पीएससी में शासन के 87-13 फीसदी के फार्मूले में अटकी भर्तियां, इस फेर में आए उम्मीदवारों के रिजल्ट-अंक, उत्तरपुस्तिका सब गोपनीय

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Pratibha Rana
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पीएससी में शासन के 87-13 फीसदी के फार्मूले में अटकी भर्तियां, इस फेर में आए उम्मीदवारों के रिजल्ट-अंक, उत्तरपुस्तिका सब गोपनीय

संजय गुप्ता, INDORE. मप्र लोक सेवा आयोग ने राज्य सेवा परीक्षा 2019 का अंतिम रिजल्ट जारी कर दिया है और 87 फीसदी पदों के लिए चयन सूची जारी हुई है। बाकी 13 फीसदी पदों पर नियुक्ति रूकी हुई है और यह कब क्लीयर होगी यह किसी को नहीं पता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि कोर्ट से इस रिजल्ट को जारी करने पर कोई रोक नहीं है। यह खुद मप्र शासन के सामान्य प्रशासन विभाग का फार्मूला है, जिसे खुद तैयार किया और आयोग को आदेश देकर इसे लागू करा दिया गया। इस फेर में 2019 की परीक्षा के 87 पद और 2020 की परीक्षा के 38 पद होल्ड पर है। वहीं आने वाली परीक्षाओं 2021, 2022 जिनकी भर्ती प्रक्रिया जारी है, उनके भी 98 पद पर भर्ती भी इसी फार्मूले से अटकी रहेगी।

यह फार्मूला आयोग की सभी भर्तियों में

केवल राज्य सेवा परीक्षा ही नहीं बल्कि वन सेवा परीक्षा, चिकित्सा सेवा, एडीपीओ, इंजीनिययरिंग परीक्षा से लेकर अब होने वाली असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती परीक्षा सभी में यह फार्मूला है, जिसके चलते जो भी 13 फीसदी के दायरे में आया, उसका भविष्य अधर में आ गया। हालत तो यह है कि जो परीक्षा यूजीसी के नियमों से होती है और केवल पात्रात परीक्षा के तहत सर्टिफिकेट जारी करने वाली परीक्षा है, इसमें भी 13 फीसदी का फार्मूला है। उधर असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती परीक्षा आ गई है, लेकिन इन 13 फीसदी का सेट का रिजल्ट भी नहीं आएगा और यह इसके लिए आवेदन भी नहीं कर सकेंगे। इस तरह सैंकड़ों पद और हजारों उम्मीदवार अधर में हैं।

हद तो यह है कि रिजल्ट, अंक तक गोपनीय

सबसे बड़ी हैरानी की बात तो यह है कि इन 13 फीसदी के दायरे में आए उम्मीदवारों की भर्ती तो रूकी ही हुई है, उन्हें अपना रिजल्ट तक नहीं मालूम कि वह अंतिम चयन में है भी कि नहीं, ना ही उन्हें उनके अंक पता है। वहीं 87 फीसदी कैटेगरी में भी जो अंतिम रूप से चयनित है केवल उन्हीं के अंक ही सामने आए, जिसने इस कैटेगरी में भी इंटरव्यू दिए उनके अंक और कॉपियां नहीं दिखाई जा रही है। ऐसे में उम्मीदवारों का कहना भी है कि हम अंतिम चयनित क्यों नहीं हुए क्या गलती रही यह समझने के लिए उत्तरपुस्तिका देखना जरूरी है, लेकिन वह भी नहीं दिखाई जा रही है। मजे की बात यह है कि इन सभी बातों पर कोर्ट की कोई रोक नहीं है। आयोग बस किसी विवाद की आशंका में इन सभी को गोपनीय रखे हुए हैं।

