बीकानेर राजघराने की राजकुमारी की इस सीट पर कांग्रेस को नहीं मिल रहा तोड़, BJP में भी कई नेताओं की नजरें

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The Sootr CG
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बीकानेर राजघराने की राजकुमारी की इस सीट पर कांग्रेस को नहीं मिल रहा तोड़, BJP में भी कई नेताओं की नजरें

अविनाश व्यास, BIKANER. विधानसभा चुनाव में जीत को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां जमीनी स्तर पर तैयारियां शुरू कर चुकी हैं। कांग्रेस जहां पिछले सालों की परंपरा को तोड़ने की बात कहते हुए इस बार सरकार रिपीट करने की बात कह रही है तो वहीं भाजपा नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे लाकर डबल इंजन की सरकार बनाने और प्रदेश में कांग्रेस के कुशासन को खत्म करने की बात कह रही है। इन सबके बीच कांग्रेस की नजर उन सीटों पर है, जहां पिछले तीन चुनावों में कांग्रेस नहीं जीती है, वहीं भाजपा में ऐसी सीटों पर बड़े नेताओं की भी नजरें हैं। ऐसी ही एक सीट है- बीकानेर विधानसभा पूर्व हांसी बीकानेर रियासत की पूर्व राजकुमारी सिद्धि कुमारी लगातार तीसरी बार विधायक हैं। 



2008 में परिसीमन से बनी नई सीट



2008 में हुए परिसीमन के बाद बीकानेर पूर्व विधानसभा सीट अस्तित्व में आई। कोलायत विधानसभा और बीकानेर पश्चिम विधानसभा के कुछ हिस्सों को मिलाकर नई बनी यह सीट भाजपा का अभेद्य दुर्ग बन गई है। जहां सीधे तौर पर कांग्रेस का पार पाना मुश्किल नजर आता है।



कांग्रेस का हर प्रयोग फेल, सिद्धि की हैट्रिक



दरअसल करीब साढ़े 14 साल पहले बनी इस नई सीट पर कांग्रेस ने हर चुनाव में एक नया प्रयोग किया और एक तरह से कांग्रेस के लिए यह सीट प्रयोगशाला बन गया, लेकिन कांग्रेस के हर प्रयोग पर सिद्धि भारी पड़ीं और जीत की हैट्रिक की। कांग्रेस ने हर चुनाव में अलग-अलग जाति वर्ग के उम्मीदवार को मैदान में उतारा। इससे जीत- हार के अंतर में फर्क आया, लेकिन जीत नसीब नहीं हुई। 



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राजपरिवार और सिद्धि के प्रति विश्वास



तीन बार से भाजपा की सिद्धि कुमारी लगातार यहां से चुनाव जीत रही हैं। ऐसे में इस सीट को परंपरागत रूप से भाजपा का कहा जा सकता है, क्योंकि पहले सीट का अधिकांश भाग कोलायत इसी विधानसभा क्षेत्र में आता था। व्यक्तिगत रूप से बीकानेर राजपरिवार और सिद्धि कुमारी के प्रति यहां के लोगों का लगाव और विश्वास भी सिद्धि कुमारी की जीत का एक बड़ा कारण है।



कांग्रेस के मुद्दे, वही लेकिन चेहरा तय नहीं



सिद्धि कुमारी को लेकर विपक्ष के आरोपों की अगर बात की जाए तो विधानसभा और क्षेत्र में सक्रियता का मुद्दा हर बार कांग्रेस चुनाव में उठाती है, लेकिन इन मुद्दों को उठाने के बाद भी जनता सिद्धि कुमारी पर भरोसा जताती रही है और पिछले चुनाव में यह बात साबित भी हुई है। ऐसे में सिद्धि कुमारी के मुकाबले इस बार भी कांग्रेस की ओर से ज्यादा चेहरे दावेदार के रूप में मैदान में नहीं हैं। बीकानेर शहर कांग्रेस के अध्यक्ष यशपाल गहलोत को संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा है। दरअसल, पिछले विधानसभा चुनाव में यशपाल को पहले पश्चिम और बाद में पूर्व विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया गया था, लेकिन बाद में दोनों की जगह से उनका टिकट काट दिया गया। ऐसे में इस बात की चर्चा है कि यशपाल पर पार्टी दांव खेल सकती है। इसके अलावा कांग्रेस से ही अल्पसंख्यक वर्ग से गुलाम मुस्तफा ' बाबू भाई' का नाम भी मजबूती के साथ लिया जा रहा है। इसके अलावा निर्दलीय पार्षद मनोज विश्नोई के नाम को लेकर भी चर्चा है।



