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thesootr : जर्जरता देखिए कि रस्सी बांधकर बंद करना पड़ा स्कूल।
JAIPUR. झालावाड़ जिले के पीपलवाड़ी गांव में हुए दर्दनाक हादसे ने पूरे राजस्थान को झकझोर दिया है। एक स्कूल की छत गिरने से 7 मासूम बच्चों की मौत हो गई और 21 घायल हुए। इन बच्चों की चीखें, उनके माता-पिता की बेबसी, घायल बच्चों का दर्द...यह सब सरकार की बेशर्म लापरवाही और संवेदनहीन प्रशासन का सच हैं।
जब स्कूल की छत गिरती है तो सिर्फ ईंट-पत्थर नहीं गिरते, बल्कि पूरा सिस्टम ढह जाता है। हर जिम्मेदार अधिकारी का चेहरा झूठ उजागर होता है। मासूम जो हंसते-खेलते थे, उनके शवों के सामने खामोशी से खड़ा हर अधिकारी मौत की इस सजा का हिस्सा बन जाता है। हम हर साल आजादी की तो वर्षगांठ मानते हैं, लेकिन सवाल है कि हम ऐसी अव्यवस्था से कब आजाद हो पाएंगे?
राजस्थान में शिक्षा व्यवस्था पर बीते दस सालों में यानी 2015-16 से लेकर वर्ष 2025-26 तक 4 लाख 34 हजार 360 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। इसी में से स्कूल भवनों के निर्माण पर 9 हजार 998 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। यानी ये पैसा सिर्फ स्कूल बनाने और उनके जीर्णोद्धार में लगाया गया। वहीं, ट्राइबल स्कूलों के लिए भी बजट पर्याप्त है।
ढाई लाख कमरों को मरम्मत की दरकार
अब हकीकत यह है कि अरबों रुपए के खर्च के बावजूद प्रदेश में 5 हजार 500 स्कूल ऐसे हैं, जिनकी हालत इतनी खराब है कि उन्हें तुरंत जमींदोज करने की जरूरत है।
झालावाड़ स्कूल हादसे के बाद सरकार ने प्रदेश के 70 हजार स्कूलों में से 63 हजार का सर्वे कराया है। इसी में पता चला है कि 85 हजार क्लासरूम जर्जर हैं। ढाई लाख कमरों को मरम्मत की जरूरत है। 15 हजार स्कूलों के टॉयलेट पूरी तरह खराब हैं। 25 हजार स्कूलों को बड़े पैमाने पर मरम्मत की जरूरत है।
10 साल में शिक्षा पर इतना बजट हुआ मंजूर...
(नोट: बजट की राशि और CONSTRUCTION पर खर्च करोड़ रुपए में) |
30 साल पुरानी बिल्डिंगें
राजस्थान में इस वक्त जो ज्यादातर जर्जर स्कूल हैं, वे 30 साल से भी पुराने हैं। सरकार हर साल प्रति स्कूल सिर्फ 10 हजार रुपए से लेकर 15 हजार रुपए का मेंटेनेंस बजट देती है, जो बिजली-पानी, सफाई और स्टेशनरी में ही खत्म हो जाता है।
इसी का नतीजा है कि स्कूलों की दीवारें झड़ रही हैं। छतें दरक रही हैं। बच्चे हर दिन मौत के साए में पढ़ने को मजबूर हैं, जबकि स्कूल बिल्डिंगों की मरम्मत और मजबूत निर्माण के लिए यह रकम मुंह तक पानी की बूंद भर भी नहीं है। सरकार अब 30 दिन में पीडब्ल्यूडी और कलेक्टरों के साथ स्ट्रक्चरल ऑडिट कराने की योजना बना रही है, लेकिन सवाल यह है कि जब खतरा अभी मौजूद है तो इंतजार क्यों?