क्या है 87-13-13 फार्मूला

मप्र शासन ने ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया। इससे कुल आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा हो गया, जो सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेश के चलते नहीं हो सकता है। मामला कोर्ट में विवादों में चला गया। जो अभी भी चल रहा है। इसी दौरान रिजल्ट रूकते देख सामान्य प्रशासन विभाग ने 29 सितंबर 2022 को एक पत्र आयोग को जारी किया और इसमें 87-13-13 फीसदी का फार्मूला दिया। इसके अनुसार ओबीसी आरक्षण 14 फीसदी रखते हुए पदों को 87-13-13 में बांट दिया गया। यानि सौ पद है तो 87 पद मूल कैटेगरी में डाल दिए, जिसमें ओबीसी के लिए 14 फीसदी पद रहेंगे और आरक्षण नियमों के तहत ही 50 फीसदी सामान्य कैटेगरी और बाकी एसटी-एससी के रहेंगे। बाकी 13 पद अलग रखे जाएंगे, इन पदों को प्रोवीजनल कैटेगरी में कहेंगे, इसमें अब परीक्षा के हर स्टेज पर (प्री, मेंस और फिर अंतिम चयन) 13 फीसदी ही मेरिट होल्डर ओबीसी को और 13 फीसदी अनारक्षित कैटेगरी उम्मीदवारों को चुना जाएगा। जब कोर्ट का आरक्षण को लेकर अंतिम फैसला आएगा, जैसे यदि आरक्षण 27 फीसदी कर दिया जाता है तो यह 13 फीसदी पद ओबीसी उम्मीदवारों को जाएंगे और नहीं तो अनारक्षित कैटेगरी वालों को दे दिए जाएंगे। यदि इस कैटेगरी के रिजल्ट में आए उम्मीदवारों को प्री, मैंस के लिए तो पता चलेगा कि वह चयनित हुए कि नहीं लेकिन अंतिम चयन उन्हें कोर्ट के आदेश के बाद ही पता चलेगा, तब तक अधर में रहेंगे।

आयोग ने उम्मदीवारों से शपथपत्र भी ले लिए

आयोग ने इस मामले में परीक्षाओं के उम्मीदवारों से एक अभिवचन यानि शपथ पत्र भी लिया है। इसके अनुसार उम्मीदवारों का चयन जिस कैटेगरी में होगा चाहे वह 87 फीसदी (मूल रिजल्ट) हो या 13 फीसदी (प्रोवीजनल रिजल्ट) हो, उसी में रहेंगे। वह दूसरी सूची के लिए किसी तरह का दावा नहीं करेंगे ना ही कोई आपत्ति करेंगे। यानि यदि कोई उम्मीदवार प्री में कटऑफ अंक पर आकर मेरिट में नीचे आता है तो वह 87 की जगह 13 फीसदी के प्रोवीजनल रिजल्ट में जाएगा और फिर भले ही उसके मैंस में कितने भी अंक आए और प्रदेश में टॉपर भी हो लेकिन वह रहेगा उसी कैटेगरी में और उसी कैटेगरी के लिए आरक्षित पदों में से ही कोई पद उसे मिलेगा। इसी तरह 87 फीसदी कैटेगरी में शामिल उम्मीदवार को उसी कैटेगरी के ही आरक्षित पद में से कोई मिलेगा, वह 13 फीसदी में रखे गए डिप्टी कलेक्टर पद के लिए योग्य हो लेकिन यदि वह 87 फीसदी में नायब तहसीलदार अधिकारी पद के लिए मेरिट में आ रहा है तो वही मिलेगा।

OBC आरक्षण को लेकर कोर्ट में जवाब देने के लिए भी तैयार नहीं सरकार

ओबीसी आरक्षण को लेकर विवाद कोर्ट में जाने के बाद से ही हालत यह है कि वोट बैंक की राजनीति में यह मामला उलझ गया और कई बार तारीख लगने पर भी मप्र शासन ने ओबीसी आरक्षण को लेकर लिखित में अपने स्टेंड को क्लियर नहीं किया है। आयोग के 87-13 फीसदी फार्मूले के खिलाफ भी कोर्ट में मामला लंबित है तो वहीं ओबीसी आरक्षण को लेकर भी केस चल रहा है। इसी बीच आयोग ने इन उम्मीदवारों के नाम लिफाफे में बंद करके रखे हुए हैं, जो कोई भी नहीं जानता कि वह कब तक बंद रहेंगे। यानि एक साल या दस साल बाद कब भर्ती पता चलेगी कुछ क्लियर नहीं, यदि बाद में लिफाफे में कोई उम्मीदवार डिप्टी कलेक्टर बनता है तो फिर उसकी सीनियरिटी से लेकर अन्य सेवा शर्तों की स्थिति क्या होगी? यह भी कोई सोचने वाला नहीं है? निश्चित ही चयन की जानकारी सामने आने के बाद वह अभी नहीं तो जब भी रिजल्ट आएगा वह अपनी पदोन्नित, वेतन आदि सभी का हक मांगेगा, जिसका वह हकदार था, क्योंकि सबसे बड़ी बात कोर्ट ने कोई रोक नहीं लगाई है, यह केवल विवादों से बचने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग का नियम है, जो आयोग ने लागू कर दिया।

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