धरे रह गए नेताओं के दावे, दोनों ही दलों में प्रत्याशी चयन के लिए समय के हिसाब से बदलती दिखी रणनीति

author-image
Pratibha Rana
एडिट
New Update
धरे रह गए नेताओं के दावे, दोनों ही दलों में प्रत्याशी चयन के लिए समय के हिसाब से बदलती दिखी रणनीति

मनीष गोधा@ JAIPUR.

अंतिम समय तक सूचियां जारी हो रही हैं। प्रत्याशियों के चयन में कोई निश्चित मापदंड नहीं दिख रहा है, एक दूसरे के प्रत्याशियों को देखकर या प्रत्याशियों के नाम को लेकर सामने प्रतिक्रिया को देखते हुए अंतिम समय पर रणनीतियां बदली जा रही हैं। यानी दोनों ही दलों में प्रत्याशी चयन को लेकर पहले कितने भी सर्वे या स्टडी कराई गई हो, प्रत्याशी चयन में पार्टी के बड़े नेताओं की पसंद, नापसंद पूरी तरह से हावी दिख रही है।

प्रत्याशी का जिताऊ होना एकमात्र मापदंड

राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले दोनों ही दलों के नेताओं ने प्रत्याशी चयन को लेकर यह साफ कर दिया था कि विनेबिलिटी यानी प्रत्याशी का जिताऊ होना एकमात्र मापदंड रहने वाला है, लेकिन विनेबिलिटी के नाम पर दोनों ही दलों में इस बार प्रत्याशी चयन को लेकर जिस तरह की स्थितियां देखी गई वो पहले नजर नहीं आई हैं। दोनों ही दलों के अब तक घोषित प्रत्याशी देखने के बाद आम कार्यकर्ता आपसी बातचीत में यही कहता दिख रहा है कि सर्वे या कार्यकर्ताओं से आवेदन लेने के नाम पर जो कवायद की गई थी उसका कोई प्रभाव नजर नही आ रहा है।

आइए देखते हैं कैसे धराशाई होते दिख रहे हैं दावे....

जल्द घोषित होंगे प्रत्याशी

चुनाव के डेढ़ से 2 महीने पहले प्रत्याशी घोषित करने का दावा ना कांग्रेस में पूरा होता दिख रहा है ना बीजेपी में। यह दावा सबसे पहले कांग्रेस की ओर से किया गया था लेकिन पार्टी की पहली सूची ही 21 अक्तूबर को आई और अभी भी पूरे नाम नहीं आ पाए हैं। वहीं भाजपा ने पहली सूची हालांकि 9 अक्टूबर को चुनाव घोषित होने के साथ ही जारी कर दी थी लेकिन इसके बाद दूसरी सूची देर से आई और अब तीसरी सूची तो लगभग अंतिम समय पर आ रही है। यानी पहली सूची जल्दी जारी करके पार्टी में जो साहस दिखाया वह पहली सूची में पार्टी प्रत्याशियों के विरोध के बाद ठंडा पड़ गया और पार्टी की रणनीति बदलती हुई दिखाई दी।

सर्वे और कार्यकर्ताओं का फीडबैक

कांग्रेस की ओर से लगातार यह दावा किया जा रहा था कि इस बार टिकट पूरी तरह से सर्वे के आधार पर दिए जाएंगे। पार्टी के सभी बड़े नेता यह कहते दिखाई दिए थे कि कार्यकर्ताओं को तवज्जो मिलेगी और पार्टी ने अलग-अलग सर्वे कराए हैं इन्हीं के आधार पर टिकट दिए जाएंगे। लेकिन स्थिति यह है कि पार्टी अपने 102 विधायकों में से 77 को रिपीट कर चुकी है। वहीं सरकार के साथ रहने वाले बसपा और निर्दलीय विधायकों में से भी 13 को टिकट मिल चुके हैं। अब पार्टी कार्यकर्ता आपसी बातचीत में पूछ रहे हैं कि जब सब को रिपीट ही करना था तो आखिर हमसे आवेदन लेने और बार-बार सर्वे के आधार पर टिकट देने का दावा क्यों किया।

बीजेपी ने किया 51 विधायकों को रिपीट

उधर, भाजपा ने हालांकि कार्यकर्ताओं से आवेदन लेने की प्रक्रिया तो नहीं की लेकिन सर्वे और कार्यकर्ताओं से फीडबैक की बात यहां भी की गई थी। पार्टी की पहली सूची में सांसदों को उतारा गया और इसे पूरी तरह से आला कमान का निर्णय बताया गया। जब कई सीटों पर विरोध सामने आया तो अगली सूची में पार्टी की मौजूदा में 69 विधायकों में से 51 को रिपीट कर दिया गया और पिछली बार के हारे हुए आठ प्रत्याशियों को टिकट दे दिया गया। किसी सांसद को भी टिकट नहीं दिया गया। यानी दूसरी सूची में पार्टी की रणनीति बदली हुई दिखी।