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कांग्रेस की रणनीति धरातल पर नहीं आ रही नजर



कहा यह भी जा रहा है कि कांग्रेस इस बार उन सीटों पर फोकस कर रही है जिन पर तीन चुनावों में कांग्रेस नहीं जीत पाई है। ऐसे में बीकानेर विधानसभा पूर्व हुई कांग्रेस की सूची में शामिल है, लेकिन ऐसा कुछ भी यहां नजर नहीं आ रहा है। किसी भी संभावित चेहरे को आगे रखकर कांग्रेस की सक्रियता नहीं दिख रही है। ऐसे में अब देखने वाली बात होगी कि सितंबर में पहली सूची जारी करने की कांग्रेस की कवायद में बीकानेर पूर्व विधानसभा सीट भी शामिल है या नहीं। गौर करने वाली बात इसलिए भी है कि पहले चुनाव में कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ता को टिकट दिया, लेकिन इसके बाद दोनों चुनाव में कुछ घंटे पहले पार्टी में आए नेताओं को उम्मीदवार बनाया गया। जिनमें 2013 में एक ही रात में भाजपा से कांग्रेस में आए गोपाल गहलोत को टिकट दिया तो वहीं 2018 में नोखा के पूर्व विधायक रहे कन्हैयालाल झंवर को कांग्रेस में शामिल कर टिकट दिया।



राठौड़ से लेकर वैभव तक के नाम चर्चा में



वैसे तो विधायक सिद्धि कुमारी अपनी टिकट और जीत को लेकर किसी तरह का कोई बयान नहीं देती हैं, लेकिन अंदर खाने में कहा जाता है कि सिद्धि अपनी टिकट को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त हैं। वहीं भाजपा से इस बार कई दूसरे चेहरे भी दावेदारी करते हुए नजर आ रहे हैं जो स्थानीय स्तर पर पार्टी के दिन के दौरान शहर में होर्डिंग, बैनर पोस्टर लगाकर खुद की दावेदारी जता रहे हैं। वहीं बड़े नेताओं की बात करें तो नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ का नाम भी इस सीट पर संभावित दावेदार के रूप में लिया जाता है, लेकिन राठौड़ की ओर से अभी तक इस तरह की कोई बात नहीं कही गई है। कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत के नाम को लेकर भी कांग्रेसी खेमे में कई बार चर्चा होती नजर आती है। 



माली, वैश्य, मुस्लिम और राजपूत बहुल सीट



बात की जाए जाति आधारित प्रभाव की तो विधायक सिद्धि कुमारी राजपूत वर्ग से आती हैं। वहीं कांग्रेस ने लगातार पिछले तीन चुनावों में अलग-अलग जाति से उम्मीदवार उतारे हैं। पहले चुनाव में अल्पसंख्यक मुस्लिम वर्ग डॉक्टर तनवीर मलावत, दूसरे चुनाव में भाजपा से कांग्रेस में आए माली समाज के गोपाल गहलोत और तीसरे चुनाव में नोखा से लाकर कांग्रेस की टिकट देकर वैश्य समाज से आने वाले कन्हैयालाल झंवर को उम्मीदवार बनाया। जिनमें कन्हैयालाल झंवर ने मजबूती से चुनाव लड़ा और दो बार से बड़े अंतर से जीत रही सिद्धि के अंतर को काफी हद तक कम किया, लेकिन वे भी जीत नहीं पाए। 



वसुंधरा कैंप से मानी जाती हैं सिद्धि



वैसे तो विधायक सिद्धि कुमारी की छवि निर्विवाद रही है और पार्टी संगठन और कार्यकर्ताओं में भी उनको लेकर किसी तरह का कोई विवाद नहीं है। लेकिन विधायक सिद्धिकुमारी को पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से कनेक्ट माना जाता है। बीकानेर में इस बार दावेदारी कर रहे कई अधिकतर नेता स्थानीय सांसद और केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल कैंप से आते हैं।

 


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