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Photograph: (The Sootr)
राजस्थान (Rajasthan) में जलवायु परिवर्तन का बड़े स्तर पर प्रभाव पड़ रहा है। इसने पूरे प्रदेश की जलवायु में व्यापक बदलाव किया है, जिससे भविष्य में खेती का पूरा सिस्टम बदल सकता है। केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) के एक अध्ययन में बताया गया है कि जैसलमेर से अधिक अब बीकानेर रेगिस्तानी जिला हो गया है। राजधानी जयपुर की जलवायु भी सीकर-झुंझुनूं जैसी हो गई है। काजरी ने जलवायु परिवर्तन पर इस अध्ययन के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन को देखते हुए प्रदेश के कृषि जलवायु जोन को 46 साल बाद नए सिरे से परिभाषित किया है। हालांकि, रिपोर्ट में जलवायु के हिसाब से प्रदेश को पहले की तरह 10 जोन में बांटा है। लेकिन सभी जोन में बड़ा बदलाव दिखा है। यह रिपोर्ट राजस्थान के मुख्य सचिव को भेजी गई है।
पॉलिसी में रिपोर्ट जुड़ी तो आएगा खेती पैटर्न में बदलाव
काजरी के वैज्ञानिकों का कहना है कि यह रिपोर्ट राजस्थान सरकार ने अपनी पॉलिसी मैटर मेें शामिल की तो इससे प्रदेश की कृषि नीति निर्धारण, फसल पैटर्न, सिंचाई, एमएसपी खरीद जैसे निर्णयों में बड़ा बदलाव आ सकता है। काजरी ने भी सरकार से इस रिपोर्ट को पॉलिसी मैटर के तौर पर लागू करने की सलाह दी है। यह रिपोर्ट काजरी के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. डीवी सिंह ने तैयार की है।
किसानों की आय पर पड़ेगा असर
काजरी के पूर्व निदेशक डॉ ओपी यादव का कहना है कि राजस्थान की अधिकांश जमीन शुष्क और अर्ध-शुष्क है। यहां खेती मौसमी वर्षा पर निर्भर है। ऐसे में जलवायु परिवर्तन (climate change) के कारण पारंपरिक फसल चक्र जमीनी स्तर पर बदलेगा। इससे किसानों की आय और खाद्य सुरक्षा पर संकट आ सकता है।
काजरी की रिपोर्ट, बदलाव की कहानी
- रिपोर्ट के अनुसार पहले पश्चिमी शुष्क क्षेत्र में बाड़मेर और जोधपुर का कुछ हिस्सा आता था। लेकिन, अब इसमें बाड़मेर और जालौर को शामिल किया है। नर्मदा आने के बाद बाड़मेर और जालौर में एक जैसा क्लाइमेट हो गया है।
- अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र जैसलमेर को अब जोधपुर और नागौर के साथ नए क्लस्टर में जोड़ा गया है। बीकानेर के अपेक्षा जैसलमेर में रेगिस्तानी हिस्सा कम हुआ है।
- सिंचित क्षेत्र जोन में अब श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ के साथ ही बीकानेर के नहरी हिस्से और चूरू को शामिल किया है। बीकानेर और चूरू को शुष्क, लेकिन सिंचित क्षेत्र माना गया है। इन क्षेत्रों में नहरों ने बदलाव किया है।
- लूणी बेसिन क्षेत्र में पहले जालौर, पाली और सिरोही जुड़े थे। लेकिन, इसमें अब अजमेर, पाली, सिरोही शहर, रेवदर और शिवगंज को शामिल किया गया है।
- बाढ़ प्रभावित जोन में अलवर, धौलपुर, करौली, भरतपुर और सवाईमाधोपुर के साथ अब टोंक, दौसा व अजमेर को जोड़ा गया है। टोंक और दौसा अद्र्धशुष्क क्षेत्र से बाहर हो गए हैं।
- उदयपुर और चित्तोड़गढ़ अब चावल वाले क्षेत्र से बाहर हो गए हैं। हाड़ौती क्षेत्र में प्रतापगढत्र जुड़ गया है, जहां सरसां, सोयाबीन और ज्वार की खेती होगी।
जलवायु परिवर्तन ने दिखाया रंग
राजस्थान को अरावली की पर्वत श्रंखला दो हिस्सों में बांटती है। अरावली का पूर्वी हिस्सा जहां सिंचित क्षेत्र माना जाता था, वहीं पश्चिमी क्षेत्र की गिनती रेगिस्तान में आती है। इंदिरा गांधी नहर ने रेगिस्तानी हिस्से में बड़ा बदलाव किया है। अब दोनों हिस्सों में जलवायु परिवर्तन बड़ा खेल कर रहा है।
काजरी (CAZRI) क्या है?
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