जोधपुर समेत देशभर के AIIMS में फैकल्टी की कमी, 22 हजार से अधिक पद खाली

भारत के प्रमुख मेडिकल संस्थानों में शिक्षकों की कमी, एम्स जोधपुर, एम्स दिल्ली और अन्य स्थानों पर फैकल्टी पदों की भारी कमी, 2025-26 डेटा में खुलासा।

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Nitin Kumar Bhal
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Photograph: (The Sootr)

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भारत के प्रमुख मेडिकल संस्थानों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा, जो छात्रों और शिक्षकों दोनों को प्रभावित कर रहा है, वह है शिक्षकों की भारी कमी। एम्स (AIIMS - All India Institute of Medical Sciences) जैसे शीर्ष चिकित्सा संस्थानों में भी यह समस्या तेजी से बढ़ रही है। इस समय राजस्थान (Rajasthan) के जोधपुर एम्स (AIIMS Jodhpur) समेत देशभर के 23 एम्स संस्थानों में 36 प्रतिशत फैकल्टी के पद खाली हैं, जो भारतीय मेडिकल शिक्षा प्रणाली के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन चुका है। यह स्थिति मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता पर असर डाल रही है और छात्रों को उच्च गुणवत्ता की शिक्षा देने में समस्या उत्पन्न कर रही है।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से राज्यसभा में प्रस्तुत आंकड़ों में यह कड़वा सच सामने आया है।

एम्स में खाली फैकल्टी पदों की स्थिति

इन 23 एम्स संस्थानों में प्रोफेसर (Professor), एसोसिएट प्रोफेसर (Associate Professor) और असिस्टेंट प्रोफेसर (Assistant Professor) के पदों में 24% से 73% तक की कमी पाई गई है। कुल मिलाकर, 22 हजार से ज्यादा फैकल्टी और नॉन-फैकल्टी (Non-faculty) के पद खाली हैं। मेडिकल शिक्षा के लिए प्रतिष्ठित एम्स दिल्ली में भी केवल 65% फैकल्टी पद भरे हुए हैं, जबकि यहां 462 पद अभी भी खाली हैं।

एम्स दिल्ली को छोड़ कर अन्य एम्स संस्थानों में स्थिति और भी गंभीर है। कहीं भी 80% से अधिक फैकल्टी पद भरे नहीं गए हैं। राजस्थान के एम्स जोधपुर में 46% पद खाली हैं, जहां 405 पदों में से केवल 219 पद भरे गए।

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एम्स (AIIMS) के बारे में जानें

  • एम्स की स्थापना: एम्स (AIIMS) की स्थापना 1956 में की गई थी ताकि स्वास्थ्य देखभाल के सभी पहलुओं में उत्कृष्टता को बढ़ावा दिया जा सके।

  • नेहरू का सपना: पंडित जवाहरलाल नेहरू का सपना था कि भारत में एक ऐसा केंद्र हो जो दक्षिण-पूर्व एशिया में चिकित्सा शिक्षा और शोध में नेतृत्व प्रदान करे।

  • स्वास्थ्य मंत्री का समर्थन: नेहरू को इस सपने में उनकी स्वास्थ्य मंत्री, राजकुमारी अमृत कौर का पूरा समर्थन प्राप्त था।

  • भोर समिति की सिफारिश: 1946 में सर जोसेफ भोर की अध्यक्षता वाली स्वास्थ्य सर्वेक्षण और विकास समिति ने राष्ट्रीय चिकित्सा केंद्र की स्थापना की सिफारिश की थी।

  • नई ज़ीलैंड से सहायता: नेहरू और अमृत कौर के सपनों तथा भोर समिति की सिफारिशों को सरकार से समर्थन मिला और नई ज़ीलैंड के कोलंबो योजना के तहत मिली दान राशि से एम्स की नींव रखी गई।

  • एम्स का उद्देश्य: एम्स का उद्देश्य चिकित्सा शिक्षा, शोध और रोगियों की देखभाल में उच्च मानक स्थापित करना था।

  • स्वायत्त संस्थान: 1956 में संसद के एक अधिनियम के द्वारा एम्स को एक स्वायत्त संस्थान के रूप में स्थापित किया गया।

  • चिकित्सा शिक्षा में सुधार: एम्स का उद्देश्य मेडिकल शिक्षा के पाठ्यक्रमों का विकास करना था, ताकि भारतीय चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो सके।

  • शिक्षण और अनुसंधान सुविधाएं: एम्स में 42 चिकित्सा और संबंधित क्षेत्रों में शिक्षण और अनुसंधान की सुविधाएं उपलब्ध हैं।

  • स्वास्थ्य देखभाल में उत्कृष्टता: एम्स में 25 क्लिनिकल विभाग और 4 सुपर स्पेशलिटी केंद्र हैं, जो विभिन्न प्रकार की बीमारियों का इलाज करते हैं।

  • आधुनिक शोध में अग्रणी: एम्स हर साल 600 से अधिक शोध प्रकाशित करता है और चिकित्सा अनुसंधान में अग्रणी भूमिका निभाता है।

