राजस्थान: जयपुर में लेपर्ड जंगल की सरहद लांघ आबादी में पहुंचा, मच गई खलबली, जानें पूरा मामला

जयपुर में गोपालपुरा मोड़ के पास फैक्ट्री में लेपर्ड के मूवमेंट की घटना सामने आई। वन विभाग ने मौके पर पहुंचकर सुरक्षा इंतजाम किए, लेकिन अंधेरे में रेस्क्यू ऑपरेशन सफल नहीं हो सका।

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Nitin Kumar Bhal
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Photograph: (The Sootr)

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जयपुर (Jaipur) के गोपालपुरा मोड़ (Gopalpura Mode) के पास गुरुवार को एक गंभीर स्थिति उत्पन्न हो गई, जब एक लेपर्ड (Leopard) ने फैक्ट्री के परिसर में घुसकर हड़कंप मचा दिया। यह घटना उस समय हुई जब फैक्ट्री में काम कर रहे कर्मचारियों ने शाम 4:15 से 4:30 बजे के बीच लेपर्ड को स्क्रैप यार्ड (Scrap Yard) में देखा। जैसे ही यह सूचना फैक्ट्री अधिकारियों और कर्मचारियों को मिली, सुरक्षा व्यवस्था को त्वरित रूप से बढ़ा दिया गया।

जयपुर में लेपर्ड का मूवमेंट

लेपर्ड का मूवमेंट फैक्ट्री के स्क्रैप यार्ड में देखा गया, जो कि एक संकुलित और संवेदनशील क्षेत्र था। फैक्ट्री में काम करने वाले कर्मचारी पंकज ने बताया कि यहां पर 35 लोग काम करते हैं और शाम 5 बजे तक उनकी छुट्टी हो जाती है। हालांकि, लेपर्ड के मूवमेंट की जानकारी मिलने के बाद सभी कर्मचारियों को फैक्ट्री में ही रहकर अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा गया। फैक्ट्री के कर्मचारियों को शाम 7 बजे तक कार के जरिए सुरक्षित रूप से मेन गेट तक भेजा गया।

शहरी क्षेत्रों में जंगली जानवर आने की घटना को देख सभी कर्मचारियों को घर जाने से पहले यह निर्देश दिया गया कि वे किसी भी प्रकार की असुरक्षित स्थिति से बचने के लिए सुरक्षित स्थान पर रहें। यह घटनाक्रम स्पष्ट करता है कि कर्मचारियों की सुरक्षा और सतर्कता के उपाय कितने महत्वपूर्ण होते हैं जब वन्यजीवों की गतिविधि का सामना करना पड़ता है।

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जयपुर में फैक्ट्री की दीवार पर लेपर्ड। Photograph: (The Sootr)

क्षेत्रीय वन अधिकारी जितेंद्र सिंह शेखावत ने बताया- फॉरेस्ट डिपार्टमेंट की टीम शाम से ही लेपर्ड की तलाश में जुटी थी। फैक्ट्री में झाड़ियां और पेड़-पौधों की वजह से अंधेरे में लेपर्ड का मूवमेंट नजर नहीं आ रहा है। ऐसे में फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के 20 से ज्यादा कर्मचारी फैक्ट्री में अलग-अलग जगह तैनात किए गए हैं। ताकि लेपर्ड किसी भी सूरत में बाहर आबादी क्षेत्र में न निकल जाए।

जयपुर में वन विभाग ने चलाया रेस्क्यू अभियान

लेपर्ड की सूचना मिलते ही, वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची और रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया। लेकिन अंधेरे का समय आते ही, लेपर्ड का रेस्क्यू करना मुश्किल हो गया। फैक्ट्री के आसपास झाड़ियां और पेड़-पौधे (Shrubs and Trees) होने की वजह से लेपर्ड का मूवमेंट ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था।

आधिकारिक जानकारी के अनुसार, वन विभाग ने 20 से अधिक कर्मचारियों की टीम को फैक्ट्री के आसपास तैनात किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लेपर्ड आबादी क्षेत्र में न घुसे और किसी प्रकार की अप्रिय घटना न हो। क्षेत्रीय वन अधिकारी जितेंद्र सिंह शेखावत (Regional Forest Officer Jitendra Singh Shekhawat) ने बताया कि जब तक अंधेरा हुआ, तब तक विभाग के कर्मचारियों ने पूरी तरह से सुरक्षा और निगरानी बनाए रखी।

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जयपुर में यहां दिखा लेपर्ड का मूवमेंट। Photograph: (The Sootr)

