क्या वसुंधरा राजे और सचिन पायलट की दावेदारी के चलते अटकी हुई हैं भाजपा और कांग्रेस की कैम्पेन कमेटियां?

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Chakresh
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क्या वसुंधरा राजे और सचिन पायलट की दावेदारी के चलते अटकी हुई हैं भाजपा और कांग्रेस की कैम्पेन कमेटियां?

जयपुर से मनीष गोधा

राजस्थान में चुनाव के ढोल-नगाड़े बजने शुरू हो चुके हैं। परम्परागत प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस और भाजपा में समितियों की घोषणा के साथ चुनाव केन्द्रित काम भी शुरू हो चुका है, लेकिन दोनों ही दलों में चुनाव की दृष्टि से अहम माने जाने वाली चुनाव अभियान समिति यानी कैम्पेन कमेटी का गठन नहीं हुआ है, जबकि पूरे राजस्थान की नजर दोनों दलों में इसी समिति के गठन पर टिकी हुई है। बताया जा रहा है कि दोनों दलों में चली आ रही अंदरूनी खींचतान ही इन समितिंयों के गठन में देरी का कारण बनी हुई है। समिति के अध्यक्ष पद के दावेदार ऐसे नेता हैं, जिन्हें अध्यक्ष बना दिया जाए तो वे स्वतः ही चुनाव में पार्टी का चेहरा बन जाएंगे। यही कारण है कि दोनों ही दल गुटबाजी से बचने के लिए किसी एक को चेहरा घोषित करना नहीं चाहते।

राजस्थान में कांग्रेस ने अब तक चुनाव समिति, स्क्रीनिंग कमेटी और पाॅलिटिकल अफेयर्स कमेटियों का गठन किया है, वहीं भाजपा चुनाव प्रबंधन समिति और संकल्प पत्र समिति का गठन कर चुकी है। दोनों ही दलों में अब मुख्य तौर पर कैम्पेन कमेटी का ही इंतजार है जो पार्टी का चुनाव अभियान चलाएगी।



कांग्रेस में सचिन हैं दावेदार

कांग्रेस की चुनाव समिति का मुख्य काम प्रत्याशियों के चयन से जुड़ा है। वहीं पाॅलिटिकल अफेयर्स कमेटी चुनावी मुद्दों को तय करने के लिए बनी है। स्क्रीनिंग कमेटी में बाहर के नेता सदस्य हैं जो विशुद्ध तौर पर प्रत्याशी चयन का ही काम करेंगे। ऐसे में चुनाव प्रचार के लिए अभी पार्टी को कैम्पेन कमेटी की घोषणा करनी है। पार्टी में इस कमेटी के अध्यक्ष पद के लिए मुख्य तौर पर सचिन पायलट के नाम की चर्चा है और इन्हें इसका सबसे सशक्त दावेदार भी माना जा रहा है, क्योंकि अभी तक सचिन तीनों समितियों में सिर्फ सदस्य के रूप में ही शामिल हुए हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि पार्टी ने चुनाव में अभी तक सचिन को कोई अहम जिम्मेदारी सीधे तौर पर नहीं सौंपी है। यह चुनावी दृष्टि से पार्टी के लिए परेशानी का कारण बन सकता है। खासतौर पर गुर्जर बाहुल्य इलाकों में जहां पिछली बार सिर्फ सचिन पायलट के चेहरे के कारण पार्टी को एकमुश्त वोट मिले थे। हालांकि सचिन को कैम्पेन कमेटी का अध्यक्ष बनाए जाने में एक बड़ा पेंच यह है कि इससे सचिन चुनाव में सीधे तौर पर सीएम अशोक गहलोत जैसा बड़ा चेहरा बन जाएंगे और चुनाव में पार्टी का चेहरा मान लिए जाएंगे, जबकि पार्टी शुरू से ही मिलकर चुनाव लड़ने की बात कर रही है और किसी एक चेहरे का सीधे तौर पर आगे नहीं करना चाहती। ऐसे में अब नजर इस बात पर ही है कि आखिर पार्टी कैम्पेन कमेटी बनाती है या नहीं! और बनाती भी है तो इसकी अध्यक्षता किसे सौंपती है? इस मामले में पार्टी के प्रदेश स्तर के नेता औपचारिक तौर पर कुछ भी कहने को तैयार नहीं हैं।