नेताओं का प्रभाव

प्रत्याशी चयन प्रक्रिया शुरू होने से पहले सर्वे और अध्ययन के आधार पर टिकट दिए जाने और जिताऊ को ही टिकट दिए जाने की बात के बाद यह लग रहा था कि इस बार टिकट दिए जाने में नेताओं का प्रभाव नजर नहीं आएगा, लेकिन ऐसा नहीं होता दिख रहा। कांग्रेस की बात की जाए तो उसकी सूची में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पसंद नापसंद पूरी तरह से हावी दिख रही है। वह ज्यादातर मौजूदा विधायकों को रिपीट करने में सफल रहे हैं। वहीं निर्दलीय और बसपा के विधायकों को भी पार्टी के टिकट मिल चुके हैं। खिलाड़ी लाल बैरवा और भरत सिंह कुंदनपुर के नाम नहीं होने से साफ है कि पार्टी ने गहलोत की नापसंदगी का भी पूरा ख्याल रखा है।

उधर भाजपा में चुनाव के दौरान और पहली सूची में हाशिए पर दिख रही पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे दूसरी सूची के बाद मुख्य धारा में आती दिखी। इस सूची में लगभग दो दर्जन नाम उनके समर्थकों के थे। जबकि पहले माना जा रहा था कि इस बार वसुंधरा राजे के समर्थकों को बहुत ज्यादा अहमियत नहीं मिलेगी। पहली सूची में उनके नजदीकी माने जाने वाले राजपाल सिंह जैसे नेताओं के टिकट कटने से इस बात के संकेत मिले भी थे लेकिन दूसरी सूची ने प्रत्याशी चयन में वसुंधरा राजे के प्रभाव को स्पष्ट कर दिया।

उम्र और परिवारवाद

कांग्रेस ने इस बार प्रत्याशी चयन के लिए यह साफ कर दिया था कि उसके लिए विनिबिलिटी ही एकमात्र क्राइटेरिया होगा और इसके नाम पर पार्टी ने हर तरह की छूट ली है। पिछले चुनाव में कई बार हार चुके प्रत्याशियों को फिर से मौका दिया गया है। अमीन खान महादेव सिंह खंडेला, दीपेंद्र सिंह जैसे काफी उम्र दराज नेताओं को भी टिकट दिए गए हैं और परिवारवाद के आरोप का भी कोई खास ख्याल नहीं रखते हुए करीब बीस प्रत्याशी नेताओं के परिवारों से उतारे है।

वहीं बीजेपी की बात करें तो यहां भी पिछला चुनाव हारे हुए करीब 17 लोगों को फिर से मैदान में उतार दिया गया है। वहीं 70 साल से कम उम्र वाले भी तीन टिकट दिए गए है। हालांकि उम्र के आधार पर ही छह बार की विधायक सूर्यकांका व्यास का टिकट काट दिया गया है। वही परिवारवाद की बात करें तो पार्टी अब तक 11 ऐसे प्रत्याशियों को टिकट दे चुकी है, जो किसी न किसी नेता के रिश्तेदार हैं।

दल बदलुओं को टिकट

हालांकि नैतिक रूप से दोनों ही दल यह कहते आए हैं कि हमारे लिए कार्यकर्ता सबसे ऊपर है और उसी को प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों ने ही चुनाव से पहले पार्टी का दामन थामने वाले कई नेताओं को टिकट दिया है। कांग्रेस की बात करें तो शोभा रानी कुशवाहा, विकास चौधरी, इमरान खा और सुरेंद्र गोयल ऐसे नाम है जो चुनाव से पहले बीजेपी और बसपा से पार्टी में शामिल हुए हैं और इन्हें टिकट मिल गया है।

वहीं भाजपा की बात करें तो चंद्र मोहन मीणा, ज्योति मिर्धा, सुभाष महरिया वो प्रमुख नाम हैं जो चुनाव से कुछ समय पहले पार्टी में शामिल हुए और टिकट पा गए। अभी पार्टी की एक बड़ी सूची बाकी है, उसमें कुछ और नए नाम जुड़ सकते हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि चुनाव के दौरान रणनीति में स्थितियों को देखते हुए बदलाव करना कई बार जरूरी हो जाता है, वही इस चुनाव में भी होता दिख रहा है, लेकिन यह सही है कि इस बार दोनों ही दलों में प्रत्याशियों के चयन में कोई खास मापदंड नजर नहीं आ रहे हैं।

कितना सफल होगा प्रयोग ?

राजनीतिक विश्लेषक जगदीश शर्मा ने कहा कि कांग्रेस के करीब 150 और बीजेपी के 120 उम्मीदवारों की सूची साफ दिखाती है कि पार्टियां जिन सिद्धांतों की बातें कर रही थी वे सब कहने की बातें थीं। उम्मीदवार तो नेता जी की समझ से ही बनाए जाएंगे। हांलाकि दोनों ही दलों के नेताओं को कहना पड़ रहा है कि जिताऊ का चुनाव करना मजबूरी है। बीजेपी ने पहली सूची, जिसमें 7 सांसदों को मैदान में उतारा था, वो प्रयोग कितना सफल होगा, देखना है। कांग्रेस में मुख्यमंत्री गहलोत की चली है जिससे सूची में उन तमाम नेताओं के टिकट दिए गए, जिन्होंने पिछले चुनाव में में कांग्रेस के ही अधिकृत प्रत्याशी को हराया था। गंभीर इनकंबैंसी के होते हुए भी उन्हें 'ओब्लाइज' करना बताता है कि गहलोत संकट के समय मदद करने वालों के साथ खड़े हैं, भले ही पार्टी हार जाए।

Rajasthan News राजस्थान न्यूज Rajasthan Assembly Elections 2023 राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 leaders claims remain on hold धरे रह गए नेताओं के दावे