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Photograph: (The Sootr)
राजस्थान (Rajasthan) के जोधपुर जिले में राइट टू एजुकेशन (RTE) के तहत एक बड़ा घोटाला सामने आया है। तिंवरी पंचायत समिति के अंतर्गत दो निजी स्कूलों को 56 लाख रुपये तक का भुगतान किया गया, जबकि ये दोनों स्कूल अस्तित्व में ही नहीं थे। यह मामला शिक्षा विभाग के फिजिकल वेरिफिकेशन (physical verification) और अन्य कई कार्यों पर सवालिया निशान खड़ा कर रहा है। इस घोटाले ने न केवल विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं, बल्कि यह राजस्थान के सरकारी स्कूलों और उनके साथ जुड़े तमाम व्यवस्थाओं में भ्रष्टाचार के प्रति जागरूकता भी उत्पन्न कर दी है।
कैसे हुआ RTE घोटाले का खुलासा
शिकायत मिलने के बाद प्रारंभिक जांच में यह पाया गया कि तिंवरी में ज्ञानशाला तिंवरी और गहलोत पब्लिक स्कूल जैसे स्कूल अस्तित्व में नहीं हैं। हालांकि, इन स्कूलों को 56 लाख रुपये का भुगतान किया गया था। जांच में यह भी सामने आया कि स्कूलों के नाम पर जो सूचनाएं पीएसपी पोर्टल (PSP Portal) पर दर्ज थीं, वे कूटरचित (forged) थीं। इन स्कूलों ने कूटरचित भौतिक सत्यापन रिपोर्ट और जाली मान्यता की कॉपी भी अपलोड कर रखी थी।
इतना ही नहीं, बिलों का जेनरेशन भी उच्चस्तरीय अधिकारियों द्वारा स्वतः किया गया था। इस तरह के बड़े फर्जी भुगतान के कारण विभाग के निचले और ऊपरी स्तर के कर्मचारियों पर संदेह उत्पन्न हो गया है। शिकायत सामने आने के बाद पीएसपी पोर्टल से रिकार्ड गायब होने की भी सूचना मिली है। इस मामले में जांच और कार्यवाही की दिशा में प्रारंभिक शिक्षा विभाग ने बड़े कदम उठाए हैं।
शिक्षा विभाग के कार्यवाहक संयुक्त निदेशक, जोधपुर संभाग, सीमा शर्मा (Seema Sharma) ने कहा कि इस मामले की जांच की जाएगी और जो भी दोषी पाए जाएंगे, उन्हें बख्शा नहीं जाएगा। उनका कहना था कि सरकार शिक्षा के क्षेत्र में किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करेगी और सभी दोषियों को सजा दिलवाई जाएगी।
शिक्षा विभाग की जांच शुरू
इस घोटाले की गंभीरता को देखते हुए राजस्थान के शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने जांच शुरू कर दी है। प्रारंभिक तौर पर डीईओ (डीईओ प्रारंभिक शिक्षा मुख्यालय) और अन्य संबंधित अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। तिंवरी के स्कूलों को भुगतान किए गए इस बड़े घोटाले के बाद, उच्चस्तरीय अधिकारियों ने मामले को अपने पास लिया और जांच शुरू कर दी।
विभाग के संयुक्त निदेशक सीमा शर्मा (Seema Sharma) ने 3 दिन के भीतर जांच कराने का आदेश दिया है। जांच में यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि किस स्तर पर घोटाले की शुरुआत हुई थी और इसमें शामिल जिम्मेदार अधिकारी कौन हैं।
कोषाधिकारी को हुआ संदेह तो खुला मामला
यह घोटाला तब सामने आया जब जोधपुर के कोषाधिकारी दिनेश कुमार ने एक पत्र में लिखा कि तिंवरी के ज्ञानशाला स्कूल को 14,76,533 रुपये का भुगतान किया गया था, जो बाद में बैंक खाता बदलकर अन्य खातों में स्थानांतरित किया गया। कोषाधिकारी ने इस ट्रांजैक्शन पर संदेह जताया और इसके बाद उन्होंने इस मामले को उठाया।
इस मामले में संदेह उत्पन्न होने पर डीईओ प्रारंभिक शिक्षा ने भुगतान रोकने के लिए कोषाधिकारी को पत्र भेजा और पुष्टि की कि स्कूल की सत्यता पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। इस प्रकार, यह पूरी प्रक्रिया एक गहरी जांच का हिस्सा बन गई है।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) के बारे में जानेंशिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE)
आयु सीमा
मूल अधिकार
संविधान का अनुच्छेद 21(ए)
कानून की शुरुआत
मुख्य उद्देश्य
नियमित सर्वेक्षण
"निःशुल्क और अनिवार्य"
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और भी स्कूलों की होगी जांच
शिकायत मिलने के बाद, शिक्षा विभाग ने जोधपुर में और भी स्कूलों की जांच कराने का निर्णय लिया है। तिंवरी ब्लॉक के साथ-साथ राजस्थान के अन्य जिलों में भी आरटीई घोटाले की जांच की जाएगी।
इससे पहले भी आरटीई घोटाला सामने आया था, जिसमें सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का भुगतान निजी स्कूलों को कर दिया गया था। ऐसे में इस नए घोटाले ने शिक्षा विभाग के लिए एक और चुनौती पेश की है।
क्या है आरटीई घोटाला?
राइट टू एजुकेशन (RTE) एक ऐसा कानून है जिसके तहत हर बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्राप्त है। इस कानून के तहत, सरकार निजी स्कूलों को भी उस बच्चों के लिए भुगतान करती है, जो सरकारी स्कूलों में नामांकित नहीं होते।
आरटीई के तहत, निजी स्कूलों को शिक्षा के लिए भुगतान किया जाता है, लेकिन यदि सरकारी विभाग के अधिकारियों द्वारा इस भुगतान में घोटाला किया जाता है, तो यह न केवल सरकारी धन की बर्बादी है, बल्कि यह बच्चों के भविष्य को भी प्रभावित करता है। इस घोटाले ने शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलाव की आवश्यकता को उजागर किया है।
फर्जी स्कूलों की जांच शुरू
इस घोटाले में जिन फर्जी स्कूलों की भूमिका है, उनकी जांच शिक्षा विभाग ने शुरू कर दी है। इस तरह के फर्जी स्कूलों का उद्देश्य सरकारी धन को गलत तरीके से हासिल करना होता है। ये स्कूल न केवल भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं, बल्कि शिक्षा प्रणाली को भी नुकसान पहुंचाते हैं।
फर्जी स्कूलों का पकड़ में आना एक अच्छी शुरुआत है, लेकिन इसे रोकने के लिए सरकार को सख्त नियम और प्रक्रियाएं लागू करनी चाहिए।
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