भाजपा में वसुंधरा राजे मानी जा रही हैं दावेदार

कंग्रेस जैसी ही स्थिति भाजपा में भी दिख रही है। पार्टी ने अभी तक चुनाव प्रबंधन समिति और संकल्प पत्र समिति बनाई है। प्रबंधन समिति का काम मुख्य तौर पर चुनाव के दौरान विभिन्न तरह की व्यवस्थाएं करना है और संकल्प पत्र समिति पार्टी का घोषणा पत्र तैयार करेगी। यहां भी कैम्पेन कमेटी घोषित होना बाकी है। वसुंधरा राजे सहित पार्टी के कई बडे़ नेता दोनों ही समितियों मे शामिल नहीं हैं। ऐसे में यह तय माना जा रहा है कि है कि बड़े नेताओं की एक समिति तो जरूर बनेगी। वसुंधरा राजे को दोनों ही समितियों में नहीं लिए जाने के बारे में जब पार्टी के प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह से सवाल किया गया था तो उन्होंने कहा भी था कि अभी कैम्पेन कमेटी बनना बाकी है। भाजपा में भी वसुंधरा राजे को इस समिति के अध्यक्ष पद का सबसे सशक्त दावेदार माना जा रहा है और यहां भी इस नियुक्ति में कांग्रेस जैसी ही अड़चन है। समिति की अध्यक्षता राजे को सौंपी जाती है तो वे चुनाव में पार्टी का चेहरा मान ली जाएंगी, जबकि पार्टी पूरी तरह से सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात कर रही है। यहां तक कि पार्टी ने परिवर्तन यात्रा के भी चार हिस्से कर दिए हैं। पार्टी में अब यह चर्चा भी चल पड़ी है कि हो सकता है कि पार्टी कैम्पेन कमेटी गठित ही ना करे और मौजूदा कोर कमेटी को ही चुनाव संचालन या अभियान की जिम्मेदारी दे दी जाए ताकि किसी तरह का विवाद ही ना हो। इधर राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि दोनों ही दलों ने पिछले पांच साल के दौरान इतनी गुटबाजी झेली है कि ये अभी भी इससे बाहर नहीं आ पा रहे हैं। इसी के चलते दोनों ही दलों में हमें चुनाव अभियान समिति को लेकर इतना असमंजस दिख रहा है।



पिछले चुनाव में यह हुआ था

दोनों दलों में पिछले चुनाव की बात करें तो परिस्थितियां अलग थीं। इसलिए समितियों का गठन भी अलग ही ढंग से था। पिछले चुनाव में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट थे और अशोक गहलोत राष्ट्रीय संगठन महासचिव थे, ऐसे में पायलट ही पार्टी का चेहरा बने हुए थे। पार्टी ने आठ अलग-अलग समितियां बनाई थीं। कैम्पेन कमेटी को सामान्य कमेटी के रूप में बनाया गया था और रघु शर्मा को इसका संयोजक बनाया गया था जो उस समय सचिन पायलट के खास सिपहसालारों में थे। यानी एक तरह से कमान पायलट के हाथ में ही थी।

वहीं भाजपा की बात करें तो वसुंधरा राजे सीएम थीं। कैम्पेन कमेटी अलग से ना बनाकर एक संचालन समिति बनाई गई थी। इसके अध्यक्ष तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष मदनलाल सैनी थे और गजेंद्र सिंह शेखावत को इसका संयोजक बना दिया गया था। उस समय शेखावत सीएम पद के प्रबल दावेदारों में थे। पार्टी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाने का निर्णय किया था, लेकिन वसुंधरा गुट के विधायकों के वीटो के कारण ऐसा नहीं हो पाया था।

 


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