JAIPUR. राजस्थान में चुनाव सिर पर हैं और चुनाव से तुरंत पहले राजस्थान के बड़े कर्मचारी संगठन विभिन्न मांगों को लेकर सड़कों पर उतरे नजर आ रहे हैं। राज्य कर्मचारियों के महासंघ ने सोमवार से आंदोलन की चेतावनी दे रखी है, वहीं नर्सेज ने दो दिन पहले ही दिन भर का कार्य बहिष्कार कर स्वास्थ्य सेवाओं को प्रभावित कर दिया था और अब पांच सितंबर का अल्टीमेटम दे रखा है। विद्युत कर्मचारियों में से जूनियर इंजीनियर तो काम पर लौट आए हैं, लेकिन तकनीकी कर्मचारी आंदोलनरत हैं। वही रोडवेज के कर्मचारियों ने भी पांच सितंबर को 24 घंटे की प्रदेशव्यापी हड़ताल का अल्टीमेटम दे रखा है।
जयपुर में हर रोज हो रहे धरना-प्रदर्शन
राजस्थान में सात लाख से ज्यादा सरकारी कर्मचारी हैं और कर्मचारियों की मांगें लगातार चलती रहती हैं। अब चुनाव सिर पर हैं इसलिए सभी कर्मचारी संगठन इस जुगत में हैं कि कैसे भी अपनी लंबित मांगों को पूरा करने के लिए सरकार पर दबाव बनाएं। इसीलिए प्रदेश भर के कर्मचारी संगठन अपनी अलग-अलग मांगों को लेकर सड़कों पर उतरे हुए हैं। जयपुर में इन दिनों लगभग हर रोज किसी ना किसी कर्मचारी संगठन के धरने-प्रदर्शन हो रहे हैं और सरकार के विभाग और मंत्री इनसे समझौतों मे जुटे हुए हैं ताकि चुनाव में कर्मचारियों की नाराजगी ना रह जाए।
कर्मचारियों के मामले में गहलोत हैं दूध के जले
दरअसल कर्मचारियों की नाराजगी के मामले में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दूध के जले हैं, इसलिए इस बार छाछ भी फूंक-फूंक कर पी रहे हैं। मुख्यमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल 1998 से 2003 के बीच राजस्थान में कर्मचारियों की करीब 65 दिन की एक हड़ताल चली थी और उस समय गहलोत ने कर्मचारियों की एक नहीं सुनी थी। हालांकि, इसके लिए उस समय गहलोत की काफी तारीफ भी हुई थी, लेकिन चुनाव में कर्मचाारियों ने कांग्रेस को कड़ा सबक सिखाया और 156 विधायकों वाली कांग्रेस चुनाव में 56 सीटों पर आ गई।
इसके दूसरे भी कई कारण थे, लेकिन कर्मचारियों की नाराजगी भी इनमें एक प्रमुख कारण माना जाता है। यही कारण है कि अपने दूसरे कार्यकाल और इस तीसरे कार्यकाल में भी गहलोत ने कर्मचारियों को सौगातें देने और उनकी मांगों को जहां तक हो सके पूरा करने में कोई कसर नहीं रखी है। गहलोत ने कर्मचारियों को ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली जैसी बड़ी सौगात दी है। लेकिन इसके बावजूद कुछ मांगे ऐसी हैं जिनके बारे में कर्मचारियों का कहना है कि सरकार ने समझौते तो कर लिए, लेकिन उन्हें लागू नहीं किया। इसके अलावा वेतन विंसगतियों और अन्य मांगों को लेकर बनी समिति की रिपोर्ट आ गई, लेकिन उसे सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है। वहीं विभागीय कर्मचारियों की अपनी मांगे हैं, जिनके चलते कर्मचारी सड़कों पर हैं।
ये कर्मचारी संगठन हैं आंदोलन पर
राजस्थान में करीब 82 कर्मचारी संगठनों के संघ अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी संयुक्त महासंघ ने सरकार को आंदोलन का अल्टीमेटम दे रखा है। संघ के प्रवक्ता नारायण सिंह का कहना है कि सरकार ने कर्मचारियों से समझौते तो कई कर लिए हैं, लेकिन उन्हें लागू नहीं किया जा रहा है। इनमे प्रमुख तौर पर हर आठ वर्ष में पदोन्नति, वेतन विसंगतियां दूर करना और अन्य 15 मांगें शामिल हैं।
राडवेज कर्मचारी
रोडवेज कर्मचारियों ने पिछले दिनों मानव श्रृंखला बनाई थी और अब पांच सितंबर से प्रदेशव्यापी हड़ताल की घोषणा की हुई है। रोडवेज कर्मचारियों के संयुक्त मोर्चे के संयोजक एमएल यादव का कहना है कि कांग्रेस सरकार ने अपने घोषणापत्र में रोडवेज और इसके कर्मचारियों को आर्थिक संकट से निकालने के लिए जो वादे किए थे, उन्हें पूरा नहीं किया है, इसलिए यह आंदोलन चल रहा है।
तकनीकी विद्युत कर्मचारी
राजस्थान की बिजली कंपनियों में कार्यरत तकनीकी कर्मचारी इंटर डिस्कॉम ट्रांसफर नीति बनाने और पुरानी पेंशन योजना को लागू करने सहित 13 मांगों को लेकर धरना दे कर बैठे हैं। प्रदेश अध्यक्ष पृथ्वीराज गुर्जर का कहना है कि जब तक मांगें पूरी नहीं हो जाती महापड़ाव जारी रहेगा।
नर्सेज कर्मचारी
राजस्थान में संख्या की दृष्टि से नर्सेज कर्मचारी शिक्षकों के बाद दूसरे स्थान पर हैं। इन्होंने अपनी वेतन विसंगितयां दूर करने सहित विभिन्न मांगों को लेकर दो दिन पहले ही एक दिन का कार्य बहिष्कार किया था। अब इन्होंने पांच सितंबर तक अल्टीमेटम दे रखा है कि मांग पूरी नहीं हुई तो फिर से आंदोलन किया जाएगा।
तृतीय श्रेणी शिक्षक
वहीं तृतीय श्रेणी शिक्षक जिनकी संख्या करीब डेढ़ लाख है, वे अपने तबादलों की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं। मौजूदा कार्यकाल में सरकार ने इनके एक बार भी तबादले नहीं किए और ये पिछले पांच साल से जहां है, वहीं अटके हुए हैं।