार्टी ने राजस्थान की 200 सीटों को 4 श्रेणियों में बांटा हुआ है। इनमें से 19 सीटें सबसे कमजोर यानी D श्रेणी में मानी गई है। ये वो सीटें हैं, जिन पर पार्टी पिछले 6 यानी 3 विधानसभा और 3 लोकसभा चुनाव में बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई है। पार्टी के लिए थोड़ी राहत वाली बात ये है कि इन सीटों पर पार्टी विधानसभा चुनाव भले ही हार रही हो, लेकिन पिछले 2 लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में पार्टी ने बढ़त हासिल की है। ऐसे में कांग्रेस के मुकाबले स्थिति कुछ ठीक है।
4 ऐसी सीटें जहां सभी 6 चुनाव हारे
- राजगढ़-लक्ष्मणगढ़, सिकराय, सपोटरा, लालसोट
9 ऐसी सीटें जहां 6 में से 4 बार मिली हार
ये वो सीटें हैं जहां पार्टी पिछले तीनों विधानसभा चुनाव हारी है, हालांकि लोकसभा चुनाव में बढ़त हासिल करने में कामयाब रही है। नवलगढ़, झुंझुनू, फतेहपुर, कोटपूतली, बाड़ी, बस्सी, सरदारपुरा, बाड़मेर, वल्लभ नगर।
2 ऐसी सीटें जहां विधानसभा हारी, लोकसभा जीती
- खेतड़ी, सांचैर।
पार्टी की रणनीति
कांग्रेस की तरह बीजेपी भी इन सीटों पर पूरा फोकस किए हुए है। इन सीटों के प्रत्याशी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की तरह जल्द घोषित किए जा सकते हैं, वहीं पार्टी इन में से कुछ सीटों पर सांसदों को भी चुनाव लड़ाने पर विचार कर रही है।
किसी एक पार्टी की लगातार जीत के कारण
इन सीटों पर किसी एक पार्टी की लगातार जीत के अलग-अलग कारण हैं। जैसे जिन सीटों पर कांग्रेस लगातार जीत रही है, वे चारों सीटें पूर्वी राजस्थान की हैं, जहां पार्टी हमेशा से कमजोर रही है। इसके अलावा वे सीटें जहां 6 में से 5 या 4 बार हार मिली है। वे शेखावटी क्षेत्र की सीटें हैं, जहां जाट या मुस्लिम मतदाता बाहुल्य हैं और ये दोनों ही बीजेपी के वोट बैंक नहीं रहे हैं। वहीं कांग्रेस की बात करें तो जिन 9 सीटों पर पार्टी लगातार 6 बार से हार रही है, वे ज्यादातर शहरी सीटें हैं, जहां कांग्रेस बीजेपी के मुकाबले कमजोर ही रहती है। इसके अलावा 5 बार हार वाली सीटों में से ज्यादातर उदयपुर और कोटा संभाग की हैं, जो बीजेपी के गढ़ रहे हैं।