मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान में नई सरकार ने पिछली सरकार के कार्यकाल के अंतिम समय में किए गए फैसलों की समीक्षा की घोषणा तो कर दी, लेकिन इसके नतीजे लोकसभा चुनाव के बाद ही आएंगे और तब तक जातिगत जनगणना, ओल्ड पेंशन स्कीम, विभिन्न जाति समुदाय के लिए गठित किए गए बोर्ड और नए जिलों के गठन जैसे बड़े और विवादास्पद मुद्दों पर असमंजस ही बना रहेगा। इसे सरकार की चुनावी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, क्योंकि चुनाव से पहले इनपर किया गया स्पष्ट फैसला राजनीतिक रूप से नुकसानदायक हो सकता है।
राजस्थान में भाजपा की सरकार ने पिछली सरकार के कार्यकाल के अंतिम समय में किए गए फैसलों की समीक्षा करने का निर्णय हाल में हुई पहली केबिनेट बैठक में किया है। इसके लिए मंत्रियों की एक समिति बनाई जाएगी जो तीन माह में अपनी रिपोर्ट देगी। हालांकि आमतौर पर ऐसी समिति सरकार के गठन के तुरंत बाद बना दी जाती है, लेकिन एक तो केबिनेट की बैठक ही सरकार बनने के करीब एक माह बाद हुई और बैठक हुए भी पांच दिन से ज्यादा का समय हो चुका है और अभी तक समिति का औपचारिक गठन नहीं किया गया है। अब जब समिति बनेगी तो यह तीन माह में अध्ययन करेगी यानी तब तक लोकसभा चुनाव या तो हो चुके होंगे या होने वाले होंगे। ऐसे में इन फैसलों पर समीक्षा के बाद सरकार का स्पष्ट रूख लोकसभा चुनाव के बाद ही सामने आएगा।
ये हुए थे बडे फैसले
पिछली सरकार के कार्यकाल के अंतिम समय मे कई ऐसे बड़े फैसले किए गए थे, जो बड़े वर्ग को प्रभावित करते हैं जैसे-
जातिगत जनगणना-
पिछली सरकार ने आचार संहिता लगने से दो दिन पहले जातिगत जनगणना के आदेश जारी किए थे। यह बहुत बड़े वर्ग को प्रभावित करने वाला मुद्दा है और राजस्थान में इसे लेकर अभी भाजपा ने चुप्पी साधी हुई है।
नए जिलों का गठन-
पिछली सरकार ने 17 नए जिले बजट में ही घोषित कर दिए थे, लेकिन इनका नोटिफिकेशन जुलाई-अगस्त में जारी हुआ था। अभी सरकार इनमें कलक्टर आदि के तबादले और नियुक्तियां कर रही है, लेकिन इतनी संख्या में नए जिलों को भाजपा आलोचना कर चुकी है। वहीं मालपुरा सहित तीन जिले तो आचार संहिता से दो दिन पहले ही घोषित किए गए थे।
जातिगत बोर्डो का गठन-
पिछली सरकार ने अपने कार्यकाल के अंतिम समय में 20 से ज्यादा जातिगत बोर्ड गठित किए थे। ये बोर्ड समुदायों को साधने के साथ ही पार्टी के काार्यकर्ताओं को नियुक्तियां देने का माध्यम भी बने थे।
ओल्ड पेंशन स्कीम-
ओल्ड पेंशन स्कीम पिछली सरकार ने दो वर्ष पहले ही लागू कर दी थी और हाल में भाजपा के वरिष्ठ नेता राजेन्द्र राठौड़ ने इसे जारी रखने के संकेत भी दिए हैं, लेकिन केन्द्र सरकार ने राज्य को इसके हिस्से की राशि देने से मना कर चुकी है। ऐसे अब ओपीएस को लेकर असमंजस की स्थिति है। यह देश भर का मुद्दा है।
विभिन्न निर्माण परियोजनाएं-
पिछली सरकार के समय कोटा में चम्बल रिवर फ्रंट और जयपुर में सवाई मानसिंह अस्पताल में बहुंजिला ओपीडी विंग बनाने की दो बडी निर्माण परियोजनाएं शुरू हुई थी। इनमें चंबल रिवर फ्रंट पूरा हो चुका है, लेकिन यहां पूर्व सीएम अशोक गहलोत और मंत्री शांति धारीवाल की मूर्तियां बनाए जाने का विवाद सामने आया है। इसके अलावा चंबल रिवर फ्रंट के निर्माण पर भी चुनाव से पहले सवाल उठे थे। वहीं जयपुर में सवाई मानसिंह अस्पताल की ओपीडी विंग का निर्माण चल रहा है। इसे लेकर विवाद सामने आ चुका है, क्योंकि पार्किंग के प्रावधान के बिना ही इसका निर्माण शुरू कर दिया गया। इसे लेकर स्वयं अस्पतााल के अधिकारी ने सरकार को पत्र लिखा है।
कांग्रेस का आरोप-
कांग्रेस के प्रदेश महासचिव आरसी चैधरी का कहना है कि यह जनता से जुडे अहम मुद्दे है और इनकी समीक्षा की जरूरत ही नहीं है। सरकार को इन पर अपना रूख तुरंत स्पष्ट करना चाहिए ताकि जनता को पता तो चले कि इनके मन में क्या है। सरकार जानबूझ कर इन मुद्दों को लोकसभा चुनाव तक टाल रही है, ताकि जनता को भ्रम में रखा जा सके।