मनीष गोधा, JAIPUR. अयोध्या में 22 जनवरी को भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। इस मंदिर के निर्माण में पूरे देश ने नहीं बल्कि पूरी दुनिया के रामभक्तों ने अपना योगदान दिया है, लेकिन राजस्थान इस मामले में कई तरह से अग्रणी रहा है। राम मंदिर निर्माण के लिए देशभर में सबसे ज्यादा दान राजस्थान से गया। मंदिर निर्माण के लिए भरतपुर के बंसी पहाड़पुर का पत्थर इस्तेमाल हुआ और ये पत्थर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो सके, इसके लिए इसकी खदानों को आरक्षित वन क्षेत्र से बाहर निकलवाया गया। मंदिर के गर्भ गृह में इस्तेमाल किया जा रहा सफेद संगमरमर भी राजस्थान से ही जा रहा है और मंदिर की अखंड ज्योति के लिए राजस्थान की ही एक गौशाला ने 9 साल के अथक परिश्रम के बाद 600 किलो घी भेजा है।
राम मंदिर में राजस्थान के पत्थर
राजस्थान देश के उन राज्यों में है जहां प्रचुर मात्रा में खनिज संपदा और उत्तम गुणवता का हर तरह के पत्थर उपलब्ध हैं। राजस्थान में भरतपुर, धौलपुर, जोधपुर मकराना और बिजोलिया का पत्थर पूरे देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में जाता है। राजस्थान के इन इलाकों का पत्थर कई तरह की विशेषताओं से भरा हुआ है और इसी के चलते राजस्थान को ये सौभाग्य मिला कि राम मंदिर का निर्माण यहां के पत्थरों से हुआ। भरतपुर के बंसी पहाड़पुर इलाके के पत्थर से मुख्य मंदिर का निर्माण हुआ और गर्भ गृह के निर्माण में मकराना के संगमरमर का इस्तेमाल किया जा रहा है।
पत्थर के लिए खदानों को आरक्षित वन क्षेत्र से बाहर निकाला
भरतपुर जिले के बयाना रुदावल बंशी पहाड़पुर की खदानों के लाल पत्थर से मंदिर का निर्माण हुआ है। यहां का करीब 13.5 लाख घन फीट पत्थर काम में लिया गया है। बंशी पहाड़पुर से निकलने वाले पत्थर की उम्र करीब 5 हजार साल तक मानी जाती है। कहा जाता है कि इन पत्थरों पर पानी पड़ने से ये और ज्यादा निखर जाता है और हजारों वर्षों तक एक रूप में ही कायम रहता है।
ये पत्थर जहां से निकलता है वो इलाका पहले आरक्षित वन क्षेत्र में था और इसी के चलते पत्थर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पा रहा था। राजस्थान में हालांकि कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस क्षेत्र को आरक्षित वन क्षेत्र से निकलवाने में अहम भूमिका निभाई। बंशी पहाड़पुर खनन क्षेत्र ब्लॉक-A और B सुखासिला एवं कोट क्षेत्र को बंध बारेठा वन्यजीव अभयारण्य क्षेत्र से बाहर करवाया। उसके बाद केंन्द्र सरकार के वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भरतपुर के बंशीपहाड़पुर में खनिज सेंड स्टोन के खनन के लिए वन भूमि के डायवर्जन की प्रथम स्तरीय स्वीकृति जारी की। भारत सरकार की स्वीकृति के साथ ही राज्य के माइंस विभाग ने बंशीपहाड़पुर में खनन ब्लॉक तैयार कर इनकी नीलामी कराई।
मकराना के संगमरमर से गर्भ गृह का निर्माण
राम मंदिर के गर्भ गृह का निर्माण नागौर जिले में डीडवाना और मकराना के संगमरमर से किया जा रहा है। मंदिर के गर्भ गृह के निर्माण में 13 हजार 300 घन फीट नक्काशीदार संगमरमर का उपयोग हुआ। वहीं 95 हजार 300 वर्ग फीट मार्बल फर्श और क्लैडिंग के लिए काम में लिया गया है। इसकी नक्काशी का काम भी यहीं के कारीगर कर रहे हैं। इसके साथ ही भीलवाड़ा जिले की बिजोलिया तहसील का लगभग 5 हजार टन सेंडस्टोन भी मंदिर निर्माण के लिए भेजा गया है। इसका इस्तेमाल बाहरी फर्श के लिए किया जाएगा।
अखंड ज्योति के लिए भेजा गया 600 किलो घी, 9 साल में हुआ तैयार
राम मंदिर की अखंड ज्योति और पहली आरती के लिए राजस्थान के जोधपुर जिले से 600 किलो घी भेजा गया है। देसी गाय का ये शुद्ध देसी घी 9 साल में एकत्र किया गया है। 108 कलश में ये घी लेकर संत महर्षि सांदीपनि जी महाराज अयोध्या पहुंच चुके हैं। वे जोधपुर के बनाड़ के पास श्रीश्री महर्षि संदीपनी राम धर्म गौशाला संचालित करते हैं। उन्होंने 20 साल पहले एक संकल्प लिया था कि अयोध्या में जब भी राम मंदिर बनेगा, उसके लिए गाय का शुद्ध देशी घी लेकर वहां जाएंगे।
साल 2014 में उन्होंने गायों से भरे एक ट्रक को रुकवाया, जो जोधपुर से गौकशी के लिए ले जाया जा रहा था। ट्रक में करीब 60 गाय थीं। महाराज ने उन 60 गायों के दूध से घी बनाकर एकत्रित करना शुरू कर दिया। उन्होंने ये संकल्प लिया कि जितना भी घी होगा, उसे वे बैलगाड़ियों के जरिए अयोध्या ले जाएंगे। घी को सुरक्षित रखने के लिए जड़ी-बूटियों का भी सहारा लिया। इस घी को स्टील की टंकियों में डालकर एसी के जरिए 16 डिग्री तापमान में रखा गया। इसके अलावा भी पूरे घी को हर 3 साल में 1 बार 5 जड़ी-बूटियां मिलाकर उबाला गया।
राजस्थान से सबसे ज्यादा दान
मंदिर निर्माण के लिए वैसे तो पूरे देश दुनिया से राशि एकत्रित हुई। लेकिन सबसे ज्यादा दान राशि राजस्थान से गई। राजस्थान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संगठन स्तर पर 3 प्रांत हैं। जयपुर, जोधपुर और चित्तौड़गढ़। इन तीनों प्रांतों के लगभग 36 हजार गांव-शहरों से 515 करोड़ रुपए की राशि मंदिर निर्माण के लिए भेजी गई।