  • नर्सिंग कॉलेज: एम्स एक नर्सिंग कॉलेज भी चलाता है, जहां B.Sc.(Hons.) Nursing जैसी डिग्रियां दी जाती हैं।

  • ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र: एम्स हरियाणा के बल्लबगढ़ में एक 60-बेड अस्पताल चलाता है और करीब 2.5 लाख लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करता है।

  • समुदाय आधारित शिक्षा और शोध: एम्स में समुदाय आधारित शिक्षा और शोध पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और गुणवत्ता बढ़े।

  • एम्स के उद्देश्य और कार्य: एम्स का उद्देश्य उच्च गुणवत्ता की चिकित्सा शिक्षा, शोध, और स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करना है, साथ ही यह स्वास्थ्य क्षेत्र में समग्र और आत्मनिर्भरता की दिशा में काम करता है।

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नए एम्स संस्थानों की स्थिति और चुनौतियां

2022 में स्थापित एम्स मदुरै में स्थिति और भी चिंताजनक है, जहां 183 फैकल्टी पदों में से केवल 49 भरे गए और 911 नॉन-फैकल्टी पदों में से केवल 43।

2020 में शुरू हुए एम्स राजकोट में भी फैकल्टी की संख्या सिर्फ 42% है। कई बार एम्स में रिटायर्ड शिक्षकों और विजिटिंग फैकल्टी (Visiting Faculty) को बुलाकर कमी को पूरा करने का प्रयास किया जाता है, लेकिन फिर भी समस्या बनी हुई है।

 

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Photograph: (The Sootr)

 

एम्स में फैकल्टी कमी के कारण और प्रभाव

कारण

  • नए एम्स संस्थानों का तेजी से विस्तार, लेकिन शिक्षकों की कमी के कारण पदों पर नियुक्ति अधूरी।

  • अनुभवी शिक्षकों का रिटायर होना और प्रतिस्थापन की कमी।

  • अपर्याप्त प्रेरणा और प्रशिक्षण के कारण शिक्षकों का कम आना।

  • उच्च पदों के लिए मेधावी शिक्षकों की कमी।

प्रभाव

  • मेडिकल छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी।

  • शोध कार्य और क्लिनिकल प्रैक्टिस पर नकारात्मक असर।

  • नए मेडिकल हाई-टेक अभ्यासों और तकनीकों का प्रसार धीमा होना।

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा के भविष्य पर खतरा।

 

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एम्स में शिक्षकों की कमी दूर करने के उपाय

1. शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया को तेज़ और पारदर्शी बनाना

एम्स को चाहिए कि वे फैकल्टी भर्ती प्रक्रिया में तेजी लाएं और अधिक पारदर्शी उपाय अपनाएं।

2. अनुभवी शिक्षकों के लिए प्रोत्साहन

रिटायर टीचर्स को विजिटिंग फैकल्टी के रूप में नियुक्त कर अनुभव का लाभ लेना और नए शिक्षकों को उत्कृष्ट सुविधाएं देना।

3. शिक्षा एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम

नए शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम और स्कॉलरशिप चालू करें।

4. तकनीकी और मौजूदा संसाधनों का उपयोग

ऑनलाइन शिक्षण और ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म्स से शिक्षण का दायरा बढ़ाएं।

एम्स फैकल्टी कमी की समस्या और समाधान का निष्कर्ष

मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए एम्स में फैकल्टी की कमी को प्राथमिकता देनी होगी। सरकार और संस्थान दोनों को मिलकर इस समस्या को हल करना अनिवार्य है, ताकि भारत को कुशल और प्रशिक्षित डॉक्टर मिल सकें।

FAQ

1. एम्स (AIIMS) में फैकल्टी की कमी कितनी है?
एम्स के देश के 23 संस्थानों में 36% फैकल्टी पद खाली हैं, एम्स दिल्ली में 35% पद खाली होने के साथ ही अन्य नए संस्थानों में यह कमी और भी अधिक है।
2. एम्स में फैकल्टी कमी के क्या कारण हैं?
अधिकतर कारणों में नए संस्थानों का जल्दी विस्तार, अनुभवी शिक्षकों का रिटायर होना और भर्ती प्रक्रिया में देरी शामिल हैं।
3. एम्स में खाली पदों को भरने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
रिटायर्ड टीचर्स और विजिटिंग फैकल्टी को बुलाया जाता है, साथ ही भर्ती प्रक्रिया तेज करने के प्रयास जारी हैं।
4. एम्स में फैकल्टी कमी का मेडिकल छात्रों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में कमी, शोध कार्य में बाधा और क्लिनिकल प्रशिक्षण पर नकारात्मक असर इसका प्रमुख प्रभाव है।
5. एम्स में फैकल्टी कमी को कैसे दूर किया जा सकता है?
तेज भर्ती प्रक्रिया, प्रशिक्षित शिक्षकों के लिए प्रोत्साहन, और ऑनलाइन शिक्षण के माध्यम से कमी को दूर किया जा सकता है।

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