SMS हॉस्पिटल में आग : आखिर मौतों के लिए कौन जिम्मेदार, जवाब तलाशना जरूरी

राजस्थान में जयपुर के एसएमएस अस्पताल के ट्रोमा सेंटर में आग से 8 मरीजों की मौत के बाद यह सवाल खड़ा हुआ है कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है। क्या अस्पताल की अव्यवस्थाएं, तकनीकी खामियां या प्रशासन की लापरवाही इस हादसे के लिए जिम्मेदार है?

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Gyan Chand Patni
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मुकेश शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार

लाख टके का सवाल है कि राजस्थान में जयपुर के एसएमएस अस्पताल के ट्रोमा सेंटर में आग से 8 मरीजों की मौत के लिए कौन जिम्मेदार है। यह सवाल इसलिए भी बड़ा है, क्योंकि यह घटना राजस्थान के सबसे बड़े अस्पताल में हुई है। इस अस्पताल पर राजस्थान के साथ ही पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के मरीजों के इलाज का भी भार है।

एसएमएस अस्पताल में 2100 सामान्य और 400 आईसीयू बैड हैं। साल में किसी भी दिन यहां औसतन तीन से चार हजार मरीज भर्ती रहते हैं। हर दिन की ओपीडी करीब 10 हजार मरीजों की होती है। सुबह से रात तक हर दिन अस्पताल परिसर में 30 से 40 हजार का फुटफॉल होता है। इसलिए, अस्पताल में 8 मरीजों की मौत को सामान्य नहीं माना जा सकता है।

आखिर जिम्मेदारी किसकी

बड़ा सवाल यह है कि एसएमएस हॉस्पिटल अग्निकांड के लिए अकेले डॉक्टर जिम्मेदार हैं या फिर अस्पताल की अव्यवस्थाओं के लिए सिस्टम से जुड़े अफसर, पीडब्ल्यूडी इंजीनियर अथवा चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री। हादसे की जिम्मेदारी तय करना इसलिए जरूरी है कि प्रदेश के सबसे बड़ा यह अस्पताल कुछ सालों से घोर अव्यवस्थाओं का शिकार है। इन अव्यवस्था के लिए कोई पक्ष कैसे अपनी जिम्मेदारी से बच सकते हैं।    एसएमएस हॉस्पिटल 

फिर इंजीनियरों का क्या काम

सामान्य बात है कि कोई भी आम व्यक्ति जब अपना मकान बनाता है तो बिजली के शार्ट सर्किट से बचने के लिए बढ़िया से बढ़िया क्चालिटी के बिजली उपकरण लगाता है। तो फिर जिस बि​ल्डिंग को बनाने में हर तरह के इंजीनियरों की फौज लगती हो, वहां शार्ट सर्किट कैसे होता है? लाखों रुपए महीने वेतन लेने ये इंजीनियरों करते क्या हैं? क्या इन इंजीनियरों को पता नहीं होता कि एसएमएस अस्पताल की आईसीयू में बिजली की खपत कितनी होती है। क्या वे अस्पताल के लोड के अनुरूप आवश्यक बिजली उपकरण लगाने में अक्षम हैं? आखिर इन सबकी निगरानी कौन करता है? 

निगरानी नियमित क्यों नहीं होती

बिजली के तार व केबल तथा अन्य सामान आदि बार-बार नहीं लगतें इसलिए इतने बड़े अस्पताल में उच्चतम गुणवत्ता वाले तार व केबल लगाना जरुरी होता है। आईसीयू में तो विशेष रुप से इसका ध्यान रखना होता है। क्यों कि यहां मरीजों के काम आने वाली सभी आधुनिक मशीनें बिजली से ही चलती हैं। यह सभी जानते हैं कि एसएमएस अस्पताल की आईसीयू में बैड कभी खाली नहीं रहते बल्कि यहां तो आईसीयू में बिस्तर लेने के लिए बड़ी-बड़ी सिफारिश करवानी पड़ती हैं। इसके बावजूद यदि आईसीयू में शा​र्ट सर्किट होता है तो निश्चित तौर पर बिजली के तार व केबल ​सहित सॉकेट आदि की घटिया गुणवत्ता के कारण ही हुआ है। 

Fire in SMS Hospital जिम्मेदारों का लगाया जाए पता

ऐसे में यह पता लगाना जरूरी है कि यह इंजीनियर और तकनीकी कर्मचारी—अधिकारी अपना काम सही प्रकार से क्यों नहीं कर पाते हैं? हालांकि, SMS हॉस्पिटल में आग की घटना के लिए वहां के कुछ अधिकारियों को निलंबित किया है। लेकिन, सवाल यही है कि अस्पताल में किसी डॉक्टर या नर्सिंग स्टॉफ से यह आशा करना उचित नहीं है कि वे मरीजों के उपचार के दीगर भवन देखरेख और उससे जुड़ी व्यवस्थाओं को भी संभाल लेंगे। कुछ डॉक्टरों का सुझाव है कि उन्हें मरीजों के उपचार तक सीमित रखा जाए और अस्पताल की अन्य व्यवस्थाओं के लिए अलग से मैनेजर की नियुक्त की जाए। यह जरूरी भी है। लेकिन, सरकार इस विषय पर अधिक गंभीर नहीं है।

अस्पतालों में प्रबंधक रखना जरूरी

एसएमएस अस्पताल के पूर्व सुपरिटेडेंट डॉ. एलसी शर्मा का कहना है कि इतने विशाल अस्पताल में हर प्रकार की व्यवस्था बनाए रखने का जिम्मा डॉक्टरों को देना गलत है। डॉक्टरों का मुख्य और मूल काम मरीजों का इलाज करना है और उनसे वही काम करवाना भी चाहिए। दूसरे सभी काम के लिए सरकार को पर्याप्त मात्रा में मैनेजर और तकनीकी कर्मचारी लगाने चाहिएं। वे ही अस्पताल में साफ—सफाई से लेकर बिजली, पानी, सुरक्षा सहित दूसरे कार्यों की देखरेख करें। एक रिटायर्ड चिकित्सा अधिकारी के अनुसार एसएसएस जैसे अस्पताल में सभी प्रकार के उपकरणों सहित दूसरे संयत्रों के साजो—सामान की देखरेख व अपडेशन के लिए साल में कम से कम चार से छह बार विशेष अभियान होना चाहिए। डॉक्टर अजय पुरोहित का भी सुझाव है कि अस्पताल प्रबंधन के लिए अलग से मैनेजर रखे जा सकते हैं ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो। 

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