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने बताया कि 1 हजार 936 स्कूलों की मरम्मत के लिए 170 करोड़ रुपए और 7 हजार 500 स्कूलों के लिए 150 करोड़ रुपए स्वीकृत किए हैं। यह रकम जर्जर स्कूलों की वास्तविक संख्या के सामने कतरा सी है। |
सच्चाई उजागर करता हादसा
झालावाड़ जिले का पीपलवाड़ी हादसा राजस्थान की शिक्षा व्यवस्था की अंगभेदी, भ्रष्ट और संवेदनहीन सच्चाई को उजागर करता है। करोड़ों रुपए के खर्च के बावजूद हजारों बच्चे हर हर दिन खंडहर के समान स्कूल भवनों में मौत के खतरे के बीच पढ़ाई कर रहे हैं।
इस जर्जर व्यवस्था में मासूमों की मौत की गूंज हर गांव, हर शहर में सुनाई दे रही है। बच्चों की चीखें और रोते हुए माता-पिता की बेबसी यह सवाल खड़ा करती है कि क्या सरकार जिम्मेदारी से आंखें मूंदकर बैठी हुई है? स्कूल भवनों की मरम्मत के लिए स्वीकृत रकम, जर्जर स्कूलों की संख्या के सामने एक बूंद के बराबर भी नहीं है। यह सिर्फ दिखावा है, जनता के सामने सरकार का शर्मसार चेहरा है।
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर का गृह जिला, जहां शिक्षा का मतलब जर्जर स्कूल भवन
अभी आपने ऊपर 10 बरसों में शिक्षा व्यवस्था पर खर्च हुए पैसों की हकीकत जानी। अब झालावाड़ हादसे के बाद 'द सूत्र' ने राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर के गृह जिले में ही स्कूल की पड़ताल की है। इसमें चौंकाने वाली स्थिति सामने आई है।
शिक्षा मंत्री दिलावर के गृह जिले कोटा में सरकारी स्कूलों की इमारतें बुरी हालत में हैं। उनके निर्वाचन क्षेत्र रामगंजमंडी में आने वाले राईखेड़ा का उच्च प्राथमिक स्कूल खुद दुर्दशा का शिकार है। राईखेड़ा का उच्च प्राथमिक स्कूल दुर्दशा का शिकार है।
स्थानीय लोग बताते हैं कि बारिश में स्कूल की छतें टपकती थी तो दीवारों से प्लास्टर गिर रहा था। स्कूल में 4 क्लासरूम और एक बरामदा है। इनमें से दो क्लासरूम और बरामदा जर्जर हो चुका है। बरसात के दिनों में प्लास्टर गिरने का खतरा इतना अधिक है कि स्कूल प्रशासन ने इन हिस्सों को पूरी तरह बंद कर रखा है।
राईखेड़ा के ग्रामीण कहते हैं कि उन्हें यह कहते हुए शर्म आती है कि यह शिक्षा मंत्री के निर्वाचन क्षेत्र का स्कूल है। स्कूल के शाला प्रधान रवि वर्मा बताते हैं कि भवन मरम्मत के लिए कई बार विभाग को प्रस्ताव भेजे गए, लेकिन स्कूल की सूरत नहीं बदली। हम डर के साए में बच्चों को पढ़ाते थे। आपको बता दें कि शिक्षा मंत्री के निर्वाचन क्षेत्र रामगंजमंडी में छह जर्जर स्कूलों से बच्चों को अन्य भवनों में शिफ्ट किया गया है।
पूरे कोटा जिले के स्कूलों का हाल खराब
स्कूलों की बुरी हालत का यह दृश्य शिक्षा मंत्री मदन दिलावर के पूरे गृह जिले कोटा में दिखाई देता है। न तो कोटा शहर में स्कूलों के हालत सही हैं और न ही गांवों में। कोटा जिले में 1 हजार 77 स्कूल हैं, जिनमें दो लाख से अधिक बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। शिक्षा विभाग के एक वरिठ अधिकारी के अनुसार, जिले में 28 स्कूलों को जर्जर स्थिति में चिह्नित किया गया है। अब सरकार के आदेश पर जर्जर स्कूलों को बंद कर दिया गया है।
ओम बिरला का भी कोटा
