महात्मा गांधी सेवा प्रेरकों की भर्ती रद्द, अब देश के एकमात्र और पहले शांति एवं अहिंसा निदेशालय पर भी संकट के बादल

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BP Shrivastava
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महात्मा गांधी सेवा प्रेरकों की भर्ती रद्द, अब देश के एकमात्र और पहले शांति एवं अहिंसा निदेशालय पर भी संकट के बादल

JAIPUR. राजस्थान में सत्ता परिवर्तन के साथ ही मौजूद भारतीय जनता पार्टी की सरकार पिछली कांग्रेस सरकार के फैसलों को बदल रही है। इसी के तहत पहले राजीव गांधी युवा मित्र इंटर्न की भर्ती रोकी गई और अब महात्मा गांधी सेवा प्रेरकों की भर्ती पर भी रोक लगा दी गई है।

शांति एवं अहिंसा निदेशालय क्या है?

महात्मा गांधी सेवा प्रेरकों की भर्ती पर रोक के बाद अब देश के पहले और एकमात्र शांति एवं अहिंसा निदेशालय पर भी संकट के बादल नजर आ रहे है क्योंकि इन सेवा प्रेरकों की भर्ती इसी के तहत की जानी थी। वहीं इस निदेशालय में गांधी दर्शन विशेषज्ञों की नियुक्ति का प्रावधान है जो आमतौर पर कांग्रेस से ही जुड़े होते हैं। ऐसे में कांग्रेस के नेताओं को आशंका है कि यह निदेशालय भी ठंडे बस्ते में डाला जा सकता है।

निदेशालय पहला और अकेला विभाग

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गांधी दर्शन से विशेष लगाव है और अपनी सरकार के पहले बजट में ही उन्होंने प्रदेश में शांति एवं अहिंसा प्रकोष्ठ गठित करने की घोषणा कर दी थी। बाद में इस प्रकोष्ठ को निदेशालय में बदल गया और अंत में इसके नाम से एक अलग विभाग ही बना दिया गया। महात्मा गांधी के विचारों को जनता तक पहुंचाने के उद्देश्य से बनाया गया यह विभाग देश में अपनी तरह का पहला और अकेला विभाग है।

निदेशालय का यह है सेटअप

इसमें निदेशालय स्तर पर निदेशक से लेकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तक 19 पद स्वीकृत किए गए थे। जिसमें से 12 पदों पर अधिकारी और कर्मचारी काम भी कर रहे हैं। विभाग बनाए जाने के बाद इसमें सभी जिलों और संभाग स्तर पर भी 70 से ज्यादा पद स्वीकृत किए गए थे। जिनमें से 54 पद गांधी दर्शन विशेषज्ञ कार्यक्रम समन्वयक और शोध संदर्भ विशेषज्ञों के थे। इन पदों पर हालांकि किसी की नियुक्ति अभी तक नहीं की गई है, लेकिन कांग्रेस की सरकार बनती तो यह निदेशालय निश्चित रूप से आगे काम करता और इन पदों पर नियुक्तियां भी होती।

यह थी योजना...

जिन महात्मा गांधी सेवा प्रेरकों की नियुक्तियां रद्द की गई हैं। उन्हें पंचायत समिति स्तर तक पुस्तकालय सहायक के रूप में नियुक्ति दी जानी थी। सरकार की योजना यह थी कि हर पंचायत पर गांधी दर्शन से संबंधित पुस्तक पहुंचाई जाएं और पंचायत स्तर पर पुस्तकालय बनाकर उन्हें संचालित किया जाए।

निदेशालय के बंद या निष्क्रिय किए जाने की आशंका

अब महात्मा गांधी सेवा प्रेरकों की नियुक्ति रद्द होने के बाद इस शांति एवं अहिंसा निदेशालय के बंद होने या निष्क्रिय किए जाने की आशंका बन गई है। सूत्रों का कहना है कि यदि कांग्रेस सरकार आती तो गांधी दर्शन विशेषज्ञों कार्यक्रम समन्वयों को और शोध संदर्भ सहायकों के पदों पर कांग्रेस से जुड़े लोगों की ही नियुक्तियां होती क्योंकि गांधी दर्शन से संबंधित ज्यादा काम कांग्रेस से जुड़े लोगों का ही किया हुआ है। अब क्योंकि प्रदेश में भाजपा की सरकार है तो कांग्रेस से जुड़े लोगों को सरकार नियुक्तियां नहीं देगी और ऐसे में यह निदेशालय भी जल्द ही या तो बंद कर दिया जाएगा या ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा।

कांग्रेस ने क्या कहा?

गांधी दर्शन और निदेशालय की गतिविधियों से सक्रिय रूप से जुड़े रहे कांग्रेस के प्रदेश महासचिव जसवंत गुर्जर कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी महात्मा गांधी के अनुयाई होने का सिर्फ ढोंग करती है। सरकार ने जिन महात्मा गांधी सेवा प्रेरकों की नियुक्ति प्रक्रिया रद्द की है। वे महात्मा गांधी के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए नियुक्त किए जा रहे थे। अब इनकी नियुक्ति रद्द करने के बाद इसी उद्देश्य से बनाए गए शांति एवं अहिंसा निदेशालय को भी सरकार सक्रिय रखेगी। इस बात की उम्मीद नहीं है, जबकि आज के समय में इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। हमारी सरकार ने कुछ अलग और समाज की बेहतरी के बारे में सोचते हुए ही यह विभाग बनाया था।

कांग्रेस सरकार की योजनाओं पर संकट के बादल

इस मामले में सरकार आगे क्या निर्णय करेगी यह तो भविष्य में पता चलेगा और इस पर पार्टी के नेता अभी कुछ कहने को भी तैयार नहीं है, लेकिन यह तय माना जा रहा कि पिछली सरकार की ऐसी योजनाएं या निर्णय जिनसे सीधे तौर पर कांग्रेस के कार्यकर्ता जुड़े हुए हैं या उन्हें फायदा मिलने की संभावना है, उन्हें रद्द किया जाएगा। इसके लिए पिछली सरकार के समय की गई बजट घोषणाओं और अन्य निर्णियों को खंगाला जा रहा है। इसके साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के नाम से चल रही एक दर्जन से ज्यादा योजनाओं के नाम बदलने की भी तैयारी है।

बीजेपी सरकार ने बंद कर दिए थे विश्वविद्यालय

भारतीय जनता पार्टी की पिछली सरकार ने कांग्रेस सरकार के समय खोले गए दो विश्वविद्यालय जिन में से एक पत्रकारिता से संबंधित था और दूसरा विधि शिक्षा से संबंधित था। इन्हें उपयोगी नहीं मानते हुए बंद कर दिया था। बाद में जब गहलोत सत्ता में फिर लौटे तो उन्होंने फिर से विश्वविद्यालय को शुरू किया।

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