लेपर्ड के रेस्क्यू ऑपरेशन की चुनौतियाँ 

लेपर्ड का रेस्क्यू ऑपरेशन कई तरह की चुनौतियों से घिरा था। सबसे बड़ी चुनौती अंधेरे और फैक्ट्री के झाड़ियों और पेड़ों के बीच छिपे लेपर्ड का पता लगाना था। इन प्राकृतिक अवरोधों के कारण वन विभाग की टीम को लेपर्ड का मूवमेंट ट्रैक करने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा।

इसके अलावा, अंधेरे में ट्रेंकुलाइज (Tranquilizer) का इस्तेमाल भी मुश्किल था क्योंकि यह प्रक्रिया सावधानीपूर्वक की जानी चाहिए और इससे पहले लेपर्ड की स्थिति और स्थान का सही अनुमान लगाना आवश्यक था। इन सब कारणों से वन विभाग के प्रयासों को धीमा कर दिया और उनका रेस्क्यू ऑपरेशन तब तक सफल नहीं हो सका।

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राजस्थान में लेपर्ड की आबादी। Photograph: (The Sootr)

फैक्ट्री की सुरक्षा और आस-पास के क्षेत्रों के लिए सावधानियाँ 

जब लेपर्ड की मौजूदगी की जानकारी फैक्ट्री अधिकारियों को मिली, तो उन्होंने तुरंत सुरक्षा व्यवस्था को त्वरित रूप से बढ़ा दिया। कर्मचारियों को फैक्ट्री में रोक लिया गया और उन्हें घर जाने के लिए कार द्वारा सुरक्षित तरीके से भेजा गया। इसके अलावा, आस-पास रहने वाले लोगों को भी घर में रहने के लिए कहा गया, ताकि किसी प्रकार की दुर्घटना से बचा जा सके।

यह घटना एक महत्वपूर्ण सबक देती है कि वन्यजीवों के बारे में हमेशा सतर्क रहना आवश्यक है, खासकर जब वे मानव आबादी के करीब आते हैं। स्थानीय प्रशासन और वन विभाग को मिलकर इस तरह के हालात में आवश्यक कदम उठाने चाहिए, ताकि किसी भी अप्रिय घटना से बचा जा सके।

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देश में लेपर्ड की आबादी। Photograph: (The Sootr)

वन्यजीवों के शहर में घुसने की घटनाएं

लेपर्ड के शहरों में प्रवेश की घटनाएं अक्सर जंगलों के पास के क्षेत्रों में हो रही शहरीकरण के कारण बढ़ती जा रही हैं। वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास (Natural Habitats) को नष्ट करने से, यह जानवर आबादी क्षेत्रों में अधिक आ रहे हैं, जो उनके लिए संघर्ष और संघर्ष का कारण बनते हैं। लेपर्ड्स जैसी जंगली प्रजातियाँ भोजन और पानी की तलाश में मानव-आधारित क्षेत्रों में आ जाती हैं।

इसके अलावा, बढ़ती हुई जनसंख्या, सड़कें, और फैक्ट्रियाँ वन्यजीवों के रास्ते में आ जाती हैं और इसके कारण जानवरों का स्वाभाविक प्रवास प्रभावित होता है। इस प्रकार के हालात में, वन विभाग के लिए यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि वे उन क्षेत्रों में अपने प्रयासों को तेज़ करें जहां वन्यजीवों का आना संभावित हो।

FAQ

क्या जयपुर में आबादी में पहुंचे लेपर्ड का रेस्क्यू सफल रहा?
नहीं, अंधेरे और फैक्ट्री के आसपास झाड़ियों के कारण वन विभाग का रेस्क्यू ऑपरेशन सफल नहीं हो पाया।
जंगल छोड़ लेपर्ड जयपुर शहर में क्यों आया?
लेपर्ड जैसे जंगली जानवरों का शहरों में आना आमतौर पर उनके प्राकृतिक आवासों के नष्ट होने और भोजन की तलाश में होता है।
वन विभाग ने जयपुर में आबादी में पहुंचे लेपर्ड का रेस्क्यू क्यों नहीं किया?
अंधेरे और फैक्ट्री के आस-पास झाड़ियों की वजह से फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को लेपर्ड का सही स्थान और मूवमेंट ट्रैक करने में कठिनाई हुई, जिसके कारण रेस्क्यू ऑपरेशन में देरी हुई।
जंगली जानवरों के शहरों में आने की घटनाओं से बचने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
वन विभाग और प्रशासन को शहरी क्षेत्रों में वन्यजीवों के घुसने से पहले जागरूकता फैलाने और आवश्यक सुरक्षा उपायों को बढ़ाने की जरूरत है।

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