कोटा वह इलाका है, जहां से देश की सबसे बड़ी संसदीय पंचायत यानी लोकसभा के दूसरी बार स्पीकर बने ओम बिरला भी जीतकर आते हैं। बिरला कोटा दक्षिण से तीन बार विधायक और कोटा-बूंदी लोकसभा क्षेत्र से तीन बार सांसद चुने गए हैं। स्कूलों भवनों की यह दुर्गति शिक्षा मंत्री मदन दिलावर के साथ ही ओम बिरला की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करती है।
स्कूलों पर टंगे हैं खतरे के बोर्ड
द सूत्र ने अपनी पड़ताल में पाया कि कोटा शहर और उसके आसपास के क्षेत्रों में स्कूल भवनों की हालत चिंताजनक बनी हुई है। केबलनगर क्षेत्र में सीनियर सेकंडरी स्कूल में नौ क्लासरूम, बरामदा और शौचालय पूरी तरह जर्जर हो चुका है।
झालावाड़ स्कूल हादसे के बाद इस स्कूल को बंद कर दिया गया है। इससे पहले स्कूल के जर्जर बरामदे को रस्स्यिों से बांध रखा था, जिससे स्कूल के बच्चे उस तरफ नहीं आए। प्रशासन ने ‘खतरा’ लिखवाकर चेतावनी बोर्ड भी लगा दिया था। वहीं, सुल्तानपुर ब्लॉक शिक्षा कार्यालय का खुद हाल बेहाल है। यहां छतें टपकती हैं। दीवारों में करंट दौड़ता है। रिकार्ड बचाने के लिए तिरपालों का सहारा लिया जा रहा है।
कोटा शहर में 10 स्कूल भवनविहीन
कोटा शहर के बरड़ा बस्ती क्षेत्र में राजकीय प्राथमिक स्कूल का हाल खराब है। इस स्कूल का कोई स्थायी भवन नहीं है। वर्तमान में यह यूआईटी के कियोस्क में तीन छोटे कमरों में चल रहा है।
सूरसागर क्षेत्र में राजकीय प्राथमिक स्कूल 2001 से नगर निगम के सामुदायिक भवन में संचालित है। दो दशक बीत जाने के बावजूद इस स्कूल का अपना भवन नहीं बन पाया है।
किशोरपुरा क्षेत्र में स्थित राजकीय सीनियर सेकंडरी स्कूल बरसों से जेठियों के अखाड़े की जमीन पर चल रहा है। स्कूल के पास न तो अपना भवन है और न ही पर्याप्त कक्षा-कक्ष। टीनशेड के नीचे डिवाइड कर अलग-अलग कक्षाएं चलाई जाती हैं। कोटा शहर में 10 स्कूलों के पास भवन नहीं है।
ये स्कूल खराब क्यों होते हैं? क्योंकि नेता-अफसरों के बच्चे तो विदेश में पढ़ते हैं...
राजस्थान में नेताओं और अफसरों को सरकारी स्कूलों और ऐसे दूसरे शैक्षणिक संस्थानों की हालत से कोई लेना-देना नहीं है। इसका सीधा कारण है कि इनके अपने बच्चे तो कभी इन खंडहरनुमा स्कूलों में पढ़े ही नहीं।
ये बड़े-बड़े महंगे स्कूलों में पढ़ते हैं, जहां एसी क्लास रूम, चमकते फर्श और ऊंची-ऊंची दीवारें होती हैं। पढ़ाई पूरी होते ही इनमें से ज्यादातर बच्चे विदेश रवाना हो जाते हैं। लंदन, न्यूयॉर्क, टोरंटो या सिडनी जैसी यूनिवर्सिटियों में दाखिला लेते हैं और वहां की आलीशान जिंदगी में खो जाते हैं।
राजस्थान में ऐसे अफसरों और नेताओं की लंबी-चौड़ी लिस्ट है, जिनके बच्चे तो छोड़िए, खुद भी उन्होंने विदेश में पढ़ाई की है। लेकिन अपने राज्य की शिक्षा व्यवस्था सुधारने में इनमें से किसी की रत्ती भर दिलचस्पी नहीं है। इनकी नजर में सरकारी स्कूल सिर्फ दिखावे की चीज हैं।
कभी किसी कार्यक्रम में फीता काटना, बच्चों को टॉफियां बांटकर फोटो खिंचवा लेना और भाषण झाड़कर निकल लेना। बच्चों की टपकती छतों के नीचे बैठकर पढ़ने की मजबूरी, टूटी बेंचों पर घंटों गुजारना या गंदे और बदबूदार टॉयलेट इस्तेमाल करना, ये सब इनके लिए सिर्फ आंकड़े हैं, जिन पर दो मिनट की सहानुभूति जताकर फाइल बंद कर दी जाती है।
देखिए द सूत्र की यह पड़ताल...
