संजय गुप्ता, INDORE. सीधी में हुए पेशाब कांड और फिर एक के बाद एक सामने आए आदिवासी अत्याचारों की खबरों ने पूरे प्रदेश में राजनीतिक बवाल कर दिया है। लेकिन इस आग की सबसे ज्यादा राजनीतिक तपिश बीजेपी मालवा-निमाड़ में महसूस कर रही है। बीते 2 सालों से आदिवासियों के हित में केंद्र से लेकर राज्य स्तर तक जो मेहनत की गई थी, वो एक पेशाब कांड से पानी-पानी होती दिख रही है। मध्यप्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में आदिवासी वर्ग के लिए 47 सीट हैं। मालवा-निमाड़ की 66 सीटों में से आदिवासी सीटों की संख्या 22 है। वहीं करीब 8 सीटों पर ये समुदाय हार-जीत तय करने की स्थिति में होता है, यानी कुल 30 सीटों पर अब बीजेपी के लिए खतरा मंडरा रहा है, जो सत्ता में लाने या बेदखल करने के लिए काफी है।
22 में से 15 सीटें जीतकर सत्ता में आई थी कांग्रेस
बीते 2018 के चुनाव की बात करें तो इन 22 सीटों में सीधे तौर पर कांग्रेस ने 15 सीटें जीती थी, वहीं 1 सीट खरगोन जिले की भगवानपुरा निर्दलीय के खाते में गई थी और बीजेपी के हाथ केवल 6 सीटें ही लगी थीं। वहीं आदिवासी प्रभाव वाली 8 सीटों की बात करें तो इसमें इंदौर की महू सीट के साथ ज्यादा असर देवास जिले, बुहरानपुर सीट, शाजापुर जिला, खंडवा जिले की सीटें आती हैं।
इस तरह मालवा-निमाड़ में कांग्रेस-बीजेपी का स्कोर 15-6 रहा
- झाबुआ जिला - यहां तीनों सीट झाबुआ, थांदला और पेटलावद आदिवासी हैं, जिसमें बीजेपी केवल झाबुआ जीत सकी। यहां कांग्रेस-बीजेपी का स्कोर 2-1 रहा।
जयस से बिना गठजोड़ बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए मुश्किल
इन 22 सीटों पर खासकर झाबुआ, आलीराजपुर, बडवानी और धार एरिया की बात करें तो जयस के बिना बीजेपी और कांग्रेस दोनों का उद्धार नहीं होने वाला है। जयस की भूमिका किंगमेकर की होगी, लेकिन जयस की समस्या ये है कि वो राजनीतिक दल नहीं होने के चलते खुद चुनाव नहीं लड़ सकती है और उसे या तो निर्दलीय प्रत्याशी उतारने होंगे या फिर किसी दल को अपने प्रत्याशी देने होंगे जैसे बीते चुनाव में हीरालाल अलावा को कांग्रेस ने टिकट दिया और जीते थे। कांग्रेस के लिए पॉजीटिव बात ये है कि यूसीसी (यूनिफॉर्म सिविल कोड) के चलते आदिवासी बेल्ट बीजेपी से खुश नहीं है, वे इसे नापसंद करते हैं। वहीं आदिवासी अत्याचार के मामलों के चलते भी जयस खुलकर बीजेपी के विरोध में उतरा है। जयस के पदाधिकारियों पर भी RSS के विवादित पोस्टर शेयर करने पर FIR हुई है, ऐसे में हमारे नेताओं पर FIR वाली फीलिंग बीजेपी के खिलाफ आदिवासी एरिया में फैल रही है।
पटवारी आंदोलन में भी जुड़ गए हैं आदिवासी
इतना क्या कम था कि आदिवासी युवाओं ने पटवारी भर्ती परीक्षा में भी खुद को जोड़ लिया है। इस परीक्षा के खिलाफ युवाओं में जमकर रोष है। हालत ये है कि कई आदिवासी युवाओं ने सोशल मीडिया पर इस आंदोलन, धरना-प्रदर्शन को सोशल मीडिया पर लाइव चलाया। इस तरह आदिवासी बेल्ट की बात करें तो यहां बीजेपी के लिए फिलहाल पॉजिटिव के आसार नजर नहीं आ रहे हैं, लेकिन कांग्रेस को भी पेड़ की नीचे मुंह खोलकर लेटने की जगह थोड़ा पेड़ पर चढ़कर फल तोड़ने जितनी मेहनत ना सही कम से कम पेड़ को हिलाकर फल गिराने की कोशिश तो करनी ही होगी। खुद फल मुंह में नहीं गिरेगा। लेकिन अभी की स्थिति में आदिवासी बेल्ट फिर कांग्रेस के साथ जुड़ता है और जयस के साथ समझौता हुआ तो फिर बीजेपी को अपने गढ़ मालवा-निमाड़ को बचाने में पसीने छूट जाएंगे।