सचिन पायलट: बीए आईएमटी गाजियाबाद, एमबीए व्लार्हटन कॉलेज, पेनसिलवेनिया यूनिवर्सिटी, ब्रिटेन।
दिव्या मदेरणा: कांग्रेस के दिग्गज नेता दिवंगत परसराम मदेरणा की पोती और पूर्व मंत्री दिवंगत महिपाल मदेरणा की बेटी हैं और नॉटिंघम, ब्रिटेन से हायर एजुकेशन किया है।
राघवेंद्र मिर्धा: पूर्व मंत्री व विधायक हरेंद्र मिर्धा के बेटे हैं। लंदन से इंटरनेशनल व ट्रेड में मास्टर किया है।
जितेद्र सिंह अलवर: जर्मनी से आटोमोबाईल इंजीनियरिंग की है।
अनिरुद्ध सिंह: भरतपुर पूर्व राजपरिवार और पूर्व मंत्री विश्वेद्र सिंह के बेटे हैं और ब्रिटेन से बीएसएसी व एमएससी की है।
रीटा चौधरी: झुन्झुनू जिले के मंडावा विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं और अमेरिका की न्यूपोर्ट यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है।
दुष्यंत सिंह: झालावाड़ से लगातार पांचवीं बार सांसद व पूर्व सीएम वसुधंरा राजे के पुत्र हैं। अमेरिका और स्विट्जरलैंड से होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया है।
नोक्षम चौधरी: कामां से बीजेपी विधायक है। लग्जरी ब्रांड मैनेजेमेंट में इटली के मिलान से मास्टर डिग्री और लंदन से कम्यूनिकेशन में पीजी हैं।
जगत सिंह: पूर्व मंत्री नटवर सिंह के बेटे हैं और नदबई से विधायक हैं। इन्होंने ब्रिटेन की बकिंघम यूनिवर्सिटी से बीबीए किया है।
गजेंद्र सिंह खींवसर: राजस्थान सरकार में चिकित्सा व स्वास्थ्य मंत्री हैं और कनाडा से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में ग्रेजुएशन किया है।
धनंजय सिंह खींवसर: चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह के बेटे हैं और वर्तमान में आरसीए सदस्य हैं। इन्होंने स्विट्जरलैंड से होटल मैनेजमेंट में कोर्स किया है।
मानवेंद्र सिंह: पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह के बेटे हैं और उन्होंने लंदन व अमेरिका से पढ़ाई की है।
पराक्रम सिंह राठौड़: पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह राठौड़ के बेटे और आरसीए मेंबर है और लंदन से पढ़कर आए हैं।
इन आईएएस अधिकारियों के बच्चे भी विदेश में पढ़े या पढ़ चुके...
- शिखर अग्रवाल, आईएएस
- अजिताभ शर्मा, आईएएस
- मनीष त्रिपाठी, आईपीएस
- जेके सोनी, आईएएस
- आलाेक, आईएएस
- संदीप वर्मा, आईएएस
- विजयपाल सिंह, रिटायर आईएएस
- पीके गोयल, रिटायर आईएएस
- उमरदीन खान, रिटायर आईएएस
- पीके गोयल, रिटायर आईएएस
- पवन अरोड़ा, रिटायर आईएएस
- संजय दीक्षित, रिटायर आईएएस
और लीजिए, विदेश योजना में अफसरों के बच्चे
दूसरा, खास यह भी है कि प्रदेश के प्रतिभावान बच्चों को विदेश में पढ़ाने के लिए पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार की ओर से 2021 में राजीव गांधी स्कॉलरशिप फॉर एकेडमिक में एक्सीलेंस योजना शुरू की गई थी। इस योजना में अब 30 फीसदी बच्चे सरकारी अफसरों के पढ़ रहे हैं। यह अफसरों के लिए फायदेमंद साबित हुई है।
दरअसल, सरकार ने इस योजना में सालाना आय का दायरा 8 लाख रुपए से बढ़ाकर 25 लाख या इससे अधिक कर दिया है। इसके बाद 2023 में कुल 245 स्टूडेंट्स का चयन हुआ, जिनमें से 14 आईएएस, आईपीएस सहित 73 अफसरों के बच्चे हैं।
2023 में विधानसभा चुनाव के बाद सत्ता में आई भाजपा सरकार ने इस योजना का नाम स्वामी विवेकानंद के नाम कर दिया। योजना में लाभान्वित छात्रों की संख्या बढ़ा कर 500 कर दी है। इस योजना को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। इस पर अदालत से स्टे है।
राजस्थान शिक्षा विभाग | झालावाड़ हादसा | राजस्थान शिक्षा बजट |
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